Raksha Bandhan 2025: स्नेह और संबंधों की प्रगाढ़ता को दर्शाता है रक्षाबंधन का पर्व
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Updated: August 9, 2025 05:18 IST2025-08-09T05:18:10+5:302025-08-09T05:18:10+5:30
Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह हर बहन पवित्रता, सात्विकता और शुभकामनाओं के साथ सुंदर राखी अपने भाई की कलाई पर बांधती है.

Raksha Bandhan 2025
Raksha Bandhan 2025: प्राचीन काल में रक्षाबंधन को धार्मिक त्यौहार माना जाता था इसलिए हिंदू सनातन धर्म के प्रतिनिधि ब्राह्मण घर-घर जाकर अपने यजमान को रक्षा का धागा उसकी कलाई पर बांधते थे. इसमें ब्राह्मण के द्वारा परमात्मा को साक्षी रखकर परमात्मा को रक्षक मानते हुए उसी की स्मृति में यह धागा बांधा जाता था और यह हर नर-नारी को बांधा जाता था . यह दर्शाता था कि सभी की रक्षा करने वाले वह परमात्मा हैं, इस धागे को देख उनकी स्मृति आती रहेगी. इस त्यौहार को मनाने का तरीका भी बहुत पवित्र और सात्विक है. रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह हर बहन पवित्रता, सात्विकता और शुभकामनाओं के साथ सुंदर राखी अपने भाई की कलाई पर बांधती है. उसके मस्तक पर चंदन केसर का तिलक लगाती है. उस तिलक पर अक्षदा लगाया जाता है.
फिर भाई का मुख मीठा कराती है और उसकी आरती उतारती है. चंदन शीतल, सुगंधित होता है. मस्तक पर जहां यह लगाया जाता है वहां प्राण शक्ति आत्मा रहती है. चंदन का टीका लगाने का अभिप्राय है कि आत्मा शीतल और सुगंधित हो जाती है. सुगंधित होना अर्थात हर कर्मेंद्रिय द्वारा बहुत शुभ कर्म करना. इस पर अक्षत लगाया जाता है अक्षत का अर्थ है अविनाशी.
आत्मा भी अविनाशी है, भाई पर आए संकट को टालने के लिए या मृत्यु के भय को मिटाने के लिए अपने अविनाशी स्वरूप में स्थित होने के लिए मस्तक पर तिलक के ऊपर अक्षदा लगाते हैं. फिर बहन भाई की कलाई पर सुंदर रेशम की डोरी बांधती है. वैसे तो यह डोरी साधारण दिखती है लेकिन इसके पीछे बहुत गहरा रहस्य है.
जिस तरह एक साधारण तार में अगर करंट होता है तो उससे बहुत बड़े-बड़े काम हो जाते हैं. अगर यह करंट रुक जाता है तो सब कार्य रुक जाते हैं बिजली बंद हो जाती है. चारों ओर अंधकार हो जाता है. विशेष बात है तार का अपने स्थान पर होना और उसमें बिजली का प्रवाह होना.
ठीक इसी प्रकार बहन रेशम की डोरी के अंदर सुंदर, शुभ भाव, परमात्मा का आशीर्वाद मन में रखकर भाई को राखी बांधती है तो भाई की भी सदा रक्षा होती है. इसके पश्चात बहन भाई का मुख मीठा कराती है जिसका अर्थ होता है कि आप सबके प्रति मधुर वाणी का इस्तेमाल करो और सबका सम्मान करो. वाणी ऐसा जरिया है जो संबंधों को मधुर, सशक्त बनाता है.
इसके बाद बहन भाई की आरती उतारती है. आरती देवी-देवताओं की उतारी जाती है. यहां इसके पीछे भाई के प्रति उसकी यह भावना होती है कि जैसे देवी-देवताओं के अंदर जो दैवीय गुण हैं वह आप में भी उतर आएं. ऐसे इष्ट देव बन जाओ जो सबके कष्ट मिटाने वाले हो. अपने दिव्य गुणों के पराक्रम से आप शक्तिशाली बन जाओ.
फिर भाई अपनी बहन को कुछ उपहार देता है जो उसके प्रेम, स्नेह व संबंधों की प्रगाढ़ता को दर्शाता है. इतने सुंदर, पवित्र और शक्तिशाली भावों से ओतप्रोत इस त्यौहार का धीरे-धीरे स्वरुप बदलने लगा है. इसका भी बाजारीकरण होने लगा है.
प्रेम, अपनेपन, सुरक्षा की भावना धीरे-धीरे अपना महत्व खोती जा रही है. आज आवश्यकता इस बात की है कि इस पर्व का जो अलोकिक, पवित्र और आध्यात्मिक महत्व है उसे फिर से जीवन में उतारकर उसे प्रेम, श्रद्धा, पवित्रता और परमात्मा की याद में मनाएं.