जन्माष्टमी: बालगोपाल के स्वागत का पर्व

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 3, 2018 03:46 AM2018-09-03T03:46:19+5:302018-09-03T03:46:19+5:30

डीडी कोशांबी और जन गोंडा जैसे नामचीन विद्वान बाल ईश्वर की विभिन्न छवियों और रूपों पर  हैरान होते हैं। उनमें मूसलाधार बारिश से अपने लोगों की रक्षा के लिए कृष्ण की गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए छवि काफी पसंदीदा है। धार्मिक दृष्टिकोण वाले इतिहासकारों के लिए यह पशुपालक आर्यो के देवता इंद्र पर नवनिर्मित सभ्यताओं के देवताओं की जीत का प्रतीक है।

krishna janmashtami 2018 celebrations and about interesting facts | जन्माष्टमी: बालगोपाल के स्वागत का पर्व

जन्माष्टमी: बालगोपाल के स्वागत का पर्व

जवाहर सरकार

कृष्ण निश्चित रूप से विद्वानों के लिए एक आकर्षक विषय हैं, चाहे धार्मिक हों या विश्लेषणात्मक। लेकिन इतिहासकारों के लिए वे सर्वाधिक परेशानी पैदा करते हैं। आम धारणा के विपरीत,  कृष्ण का वेदों में उल्लेख नहीं है और बहुत मुश्किल से हम केवल सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व छांदोग्य उपनिषद में एक चरित्र के रूप में उनका निर्विवाद उल्लेख पाते हैं। बाद में तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख किया गया है लेकिन वहां भी उनके जन्म की कोई कथा नहीं है। वह कहानी तो हमारी सामूहिक स्मृति में एक हजार साल बाद, ईस्वी सन की तीसरी या चौथी शताब्दी में विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण के माध्यम से प्रवेश करती है।

इस बीच, हम कुछ पवित्र आख्यानों में उनका छिटपुट उल्लेख पाते हैं, लेकिन महाभारत और गीता को अंतिम आकार दिए जाने के थोड़ा पहले ही कृष्ण प्रमुखता के साथ उभरे। गुप्त काल और उसके बाद निर्मित बहुत सी मूर्तियों में हम दिव्य बालक के चमत्कारिक कार्यो का चित्रण पाते हैं। वे यमुना तट पर पैदा हुई चारागाही सभ्यता के शुभंकर के तौर पर उसे मूल्यवर्धित करते हैं। 

डीडी कोशांबी और जन गोंडा जैसे नामचीन विद्वान बाल ईश्वर की विभिन्न छवियों और रूपों पर  हैरान होते हैं। उनमें मूसलाधार बारिश से अपने लोगों की रक्षा के लिए कृष्ण की गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए छवि काफी पसंदीदा है। धार्मिक दृष्टिकोण वाले इतिहासकारों के लिए यह पशुपालक आर्यो के देवता इंद्र पर नवनिर्मित सभ्यताओं के देवताओं की जीत का प्रतीक है। फिर भी, गुप्त काल में हम जन्माष्टमी पर्व को आज की तरह धूमधाम से मनाए जाने के सबूत नहीं पाते हैं और अधिकांश विद्वानों को लगता है कि इसके एक सहस्त्रब्दी बाद, भक्तिकाल के दौरान ऐसा उत्साह पैदा हुआ। सूरदास, मीरा सहित भक्तिकाल के कवियों ने पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में बालगोपाल को एक शरारती प्यारे बाल ईश्वर के रूप में चित्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

 भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी आमतौर पर काफी भीगी होती है, लेकिन इसके बावजूद असंख्य लोग बारिश में भीगते हुए मंदिरों में जाते हैं। जन्माष्टमी पर लाखों लोग घर के बाहर निकल पड़ते हैं। मथुरा, वृंदावन, द्वारका, पुरी, नवद्वीप, गुरुवयूर, उडुपी, कांचीपुरम, इम्फाल और असम के नामघर जैसे वैष्णवों के गढ़ में लोगों का जमघट लग जाता है। 

भारत के कई भागों में श्रद्धालु दिन भर उपवास रखते हैं और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हुए मध्यरात्रि में कृष्ण के जन्म की खुशी मनाते हैं। महाराष्ट्र में युवा दही-हांडी स्पर्धा का आयोजन करते हैं, जिसमें कई-कई मानव पिरामिड बनाकर युवा ऊंचाई पर लटकी दही-हांडी फोड़ते हैं और सफल प्रतिभागियों को पुरस्कार दिया जाता है। पूरा देश इन युवाओं की दृढ़ता और कौशल तथा जोखिम लेने की क्षमता देखकर आश्चर्यचकित होता है। कामना की जा सकती है कि इस खेल को अगले ओलंपिक खेलों में जगह मिले, क्योंकि इसमें भारत भगवान कृष्ण के अनंत आशीर्वाद से निश्चित रूप से स्वर्ण पदक जीत सकता है।

Web Title: krishna janmashtami 2018 celebrations and about interesting facts

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