गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: प्राचीन भारतीय संस्कृति की जीवंत नगरी है काशी

By गिरीश्वर मिश्र | Published: December 13, 2021 02:41 PM2021-12-13T14:41:08+5:302021-12-13T14:41:08+5:30

मान्यता है यहां भगवान शिव शक्ति की देवी मां भगवती संग विराजते हैं। गंगा भारत की सनातन संस्कृति का अविरल प्रवाह है और साक्षी है उसकी जीवंतता का।

know the religious spiritual and cultural significance of the Kashi | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: प्राचीन भारतीय संस्कृति की जीवंत नगरी है काशी

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: प्राचीन भारतीय संस्कृति की जीवंत नगरी है काशी

अर्ध चंद्राकार उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर बसी काशी या ‘बनारस’ को सारी दुनिया से न्यारी नगरी कहा गया है। काल के साथ अठखेलियां करता यह नगर धर्म, शिक्षा, संगीत, साहित्य, कृषि और उद्योग-धंधे यानी संस्कृति और सभ्यता के हर पक्ष में अपनी पहचान रखता है। काशी का शाब्दिक अर्थ प्रकाशित करने वाला होता है।

शास्त्र और लोक, परंपरा और आधुनिकता दोनों ही पक्षों को साथ-साथ अभिव्यक्त करते हुए यहां नए और पुराने, अमीर और गरीब, प्राच्य विद्या और आधुनिक विज्ञान-प्रौद्योगिकी, युवा और वृद्ध, हवेली और अट्टालिका, प्राचीन मंदिर और नए मॉल तथा संकरी गलियां और प्रशस्त राज-पथ दोनों जीवन-धाराओं की अभिव्यक्ति मूर्तिमान है।

काशी विश्वनाथ, गंगा माता, संकट मोचन, दुर्गाजी, काल भैरव और अन्नपूर्णा समेत जाने कितने देवी-देवताओं की उपस्थिति आस्था और विश्वास के माध्यम से लोक और लोकोत्तर के विलक्षण ताने-बाने को बुनते हुए इस नगर को सबसे न्यारा बना देती है।

काशी को हरिहर धाम भी कहते हैं और आनंद कानन भी। यह परमेश्वर की अनन्य भक्ति का धाम है जो क्षुद्रता से उबार कर विशालता का अंग बना देती है। ‘बनारसी’ एक खास तरह की जीवन-दृष्टि और स्वभाव को इंगित करने वाला ‘विशेषण’ भी बन चुका है जो भारत की बहुलता और जटिलता को रूपायित करता है।

यहां बहुलता के बीच प्रवहमान एकता की अंतर्धारा भी जीवंत रूप में उपस्थित होती है और यह व्यक्त करती है कि यहां किस तरह अनेक किस्म के विरुद्धों का सामंजस्य सहज रूप में उपस्थित होता है। पूरे भारत के लोग स्नेह के साथ इसकी प्रीति की डोर में बंध कर खिंचे चले आते हैं।

इस नगर में नेपाली, बंगाली, दक्षिण भारतीय (मद्रासी), गुजराती, मराठी आदि अनेक समुदायों के लोग बसे हुए हैं। भारत ही क्यों, पूरे विश्व में ज्ञान और मोक्ष की नगरी ‘काशी’ को लेकर उत्सुकता दिखती है। आज भी अक्सर जब कोई विदेशी भारत पहुंचता है तो काशी का स्पर्श किए बिना उसे अपनी यात्ना अधूरी लगती है।

काशी का दुर्निवार आकर्षण किसी जादू से कम नहीं है। कहते हैं काशी अद्वैत सिद्धि का शहर है। काशी का शाब्दिक अर्थ है शुद्ध चैतन्य का प्रकाश। पुराणों और जातकों में काशी का विस्तृत और सुंदर वर्णन किया गया है। काशी जनपद की राजधानी वाराणसी थी।

काशी का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है। जातकों में ब्रह्मदत्त राजा का अनेकश: उल्लेख है। धार्मिक उथल-पुथल के बीच महात्मा बुद्ध का भी आगमन हुआ था। यहीं सारनाथ में बुद्ध ने ‘धम्म चक्क’ का प्रवर्तन भी किया था। बौद्ध साहित्य में काशी की समृद्धि का विस्तृत वर्णन है।

गुप्त काल में यहां बड़ी उन्नति हुई। शिवलिंग की पूजा-अर्चना की पुष्टि होती है। कई सदियों से काशी में पुण्यतोया गंगा और बाबा विश्वनाथ ने धर्म परायण भारतीय जनमानस को आकृष्ट किया है। यहां के विश्वेश्वर विश्वनाथ बारह ज्योतिर्लिगों में से एक हैं। मान्यता है यहां भगवान शिव शक्ति की देवी मां भगवती संग विराजते हैं। गंगा भारत की सनातन संस्कृति का अविरल प्रवाह है और साक्षी है उसकी जीवंतता का।

गंगा प्रतीक है शुभ्रता का, पवित्नता का, ऊष्मा का, स्वास्थ्य और कल्याण का। गंगा ने राजनैतिक इतिहास के उतार-चढ़ाव भी देखे हैं। इसके तट पर तपस्वी, साधु-संत बसते रहे हैं और अध्यात्म की साधना भी होती आ रही है। गंगा के निकट साल भर उत्सव की झड़ी लगी रहती है।

माता गंगा दु:ख और पीड़ा में सांत्वना देने का काम करती है। जीवन और मरण दोनों से जुड़ी है। पतित पावनी गंगा मृत्यु लोक में जीवनदायिनी है। कभी कवि पद्माकर ने कहा था : ‘छेम की लहर, गंगा रावरी लहर; कलिकाल को कहर, जम जाल को जहर है।’ 

अब स्थिति ऐसा पल्टा खा रही है कि गंगा का स्वयं का क्षेम ही खतरे में है। काशी में गंगा को प्रदूषणमुक्त करने का सघन यत्न जरूरी है। गंगाविहीन देश भारत देश कहलाने का अधिकार खो बैठेगा। पुण्यतोया गंगा के महत्व को पहचान कर ‘नमामि गंगे’ परियोजना भी कई हजार करोड़ रु. की लागत से शुरू हुई। 

इन सब के बावजूद वाराणसी शहर के पास हर तरह के प्रदूषण की वृद्धि ने गंगा को बड़ी क्षति पहुंचाई है। गंगा के प्रवाह को प्रदूषणमुक्त कर स्वच्छ बनाना राष्ट्रीय कर्तव्य है। गंगा में प्रदूषण के नियंत्नण के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाना चाहिए।

Web Title: know the religious spiritual and cultural significance of the Kashi

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