Hanuman Jayanti 2025: आस्था, बल और बुद्धि के संगम हैं महावीर हनुमान, श्रीराम का स्मरण श्री हनुमान के बिना पूरा नहीं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 12, 2025 05:20 IST2025-04-12T05:20:34+5:302025-04-12T05:20:34+5:30
Hanuman Jayanti 2025: राम कथा के ब्यौरे में जाएं तो पता चलता है कि जब जटिल प्रसंग आते हैं, जब कठिन समस्या का कोई समाधान नहीं मिलता तो हनुमान को स्मरण किया जाता है. वे रामदूत और एक संवादी के रूप में जगत प्रसिद्ध हैं.

सांकेतिक फोटो
Hanuman Jayanti 2025: संस्कृति के लोक का कलेवर अत्यन्त विशाल, व्यापक और आम जन को सामर्थ्यवान बनाने वाला होता है. उसके अंतर्गत परिकल्पित परिवेश के पात्र अक्सर देश-काल की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए विचार, प्रतिमा, प्रथाओं और विभिन्न अनुष्ठानों की सहायता से सबके लिए उपलब्ध रहते हैं. उनके साथ कथाएं और किंवदंतियां भी जुड़ती रहती हैं क्योंकि उनसे लोगों को जीवन जीने के लिए जरूरी समर्थन, प्रेरणा और शक्ति मिलती रहती है. राम-भक्ति के सिरमौर पवनसुत श्री हनुमान शारीरिक बल और उत्तम कोटि की मेधा या बुद्धि में श्रेष्ठ एक ऐसे ही विरल भारतीय व्यक्तित्व की सर्जना हैं. हनुमानजी कई अर्थों में विलक्षण हैं. वे कई तरह के परस्पर विरोध दिखाने वाली विशेषताएं भी रखते हैं. मानवेतर होने पर भी गूढ़ राम-रसायन का तत्व उन्हीं के पास है.
वे श्रीराम के निकट परिवार के सदस्य न हो कर भी ‘राम पंचायतन’ के प्रमुख और स्थायी सदस्य हैं. मंदिरों और चित्रों में सर्वत्र श्रीराम का स्मरण श्री हनुमान के बिना पूरा नहीं होता है. राम कथा के ब्यौरे में जाएं तो पता चलता है कि जब जटिल प्रसंग आते हैं, जब कठिन समस्या का कोई समाधान नहीं मिलता तो हनुमान को स्मरण किया जाता है. वे रामदूत और एक संवादी के रूप में जगत प्रसिद्ध हैं.
जैसा कि हम सब जानते हैं, श्रीराम द्वारा लंका विजय की मानुष अवतार वाली राम कथा में कई जटिल अवसरों पर बजरंग बली के बिना उलझनों का समाधान ही नहीं मिलता और कथा आगे ही नहीं बढ़ती. हनुमानजी सभी सिद्धियों के आगार और गुणों में निष्णात तो हैं ही, उनके पास सभी निधियां भी हैं. यह सब होने के बावजूद अतुलित बलशाली हनुमानजी बड़े सरल स्वभाव के हैं.
सभी तरह की संपदा होने के बावजूद उन्हें अहंकार का लेश मात्र नहीं है. उनका अहं भाव विगलित हो चुका है और वे इस मायावी जाल से परे हैं. श्रीराम और उनके भक्तों के साथ उनका व्यापक तादात्मीकरण है. इस तरह के अद्वैत के साथ वह प्रभु श्रीराम के साथ निर्विकल्प रूप से जुड़े हुए हैं. राम काज करना ही उनका प्रथम और अंतिम ध्येय है.
विमल यश वाले हनुमानजी मित्रता, शौर्य, साहस, धैर्य, चातुर्य, बुद्धिमत्ता आदि गुणों में अतुलनीय मानक सदृश हैं. वे दुर्मति को हटा कर सुमति को प्रतिष्ठित कर भक्तों का क्लेश दूर करते हैं. वस्तुतः श्रीराम तक की यात्रा बिना हनुमानजी की सहायता के संभव नहीं है और उन जैसे निःस्पृह स्वभाव वाले को निश्छल प्रेम के सिवा कुछ भी न चाहिए. इसलिए हनुमानजी सर्वजनसुलभ हैं.
आज देश के कोने-कोने में गांव और शहर सर्वत्र उनकी पूजा-अर्चना के लिए लोग तत्पर रहते हैं और अनेकानेक भव्य मंदिर उनको समर्पित हैं. लोग अपनी मनोकामना की साध लिए बड़े भरोसे के साथ हनुमानजी की शरण में आते हैं. पर हमें यह भी जरूर याद रखना चाहिए कि सच्ची भक्ति तो भक्त और भगवान के बीच किसी तरह का हिसाब-किताब नहीं करती.
वह तो निर्मल मन से समर्पण और अखंड प्रीति चाहती है. हनुमानजी की भक्ति हमें अपने जीवन में अभय, परदुखकातरता, निष्कपट मित्रता, सदाचार और ईश्वर के प्रति समर्पण जैसे मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है.