गुरु पूर्णिमा पर विशेषः बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 10, 2025 14:48 IST2025-07-10T14:47:46+5:302025-07-10T14:48:37+5:30

संसार में मुश्किल है चाँद बनना, जिसका अपना कुछ भी नहीं, मगर उसके बगैर जीवन की कल्पना भी सम्भव नहीं।

Guru Purnima Special Balihari Guru Apno Govind Diyo Batay blog Dr Dharmaraj | गुरु पूर्णिमा पर विशेषः बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय

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Highlightsशिष्य के भटकाव के लिए इतना ही काफी है किंतु उसे तो चाँद से मतलब है।किनारों से  गुजरता है, तब हृदय में रोप देता है, प्रकाश का समुच्चय।

डॉ. धर्मराज

आज सुबह से ही बारिश हो रही है, ये यकायक नहीं है, बल्कि गुरु की महत्वता को प्रदर्शित कर रही है। आज बुद्ध, कबीर, ओशो का दिन है, जो हमें जीना सिखाते हैं। ये चाँद हैं, हमारे जीवन के...जिनके  इर्द-गिर्द शिष्य रूपी बादल घुमड़ते हैं और कमाल देखिए कि हवा बहकाती रहती है मगर दिखती नहीं... बस महसूस होती है, शिष्य के भटकाव के लिए इतना ही काफी है किंतु उसे तो चाँद से मतलब है।

संसार में मुश्किल है चाँद बनना, जिसका अपना कुछ भी नहीं, मगर उसके बगैर जीवन की कल्पना भी सम्भव नहीं। सूर्य की रोशनी लेकर लुटाता रहता है...सिरफिरा और आलोकित करता है हमारा जीवन। यही प्रकाश जब बादलों के किनारों से  गुजरता है, तब हृदय में रोप देता है, प्रकाश का समुच्चय।

प्रकाश की पारदर्शिता सर्वव्यापी है और यही गुरू की...इसीलिए गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास में तय की होगी, ताकि बादलों का समूह घेरे चाँद को, पूरी मस्ती के साथ...पूरी दीवानगी के साथ.. ताकि कोई किनारा नहीं रह जाए, आलोकित हुए बिना। गौतम बुद्ध, जिन्होंने मौन की भाषा सिखाई। वे कहते हैं—“अप्प दीपो भव” अर्थात “अपने दीपक स्वयं बनो।”

यही गुरु की सबसे बड़ी शिक्षा है, निर्भरता से स्वतंत्रता की ओर...कठिनता से सरलता की ओर... गुरु स्वयं प्रकाश नहीं, बल्कि उस प्रकाश की ओर इशारा करने वाला संकेत मात्र है। बुद्ध ने संसार को दिखाया कि निर्वाण कोई दूरस्थ स्वप्न नहीं बल्कि अपने अंदर की उपलब्धि है। कबीर, जिन्होंने निरे शब्दों से शून्य का बखान कर दिया। वे कहते हैं—“साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।” कबीर का गुरु वह है, जो जीवन की व्यर्थता को फटक देता है और सारतत्व शिष्य के भीतर रोप देता है। उनका गुरु आलंकारिक नहीं बल्कि व्यावहारिक है, मानवीय है, सामाजिक है और वह जो जीवन को काटे नहीं बल्कि छांटे। ओशो, जिन्होंने गुरु-शिष्य के मध्य के ‘संकोच’ को तोड़ा और उस संबंध को जीवन का नृत्य बना दिया।

वे कहते है, "गुरु न कोई बाहरी सत्ता है, न कोई अनुशासन। गुरु तो वह दर्पण है, जिसमें तुम स्वयं को देख सको।" ओशो का गुरु तुम्हें बदलता नहीं बल्कि तुम्हें तुम्हारे ही मौलिक रूप में परत-दर-परत खोलता है। गुरु पूर्णिमा, केवल एक तिथि नहीं, बल्कि प्रकाश और पारदर्शिता का उत्सव है। चाँद, जो स्वयं कुछ भी नहीं, सूर्य का ही प्रतिबिम्ब है—फिर भी संसार उसे देखता है, सराहता है, उससे प्रेरणा लेता है।

यही तो गुरु है—सूर्य का संदेशवाहक। जब वह बादलों की ओट से झाँकता है, तो भीतर तक आलोकित कर देता है और हृदय आह्लादित हो उठता है। पूर्णिमा तो हर मास में आती ही है किंतु ये पूर्णिमा अनोखी है... अद्भुत है। ये प्रकाश पुंज इतना सरल व सहज होता है, जिसे शिष्य अपने आगोश में समेटने में हिचक नहीं करता, उसके पास पूरा अवसर होता है, भरने का।

अब वो इसे मुट्ठी भरे या हृदय में, अपने जीवन उतारे या उतर जाए इसमें...प्रकाश को देखकर आँखें बंद कर ले या आँखों के रास्ते होने दे उस घटना को और महसूस करता रहे साक्षी होकर, ये सब शिष्य पर निर्भर करता है। तभी तो कबीर ने कहा, बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय...।

Web Title: Guru Purnima Special Balihari Guru Apno Govind Diyo Batay blog Dr Dharmaraj

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