Dussehra 2025: आज हम विजय पर्व दशहरा मना रहे हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि विजय के असली मायने क्या हैं? इसे रावण के प्रसंग से ज्यादा बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. रावण के संपूर्ण व्यक्तित्व का विश्लेषण करें तो वह गुणों की खान था. वह चारों वेदों और कई शास्त्रों का ज्ञाता था, और उसने अपने ज्ञान से कई ग्रंथों की रचना भी की. वह भगवान शिव का भक्त था. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ‘शिव तांडव स्तोत्र’ की रचना की और उसे गाया भी. उसकी वीरता, निडरता और साहसिकता गजब की थी. उसके इन गुणों की प्रशंसा स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी.
उसकी पहचान एक न्यायप्रिय शासक की थी जिसके राज्य में अस्पताल और गुरुकुल की व्यवस्था नि:शुल्क थी. वह कुशल व्यापारी था, उसकी प्रजा सुखी और संपन्न थी. तो फिर ऐसे व्यक्ति का प्रभु श्री राम ने वध क्यों किया? क्योंकि अपने गुणों का उसे अहंकार हो गया था. उसे लगने लगा था कि वह जो चाहे कर सकता है. इसी मतांधता में उसने सीता का अपहरण कर लिया.
और फिर सोने की लंका का सर्वनाश हो गया. तो ये विजय पर्व हमें इस बात का संदेश देता है कि अहंकार नाम का एक अवगुण ही सर्वनाश के लिए काफी है. अहंकार व्यक्ति को व्यक्ति से दूर कर देता है, समाज से दूर कर देता है बल्कि यूं कहें कि अहंकारी व्यक्ति समाज के लिए विष की बूंदों की तरह हो जाता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
इसके ठीक विपरीत आप श्री राम के व्यक्तित्व का आकलन करें तो रावण से लड़ने के लिए उनके पास क्या सामर्थ्य थे? कुछ भी नहीं लेकिन जंगल में वे जहां भी गए, उन्होंने हर किसी का दिल जीता.उन्होंने सबरी के जूठे बेर खाए और अहिल्या का उद्धार किया. सामाजिक समता का यह अनुपम उदाहरण प्रतीत होता है. हम इसीलिए श्री राम को पूजते हैं.
आज दो अक्तूबर का दिन कई और मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण है. आज के ही दिन भारत में एक ऐसे सपूत का जन्म हुआ जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी में जकड़े हुए देश में अजादी की भूख जगाई. सत्याग्रह का ऐसा मंत्र दिया जिसकी ताकत को दुनिया ने इतने सशक्त तरीके से कभी महसूस ही नहीं किया था.
इस सपूत को हम मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से जानते हैं. विंस्टन चर्चिल उन्हें नंगा फकीर कहता था लेकिन उसी फकीर ने अंग्रेजों की ऐसी सत्ता को उखाड़ फेंका जिसके राज में सूरज नहीं डूबता था. दरअसल गांधी ने पूरे भारत के दिल को जीत कर एक शक्ति के रूप में परिवर्तित कर दिया था जिसकी काट अंग्रेज निकाल न सके.
आज लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिन हैं जिन्होंने अपनी निडरता और जय जवान, जय किसान के नारे से देश का दिल ऐसा जीता कि पूरे देश ने झोली खोल दी. आज का दिन भारत में सामाजिक विद्रूपताओं के प्रति अलख जगाने का भी दिन है. बाबासाहब आंबेडकर के साथ हजारों अनुयायियों ने आज के दिन ही बौद्ध धर्म को अपनाया.
सामाजिक विषमताओं के खिलाफ वह क्रांतिकारी कदम था. किसी भी देश की समृद्धि इसी बात में समाहित होती है कि वहां सामाजिक समता का स्वरूप कैसा है. भेदभाव सामाजिक ताने-बाने पर आघात करता है. दशहरा का पर्व एक और मायने में खास बन चुका है क्योंकि सौ साल पहले आज के ही दिन दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक और वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई.
आज यह संगठन वैश्विक स्वरूप ले चुका है. दुनिया के बहुत सारे देशों में इसका विस्तार हो चुका है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास आनुषंगिक संगठनों का विस्तृत स्वरूप है जो बिना शोर किए काम करता रहता है. इस संगठन के कार्य इतने व्यापक हैं कि दुनिया में इस तरह का कोई दूसरा सामाजिक और वैचारिक संगठन नहीं है.
इस संगठन ने सफलता के नए प्रतिमान गढ़े हैं. यदि विश्लेषण करें तो इस संगठन की व्यापकता भी वही दिल जीतने वाला तत्व है जिसने इसे इतना बड़ा और इतना प्रभावी बनाया है. इसलिए आज विजयादशमी के दिन हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम एक-दूसरे का दिल जीतें. अपने प्रभाव और हथियारों के बल पर जो विजय हासिल की जाती है वह कभी चिरस्थाई नहीं होती. दिल जीत कर ही हम सामाजिक समता और एकता को प्रभावी स्वरूप दे सकते हैं. पूरे देश को विजयादशमी की हार्दिक बधाई.