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दीपावली: भौतिक, आत्मिक उजाले का महापर्व, सच्चा उजाला बाहर नहीं, भीतर हो

By ललित गर्ग | Updated: October 21, 2025 05:20 IST

श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका.

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ठळक मुद्देदीपावली का संदेश है कि सच्चा उजाला बाहर नहीं, बल्कि भीतर होना चाहिए.‘उज्ज्वलता’ ही सच्ची ‘धन्यता’ है, वही हमारे कर्म, करुणा और विवेक का उजाला है.अज्ञान से ज्ञान की ओर, नकार से स्वीकार की ओर बढ़ना.

दीपावली केवल दीपों का ही पर्व नहीं है बल्कि यह आत्मा के भीतर बसे अंधकार को मिटाने की साधना का अनुष्ठान है. यह भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जो जन-जन के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली का उजास फैलाती है. पांच दिवसीय इस उत्सव की श्रृंखला धनतेरस से आरंभ होकर भाई दूज तक चलती है, पर इसका अर्थ केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है. दीपावली केवल एक त्यौहार नहीं, इसका धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व भी है. दीपावली का संदेश है कि सच्चा उजाला बाहर नहीं, बल्कि भीतर होना चाहिए.

हमारी आंतरिक ‘उज्ज्वलता’ ही सच्ची ‘धन्यता’ है, वही हमारे कर्म, करुणा और विवेक का उजाला है. यह पंच दिवसीय पर्वों की श्रृंखला भीतर बसे अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष और लोभ जैसे नरकासुरों को समाप्त करने का दुर्लभ अवसर है.  दीपावली का मूल भाव है अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, नकार से स्वीकार की ओर बढ़ना.

जब लाखों दीप जलते हैं, तो वे केवल घरों को नहीं, हृदयों को भी प्रकाशित करते हैं.  प्रत्येक दीप हमें यह संदेश देता है कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, जीवन में धर्म के दीप जलते रहना जरूरी है. दीपावली अब केवल राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय पर्व बन गया है.

यह दुनिया भर में  फैले भारतवंशियों द्वारा मनाया जाता है- श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका.

भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है, अन्य दूसरे स्थानों में यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है.  

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