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अशोक प्रियदर्शी का ब्लॉग: मकर संक्रांति- आस्था और विज्ञान के अद्भुत समन्वय का पर्व

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 14, 2021 12:25 IST

मकर संक्रांति का पर्व ऊर्जा के स्रोत सूर्य की आराधना का मौका है. सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश के दिन ये पर्व मनाया जाता है. पूरे भार में इस दिन अलग-अलग नामों से कई पर्व मनाए जाते हैं.

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ठळक मुद्देसनातन परंपरा में साधारणतया मकर का संबंध मकर राशि से, सूर्य के इस राशि में प्रवेश पर मकर संक्रांति मनाई जाती हैमकर राशि के स्वामी शनि हैं, इस दिन से उत्तरायण हो जाते हैं सूर्यपूरी सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत सूर्य की अराधना का दिन है मकर संक्रांति, ये स्वस्थ व्यक्ति और समाज का संकल्प पर्व

देवी पुराण में कहा गया है कि मनुष्य की एक बार पलक झपकने में लगने वाले समय का तीसवां भाग तत्पर कहलाता है. तत्पर का सौवां भाग त्रुटि कहलाता है और त्रुटि के सौवें भाग में संक्रांति होती है. 

इतने सूक्ष्म काल में संक्रांति कर्म संपन्न करना संभव नहीं है, अत: उसके आसपास का काल शुभ माना जाता है. मकर संक्रांति का पर्व पूरी सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत सूर्य की आराधना के रूप में मनाया जाता है. 

मकर संक्रांति अपने मूल में आस्था और विज्ञान का अद्भुत समन्वय है. सूर्य के बिना जीव और जीवन नहीं है. अत: मकर संक्रांति स्वस्थ व्यक्ति और समाज का संकल्प पर्व है.

मकर को लेकर मान्यताएं क्या हैं

सनातन परंपरा में साधारणतया मकर का संबंध मकर राशि से माना जाता है. यह बारह राशियों में से एक है. दूसरी ओर, पौराणिक कथाओं में मकर एक मिथकीय प्राणी है. यह देवी गंगा एवं वरुणदेव का वाहन है. यह प्रेम और वासना के देवता- कामदेव का प्रतीक चिह्न् भी है और उनके ध्वज, जिसे कर्क ध्वज कहा जाता है, पर चित्रित है. 

परंपरागत रूप से मकर को एक जलीय प्राणी माना गया है. कुछ पारंपरिक कथाओं में इसे  मगरमच्छ  से जोड़ा गया है, जबकि कुछ अन्य में इसे  डॉल्फिन माना गया है. कुछ स्थानों पर इसका चित्रण एक ऐसे जीव के रूप में किया गया है, जिसका शरीर तो  मीन  का है, लेकिन सिर गज  का पारंपरिक रूप है. 

मकर राशि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के तीन चरण- श्रवण एवं घनिष्ठा नक्षत्र के दो चरणों से बनी है. मान्यता यह भी है कि जब सूर्य मकर राशि पर आते हैं तो वह उत्तरायण की ओर अग्रसर हो जाते हैं. मकर राशि के स्वामी शनि हैं. 

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश 

मकर राशि का बल रात्रि एवं दिशा दक्षिण है. वैसे मकर संक्रांति का पर्व भी किसी न किसी रूप में मकर राशि से ही जुड़ा है. सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश का नाम ही मकर संक्रांति  है. वैसे धनु बृहस्पति की राशि है. इसमें सूर्य के रहने पर  मलमास होता है. सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास  समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं.

कहा जाता है कि इस दिन से देवलोक का द्वार खुल जाता है. इस अवसर पर लोग उत्सव मनाते हैं. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब संक्रांति मनाया जाता है. इसलिए इसे सूर्योपासना का पर्व भी कहते हैं.

बता दें कि किसी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है. संक्रांति का शाब्दिक अर्थ है- गति या चाल. और जीवन के रूप में हम जिसे भी जानते हैं, उसमें गति निहित है.

मकर संक्रांति के देश भर में कई रूप

मकर संक्रांति का पर्व पूरी सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत सूर्य की आराधना के रूप में मनाया जाता है. मकर संक्रांति अपने मूल में आस्था और विज्ञान का अद्भुत समन्वय है. सूर्य के बिना जीव और जीवन नहीं है. अत: मकर संक्रांति का पर्व स्वस्थ व्यक्ति और समाज का संकल्प पर्व है. 

मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है. यहां इस दिन तिल, चावल और दाल की खिचड़ी बनाई जाती है. यह चार दिन तक चलता है. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व केरल में यह पर्व संक्रांति के नाम से जाना जाता है. 

इससे एक दिन पूर्व पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे  खिचड़ी कहा जाता है. उत्तर प्रदेश में इसे दान का पर्व भी माना जाता है. पश्चिम बंगाल में तिलुवा संक्रांति तथा असम में इसे बिहू कहा जाता है.

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