Makar Sankranti 2025: भारतीय संस्कृति में जीवनदायी सूर्य का है केंद्रीय स्थान
By प्रमोद भार्गव | Published: January 15, 2025 03:16 PM2025-01-15T15:16:17+5:302025-01-15T15:17:34+5:30
Makar Sankranti 2025: ऋग्वेद में लिख गए थे, ‘आप्रा द्यावा पृथिवी अंतरिक्षः सूर्य आत्मा जगतस्थश्च.’ अर्थात विश्व की चर तथा अचर वस्तुओं की आत्मा सूर्य है. ऋग्वेद के मंत्र में सूर्य का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व उल्लेखित है.

file photo
Makar Sankranti 2025: आमतौर से सूर्य को प्रकाश और गर्मी का अक्षुण्ण स्रोत माना जाता है, लेकिन अब वैज्ञानिक यह जान गए हैं कि यदि सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो जाए तो पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीव-जंतु तीन दिन के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे. सूर्य के हमेशा के लिए अंधकार में डूबते ही वायुमंडल में मौजूद समूची जलवाष्प ठंडी होकर बर्फ के रूप में गिर जाएगी और असहनीय शीतलता से कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह पाएगा. करीब 50 करोड़ साल पहले से प्रकाशमान सूर्य की प्राणदायिनी ऊर्जा की रहस्य-शक्ति को हमारे ऋषि-मुनियों ने पांच हजार साल पहले ही जान लिया था और वे ऋग्वेद में लिख गए थे, ‘आप्रा द्यावा पृथिवी अंतरिक्षः सूर्य आत्मा जगतस्थश्च.’ अर्थात विश्व की चर तथा अचर वस्तुओं की आत्मा सूर्य है. ऋग्वेद के मंत्र में सूर्य का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व उल्लेखित है.
वैदिक रूप में सूर्य को काल गणना का कारण मान लिया गया था. ऋतुओं में परिवर्तन का कारण भी सूर्य को माना गया. वैदिक समय में ऋतुचक्र के आधार पर सौर वर्ष या प्रकाश वर्ष की गणना शुरू हो गई थी, जिसमें एक वर्ष में 360 दिन रखे गए. वर्ष को वैदिक ग्रंथों में संवत्सर नाम से जाना जाता है. नक्षत्र, वार और ग्रहों के छह महीने तक सूर्योदय उत्तर-पूर्व क्षितिज से, अगले छह माह दक्षिण पूर्व क्षितिज से होता है.
इसलिए सूर्य का काल विभाजन उत्तरायण और दक्षिणायन के रूप में है. उत्तरायण के शुरू होने के दिन से ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. यही दिन मकर तथा कर्क राशि से सूर्य को जोड़ता है. इसलिए उस दिन भारत में मकर-संक्रांति का पर्व मनाने की परंपरा है. वेदकाल में यह साफ तौर से पता लगा लिया गया था कि प्रकाश, ऊर्जा, वायु और वर्ष के लिए समस्त भूमंडल सूर्य पर ही निर्भर है.
वेदकालीन सूर्य में सात प्रकार की किरणें और सूर्य रथ में सात घोड़ों के जुते होने का उल्लेख है. सूर्य रथ का होना और उसमें घोड़ों का जुता होना अतिरंजनापूर्ण लगता है. अस्तु सूर्य रथ की कल्पना काल की गति के रूप में की गई. सात प्रकार की किरणों को खोजने में आधुनिक वैज्ञानिक भी लगे हैं.
दुनिया के सबसे बड़े मेले सिंहस्थ और कुंभ भी सूर्य के एक निश्चित स्थिति में आने पर लगते हैं. सिंहस्थ का पर्व तब मानाया जाता है, जब सिंह राशि में सूर्य आता है. इसमें स्नान एक निश्चित मुहूर्त में किया जाता है. वैदिक ग्रंथों के अनुसार देव और दानवों ने समुद्र-मंथन के दौरान अमृत कलश प्राप्त किया था. इसे लेकर विवाद हुआ.
तब विष्णु ने सुंदरी रूप बना देवताओं को अमृत और दानवों को मदिरा पान कराया. राहु ने यह बात पकड़ ली. वह अमृत कलश ले भागा. विष्णु ने सुदर्शन चक्र छोड़ राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया. इससे सिर ‘राहु’ और धड़ ‘केतु’ कहलाया. इस छीना-झपटी में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां-वहां सिंहस्थ और कुंभ के मेले लगने लगे.