गुरु गोविंद सिंह जी का 356वां प्रकाशोत्सव, सिखों के 10वें गुरु, दिए थे जीवन जीने के पांच सिद्धांत

By योगेश कुमार गोयल | Published: December 29, 2022 11:02 AM2022-12-29T11:02:01+5:302022-12-29T11:02:01+5:30

गुरु गोविंद सिंह जी ने ‘खालसा वाणी’ दी, जिसे ‘वाहे गुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह’ कहा जाता है. उन्होंने जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिए थे, जिन्हें ‘पंच ककार’ कहा जाता है.

356th Prakashotsav of Guru Gobind Singh Ji, 10th Guru of Sikhs | गुरु गोविंद सिंह जी का 356वां प्रकाशोत्सव, सिखों के 10वें गुरु, दिए थे जीवन जीने के पांच सिद्धांत

गुरु गोविंद सिंह जी का आज 356वां प्रकाशोत्सव

हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 1667 ई. में पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1723 विक्रम संवत् को पटना साहिब में हुआ था. प्रतिवर्ष इसी दिन गुरु गोविंद सिंह जी का प्रकाशोत्सव मनाया जाता है. सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी का 356वां प्रकाशोत्सव 29 दिसंबर को मनाया जा रहा है.

बचपन में गुरु गोविंद सिंह जी को गोविंद राय के नाम से जाना जाता था. उनके पिता गुरु तेगबहादुर सिखों के 9वें गुरु थे. पटना में रहते हुए गुरुजी तीर-कमान चलाना, बनावटी युद्ध करना इत्यादि खेल खेला करते थे, जिस कारण बच्चे उन्हें अपना सरदार मानने लगे थे. पटना में वे केवल 6 वर्ष की आयु तक ही रहे और सन् 1673 में सपरिवार आनंदपुर साहिब आ गए. यहीं पर उन्होंने पंजाबी, हिंदी, संस्कृत, ब्रज, फारसी भाषाएं सीखने के साथ घुड़सवारी, तीरंदाजी, नेजेबाजी इत्यादि युद्धकलाओं में भी महारत हासिल की. 

कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए उनके पिता और सिखों के 9वें गुरु गुरु तेगबहादुर जी द्वारा नवंबर 1975 में दिल्ली के चांदनी चौक में शीश कटाकर शहादत दिए जाने के बाद मात्र 9 वर्ष की आयु में ही गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के 10वें गुरु पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली और खालसा पंथ के संस्थापक बने. 

शौर्य, साहस, त्याग और बलिदान के सच्चे प्रतीक तथा इतिहास को नई धारा देने वाले अद्वितीय, विलक्षण और अनुपम व्यक्तित्व के स्वामी गुरु गोविंद सिंह जी को इतिहास में एक विलक्षण क्रांतिकारी संत व्यक्तित्व का दर्जा प्राप्त है. 
अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उनका वाक्य ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं तां गोबिंद सिंह नाम धराऊं’ सैकड़ों वर्षों बाद आज भी प्रेरणा और हिम्मत देता है. 

‘भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन’ वाक्य के जरिये वे कहते थे कि किसी भी व्यक्ति को न किसी से डरना चाहिए और न ही दूसरों को डराना चाहिए. उन्होंने समाज में फैले भेदभाव को समाप्त कर समानता स्थापित की थी और लोगों में आत्मसम्मान तथा निडर रहने की भावना पैदा की.

1699 में बैसाखी के दिन तख्त श्री केसगढ़ साहिब में कड़ी परीक्षा के बाद पांच सिखों को ‘पंज प्यारे’ चुनकर गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, जिसके बाद प्रत्येक सिख के लिए कृपाण या श्रीसाहिब धारण करना अनिवार्य कर दिया गया. 

वहीं पर उन्होंने ‘खालसा वाणी’ भी दी, जिसे ‘वाहे गुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह’ कहा जाता है. उन्होंने जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिए थे, जिन्हें ‘पंच ककार’ (केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा) कहा जाता है. गुरु गोविंद सिंह जी ने ही ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के स्थायी गुरु का दर्जा दिया था.

Web Title: 356th Prakashotsav of Guru Gobind Singh Ji, 10th Guru of Sikhs

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