महेश परिमल का ब्लॉग: दूर हो रही बुजुर्गों-युवाओं के बीच की संवादहीनता

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 28, 2020 07:10 AM2020-07-28T07:10:58+5:302020-07-28T07:10:58+5:30

Mahesh Parimal's blog: communication gap between the elderly and the young is going away | महेश परिमल का ब्लॉग: दूर हो रही बुजुर्गों-युवाओं के बीच की संवादहीनता

महेश परिमल का ब्लॉग: दूर हो रही बुजुर्गों-युवाओं के बीच की संवादहीनता

Highlightsआज के युवाओं के लिए तो यही कहा जाता है कि ये तो पूरी तरह से मोबाइल पर ही सिमट कर रह गई हैयुवा पीढ़ी समझदार है, इसे समझने में बुजुर्गों को काफी वक्त लग गया.

इन दिनों चारों ओर आत्मनिर्भरता की बातें हो रही हैं. आत्मनिर्भर यानी अपने आप पर भरोसा रखकर आगे बढ़ना. किसी से सहायता की अपेक्षा न रखना. पर इस सूत्र वाक्य ने न जाने कितनों को पूरी तरह से नई पीढ़ी पर आश्रित कर दिया है, क्या इस पर किसी ने ध्यान दिया? हर पीढ़ी को अपनी नई पीढ़ी से यही शिकायत होती है कि ये नई पीढ़ी किसी की नहीं सुनती. अपने आप में ही मस्त रहती है.

आज के युवाओं के लिए तो यही कहा जाता है कि ये तो पूरी तरह से मोबाइल पर ही सिमट कर रह गई है, इससे कुछ भी अपेक्षा रखना बेकार है. बुजुर्गों के ताने सुन-सुनकर यह पीढ़ी बड़ी हो रही है. कई युवा तो तानों से तंग आकर उग्र भी बन गए. उनके व्यवहार में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया. पर आज जब सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है, तब ताने देने वाले बुजुर्ग अब उसी युवा पीढ़ी की शरण में हैं. बेटा जी, हमें भी कुछ बता दो. हमारे एकाउंट से रुपए निकल रहे हैं, हमें पता ही नहीं चल रहा है. न जाने हमने किस पर क्लिक कर दिया, हम ठगे जा रहे हैं.’ दूसरी ओर यह भी सुनने को मिलता है-बिटिया, जरा यह तो बताना कि आज ऑनलाइन क्लास में कितने बच्चे आए थे? इसे म्यूट कैसे किया जाए? मेरी आवाज बच्चों तक कैसे नहीं पहुंच पा रही है. इसे बताने के लिए बिटिया ही आगे आती है. अब तो शिक्षिका मां की आॅनलाइन पढ़ाई बिना बिटिया के नहीं हो पाती.

अब तक जिस युवा पीढ़ी को हम नाकारा बता रहे थे, वही पीढ़ी अब सामने आकर अपने अभिभावकों का सहारा बन रही है. अब परस्पर सोच बदल रही है. दोनों पीढ़ियों के बीच संवादहीनता कम हुई है. अब वे करीब आने लगे हैं. शिकवा-शिकायतें भी नहीं रहीं. बुजुर्गों को अब समझ में आने लगा है कि दिनभर मोबाइल से चिपके रहने वाली यह पीढ़ी कुछ नया करना भी जानती है. अब आसानी से भुगतान हो जाता है, बिजली और टेलीफोन बिल. सामान लेने भी बाहर नहीं जाना पड़ता. घर से ही आॅर्डर दो, सामान आ जाता है. उसका भी भुगतान कुछ ही पलों में हो जाता है. पेपर वाले, दूध वाले को भी भुगतान के लिए नहीं कहना पड़ता. समय होते ही सबका भुगतान हो जाता है. किसी को कोई परेशानी नहीं.

युवा पीढ़ी समझदार है, इसे समझने में बुजुर्गों को काफी वक्त लग गया. अब तक वह केवल उन्हें कोसती ही रहती थी. इस चक्कर में कई बुजुर्ग बच्चों से दूर हो गए थे. अब बच्चे अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी के पुराने दोस्तों-परिचितों का पता लगाकर उनकी बातचीत फोन से करवा देते हैं. बच्चों के द्वारा दिया गया यह तोहफा उन्हें बहुत भाया. संवेदनाओं के टूटते तार अब जुड़ने लगे हैं.

Web Title: Mahesh Parimal's blog: communication gap between the elderly and the young is going away

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