हरीश गुप्ता का ब्लॉग: पवार-राहुल के बीच नहीं हुई कोई गुप्त बैठक

By हरीश गुप्ता | Updated: December 17, 2020 14:16 IST2020-12-17T09:29:40+5:302020-12-17T14:16:34+5:30

शरद पवार ने राहुल गांधी को लेकर हाल में जो 'स्थिरता की कमी' वाला बयान दिया था, उसे लेकर खूब चर्चा हुई. राहुल इस बयान से नाराज थे लेकिन इसके बावजूद किसानों के मुद्दे पर विपक्ष की एकजुटता दिखाने के लिए वे गोवा से दिल्ली पहुंचे।

Harish Gupta's blog: no secret meeting between Sharad Pawar and Rahul Gandhi | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: पवार-राहुल के बीच नहीं हुई कोई गुप्त बैठक

शरद पवार और राहुल गांधी की 'गुप्त बैठक' की इनसाइड स्टोरी (फाइल फोटो)

Highlightsशरद पवार के बयान से नाराजगी के बावजूद किसानों के मुद्दे पर एकजुटता दिखाने पहुंचे थे राहुल गांधीशरद पवार से राहुल गांधी की कोई अन्य निजी मुलाकात की खबरें गलत, इसका कोई आधार नहींकेवल राष्ट्रपति से मुलाकात के इंतजार के दौरान मिले थे राहुल गांधी और शरद पवार, कोई अन्य राजनीतिक बातचीत नहीं हुई

जब पांच विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के बारे में मुलाकात की थी, तब राहुल गांधी भी साथ थे. ऐसे में राकांपा प्रमुख शरद पवार के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच पिछले शुक्रवार को कोई निजी बैठक नहीं हुई थी और इस संबंध में आने वाली खबरों का कोई आधार नहीं है. 

वास्तव में दोनों ने राष्ट्रपति भवन में एक संयुक्त ज्ञापन देने के लिए आने से पहले एक दूसरे से बात नहीं की थी. राहुल गांधी शरद पवार के उस हालिया वक्तव्य से बहुत निराश थे, जिसमें उन्होंने उनके बारे में कहा था कि कांग्रेस सांसद में ‘स्थिरता की कमी’ है. 

इस ताने ने गांधी परिवार के वारिस को नाराज कर दिया था. लेकिन वे किसानों के मुद्दे पर विपक्षी भाईचारे को प्रदर्शित करने का अवसर नहीं चूकना चाहते थे. इसलिए उन्होंने विशेष रूप से राष्ट्रपति भवन में उपस्थित होने के लिए गोवा से दिल्ली के लिए उड़ान भरी. 

राहुल गांधी और पवार की मुलाकात तभी हुई थी जब वे राष्ट्रपति के इंतजार में  बैठे थे. वे एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए, शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया और पवार ने बताया कि उन्होंने सोनियाजी को उनके जन्मदिन पर फोन किया था. लेकिन दोनों ने हाथ नहीं मिलाया और कोई अन्य राजनीतिक बातचीत भी नहीं हुई. 

उस कक्ष में सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई महासचिव डी. राजा और डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन सहित सभी पांच विपक्षी नेताओं ने अगले कुछ मिनटों के दौरान राष्ट्रपति से मिल कर क्या कहना है, इसके बारे में विचार-विमर्श किया. बैठक के तुरंत बाद पवार साहब मुंबई के लिए रवाना हो गए और राहुल गांधी से उनकी कोई निजी मुलाकात नहीं हुई.

येचुरी नए समन्वयक

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के नए समन्वयक के रूप में उभर रहे हैं. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्टो में कहा गया है कि राहुल गांधी राष्ट्रपति के साथ विपक्षी नेताओं की मुलाकात के मुख्य शिल्पकार थे. लेकिन अब यह सामने आया है कि यह राहुल गांधी नहीं बल्कि सीताराम येचुरी थे जिन्होंने इन प्रयासों में समन्वय किया और पहल की. 

आम तौर पर अनुभवी समाजवादी शरद यादव ऐसे प्रयासों का समन्वय करते थे. लेकिन कोविड और उससे संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वे दो महीने से अस्पताल में भर्ती हैं. अहमद पटेल की मौत विपक्ष के लिए एक और झटका था, जिनके पार्टी लाइन से हटकर सभी के साथ अच्छे संबंध थे. 

पटेल द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका के लिए कांग्रेस ने अभी तक किसी को नहीं चुना है. ऐसी परिस्थिति में सीताराम येचुरी आगे आए थे. दिलचस्प बात यह है कि राजद के तेजस्वी यादव से येचुरी ने दिल्ली आने के लिए संपर्क किया था ताकि वे प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बन सकें क्योंकि राष्ट्रपति ने छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की अनुमति दी थी. 

तेजस्वी यादव ने लेकिन किसी बहाने से खुद को अलग कर लिया और कहा कि राजद के एक और नेता मनोज झा इसमें शामिल होंगे जो दिल्ली में हैं. लेकिन झा ने इस आधार पर मना कर दिया कि उनकी मां बीमार हैं. शायद बिहार विधानसभा चुनावों में कमजोर प्रदर्शन के कारण राहुल गांधी से राजद दुखी है. डीएमके ने भी एलंगोवन के रूप में एक हल्के कद के नेता को भेजा.

सिख फैक्टर  

भाजपा को पहले पंजाब और अब अन्य राज्यों से भी किसानों के आंदोलन को संभालने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पंजाब के किसानों से बातचीत के लिए कोई विशिष्ट सिख नेता अपने पास नहीं होने के कारण भाजपा असहाय है. 

नवजोत सिंह सिद्धू ने गहरी नाराजगी के साथ पार्टी छोड़ दी और लोकसभा के वरिष्ठ सांसद एस. एस. अहलूवालिया की कुछ अज्ञात कारणों से मोदी सरकार के साथ दूरी बनी हुई है. 

केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी मोदी के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति हैं. लेकिन वे मंत्री बनने से पहले एक राजनयिक थे. अकाली अब भाजपा के साथ नहीं हैं. दूसरी बात यह है कि सिखों के साथ उस तरह से व्यवहार नहीं किया जा सकता जिस तरह से सीएए प्रदर्शनकारियों से निपटा गया था. 

सिख प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया गया तो इसके गंभीर राजनीतिक नतीजे हो सकते हैं. सरकार ‘बातचीत के जरिए थकाने की रणनीति’ के तहत एक के बाद एक मंत्रियों को सामने कर रही है. मधुर भाषी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को इस काम में लगाया गया है.

और अंत में

एसपीजी के निदेशक के रूप में अरुण कुमार सिन्हा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, नमो प्रशासन ने पद को महानिदेशक के पद पर अपग्रेड करने का निर्णय लिया. सिन्हा इससे खुश हो सकते हैं, लेकिन पदोन्नति के लिए इंतजार कर रहे लोग नाराज हैं. मोदी ने सिन्हा की क्षमता पर विश्वास दिखाया जिनका काम प्रधानमंत्री की हर समय सुरक्षा करना है.  

Web Title: Harish Gupta's blog: no secret meeting between Sharad Pawar and Rahul Gandhi

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