आलोक मेहता का ब्लॉग: विद्रोह और निराशा से कैसे संभव हो पाएगी देश की तरक्की?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 26, 2020 07:35 AM2020-04-26T07:35:26+5:302020-04-26T07:35:26+5:30

जर्मनी के टीवी चैनल डीडब्ल्यू (अंग्रेजी भाषा में वॉइस ऑफ जर्मनी) को एक इंटरव्यू में अरुंधति ने कह दिया कि भारत में कोरोना पर नियंत्नण के नाम पर मुस्लिमों का नरसंहार हो रहा है. यही नहीं करोड़ों गरीब भुखमरी के शिकार हो रहे हैं. यह इंटरव्यू सुनकर सचमुच मुझे बेहद बेचैनी हो गई.

Alok Mehta blog: How will the country growth be possible due to rebellion and despair? | आलोक मेहता का ब्लॉग: विद्रोह और निराशा से कैसे संभव हो पाएगी देश की तरक्की?

अरुंधति रॉय की फाइल फोटो।

अरुंधति रॉय अंग्रेजी की एक प्रसिद्ध लेखिका रहीं और फिर क्रांतिकारी राजनीतिक-सामाजिक बदलाव के अपने अभियान में सक्रिय रही हैं. निश्चित रूप से उन्हें भारत से अधिक विदेशों में पढ़ा-सुना जा रहा होगा. पिछले साल वह कश्मीर को पाकिस्तान को सौंपने या आजाद करने की वकालत कर रही थीं. पिछले सप्ताह उन्होंने और बड़ा विस्फोट कर दिया. जर्मनी के टीवी चैनल डीडब्ल्यू (अंग्रेजी भाषा में वॉइस ऑफ जर्मनी) को एक इंटरव्यू में अरुंधति ने कह दिया कि भारत में कोरोना पर नियंत्नण के नाम पर मुस्लिमों का नरसंहार हो रहा है. यही नहीं करोड़ों गरीब भुखमरी के शिकार हो रहे हैं.

यह इंटरव्यू सुनकर सचमुच मुझे बेहद बेचैनी हो गई. भारत में एक समुदाय के नरसंहार की कल्पना कैसे की जा सकती है? जर्मनी के इसी मीडिया संस्थान में तीन दशक पहले मेरे साथ काम करती रही उर्दू की संवेदनशील ब्रॉडकास्टर ने फोन करके मुझसे जानना चाहा कि क्या भारत में स्थिति इतनी खराब है. मैंने उन्हें बताया कि ऐसा कतई नहीं है और वह इस तरह के अतिवादी लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दें.

असल में किसी देश में समुदाय विशेष के नरसंहार की बात सुनते ही जर्मनी के नात्सी शासनकाल में लाखों यहूदियों को भट्टियों में डालकर मारे जाने का दृश्य आंखों और दिमाग में आते ही शरीर कांपने लगता है. संभवत: भारत के बहुत कम लोगों ने जर्मनी और पोलैंड के उन नरसंहार के भयावह केंद्र (औस्वित्ज़) देखे होंगे, जहां आज भी खंडहरनुमा कमरों में भट्टियां और 1940 से 1944 के बीच लगभग साठ लाख स्त्नी-पुरुषों, बच्चों को जला देने के चित्न भी लगे हैं.

मुझे वे स्थान देखने और लिखने के अवसर मिले हैं. इसलिए जर्मन टीवी पर अरुंधति को देखते-सुनते ही मेरे जैसे भारतीय अथवा जर्मन या यूरोपियन लोगों के सामने वही डरावना दृश्य आ जाता है. इससे यह सवाल उठता है कि कोरोना महामारी के गंभीर संकट के समय ऐसे गलत और गैरजिम्मेदाराना बयान से दुनिया में भारत के बारे में खराब धारणा बनाए जाने के साथ भारत में भी नए ढंग का आतंक नहीं पैदा होगा?  

इसी तरह एक अन्य जाने-माने टीवी एंकर ने अपने कार्यक्रम में समझाया कि गरीब मजदूर, किसानों और अल्पसंख्यकों की असली समस्या से ध्यान हटाने के लिए सरकार और अधिकांश मीडिया संस्थान कोरोना के लिए चीन को बदनाम करने वाली खबरें और टिप्पणियां चला रहे हैं. उनसे कोई यह पूछे कि ब्रिटेन की राजधानी लंदन का मेयर पाकिस्तान मूल का है और भारतीयों की तरह पाकिस्तान के हजारों मुस्लिम वहां या दुनिया के अनेक देशों में रह रहे हैं, क्या वहां चीन से कोरोना वायरस आने, टेस्ट किट खराब पहुंचाने की खबरें विस्तार से नहीं आ रही हैं?

संकट के दौर में इन बातों से भारत में निराशा और विद्रोह की भावना ही पैदा होगी. सरकार से असहमति या नाराजगी की लोकतंत्न में कोई सीमा होनी चाहिए या नहीं?

वर्तमान समय में सत्ता उखाड़ने या सांप्रदायिक मुद्दों को उछालने में राजनीतिक दलों की भूमिका भी खतरनाक होती जा रही है. बिहार और बंगाल के आगामी विधानसभाओं के चुनावों को ध्यान में रखकर पुराने फार्मूले से ही अल्पसंख्यकों की समस्याओं को घावों की तरह उभारने के प्रयास हो रहे हैं. यह सोचना भी मूर्खता होगी कि कोरोना से निपटने की चुनौती रहते हुए कोई सरकार बीस करोड़ जनता का सहयोग लेने और उसे भी समान चिकित्सा या अन्य सहायता दिए बिना काम कर सकती है. देश के हर हिस्से में विभिन्न समुदायों के लोग पचासों वर्षो से साथ में रह रहे हैं, वे एक दूसरे पर निर्भर भी हैं. इस समय  सबको मिलकर कोरोना संकट से निटने की जरूरत है. सफलता-विफलता और सत्ता के खेल बाद में भी जारी रह सकते हैं.

Web Title: Alok Mehta blog: How will the country growth be possible due to rebellion and despair?

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