योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग: उच्च आदर्शो की मिसाल थे शास्त्रीजी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 5, 2019 09:51 AM2019-10-05T09:51:15+5:302019-10-05T09:51:15+5:30
गांधीजी के विचारों व जीवन शैली से शास्त्नीजी बेहद प्रेरित थे. एक बार जब महात्मा गांधी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की कड़े शब्दों में निंदा की गई, उससे शास्त्नीजी बाल्यकाल में ही इतने प्रभावित हुए कि मात्न 11 वर्ष की आयु में ही उन्होंने देश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने की ठान ली थी.
उत्तर प्रदेश में वाराणसी से करीब सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन मुगलसराय में 2 अक्तूबर 1904 को जन्मे भारत के दूसरे प्रधानमंत्नी लाल बहादुर शास्त्नी का संपूर्ण जीवन संघर्षो से भरा था. जब वे मात्न डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. बचपन में शास्त्नीजी बहुत शरारती हुआ करते थे. घर में सभी सदस्य उन्हें ‘नन्हें’ नाम से पुकारते थे.
वे दोस्तों के साथ अक्सर गंगा में तैरने जाया करते थे क्योंकि उन्हें गांव के बच्चों के साथ नदी में तैरना बहुत पसंद था. बचपन में एक बार उन्होंने अपने एक सहपाठी मित्न को डूबने से भी बचाया था. काशी के रामनगर के अपने पुश्तैनी मकान से वे प्रतिदिन सिर पर बस्ता रखकर लंबी गंगा नदी को पार करके स्कूल जाते थे. हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे अक्सर देरी से पहुंचते थे और कक्षा के बाहर खड़े होकर ही पूरे नोट्स बना लेते थे.
गांधीजी के विचारों व जीवन शैली से शास्त्नीजी बेहद प्रेरित थे. एक बार जब महात्मा गांधी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की कड़े शब्दों में निंदा की गई, उससे शास्त्नीजी बाल्यकाल में ही इतने प्रभावित हुए कि मात्न 11 वर्ष की आयु में ही उन्होंने देश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने की ठान ली थी. वर्ष 1920 में 16 साल की उम्र में ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेते हुए शास्त्नीजी भारत के स्वतंत्नता संग्राम का अटूट हिस्सा बन गए थे. गांधीजी ने उस समय देशवासियों से असहयोग आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया था और उनके इस आह्वान पर शास्त्नीजी ने अपनी पढ़ाई छोड़ देने का ही निर्णय कर लिया था.
शास्त्नीजी कहा करते थे कि देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा. उनका कहना था कि यदि कोई भी व्यक्ति हमारे देश में अछूत कहा जाता है तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा. वह कहते थे कि कानून का सम्मान किया जाना चाहिए ताकि हमारे लोकतंत्न की बुनियादी संरचना बरकरार रहे और हमारा लोकतंत्न भी मजबूत बने. वे कहा करते थे कि हमारी ताकत और मजबूती के लिए सबसे जरूरी है लोगों में एकता स्थापित करना.