ब्लॉग: छात्रा के मन का घाव क्या समझौता करने से भर जाएगा ?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: September 26, 2023 10:06 AM2023-09-26T10:06:59+5:302023-09-26T10:08:02+5:30
ऐसे में पीड़ित छात्रा या उसके परिजनों से लिखित शिकायत की अपेक्षा करना जले पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। महिलाओं को सशक्त करने के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं लेकिन धरातल पर वास्तविकता आज भी इसके विपरीत है।
महिला आरक्षण को संसद की हरी झंडी मिलने का जश्न देश में जारी है। तमाम राजनीतिक दल लोकसभा तथा विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाने का श्रेय लेने में जुटे हैं लेकिन किसी भी पार्टी का ध्यान पंजाब में एक छात्रा के साथ हुई शर्मनाक घटना की ओर नहीं है।
उनमें इस घटना की निंदा करने का श्रेय लूटने की होड़ नहीं मची है क्योंकि पंजाब में निकट भविष्य में राज्य विधानसभा के चुनाव नहीं हैं। पंजाब में कक्षा आठवीं की इस छात्रा को माथे और बाजू में चोर लिखकर पूरे स्कूल परिसर में घुमाया गया।
इस निर्दोष छात्रा को इस तरह से अपमानित करने में शाला प्रबंधन ने ही पहल की। घटना को दबाने का पूरा प्रयास किया गया लेकिन मामला उजागर होने के बाद भी नारी अस्मिता को तार-तार कर देने के दोषी खुलेआम घूम रहे हैं। कार्रवाई के लिए नौकरशाही को लिखित शिकायत पीड़ित पक्ष से चाहिए।
जब देश की अदालतें कई बार स्वत: संज्ञान लेकर गंभीर किस्म की घटनाओं में न्याय दिलवाने की पहल करती हैं तो स्थानीय प्रशासन ऐसा क्यों नहीं कर सकता? यह बात किसी से छुपी नहीं है कि ऐसे मामलों को दबाने के लिए कठघरे में खड़ा पक्ष हर तरह के हथकंडों का प्रयोग करता है।
ऐसे में पीड़ित छात्रा या उसके परिजनों से लिखित शिकायत की अपेक्षा करना जले पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। महिलाओं को सशक्त करने के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं लेकिन धरातल पर वास्तविकता आज भी इसके विपरीत है।
नारी हमेशा सबसे आसान निशाना समझी गई है क्योंकि पढ़-लिखकर तरक्की कर लेने के बावजूद पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता नहीं बदली है। नारी के हाथ में कानून थमा देने से क्या होता है, उसे उसका उपयोग करने की पूरी छूट भी तो मिलनी चाहिए।
मणिपुर में महिलाओं की निर्वस्त्र परेड करवाने का मामला हो या राजस्थान में एक किशोरी को भट्ठी में जिंदा जला देने की घटना हो, समाज शर्मसार नहीं होता क्योंकि उसके मन में आज भी यही संकीर्णता समाई हुई है कि सारी गलती महिलाओं की ही है।
राजनीतिक दलों की ओर से शोर तो खूब उठता है लेकिन उसके पीछे मंशा दोषियों को जल्दी से जल्दी सजा दिलवाने या समाज में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने की नहीं, बल्कि अपना राजनीतिक हित साधने की होती है। सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी लिंगभेद अब तक खत्म नहीं हुआ है।
पंजाब के लुधियाना में तो शिक्षा के केंद्र स्थल में आठवीं की छात्रा के साथ शर्मनाक वारदात हुई है। पीड़िता के परिजनों पर इतना दबाव डाला गया कि उन्हें समझौते के लिए झुकना पड़ा।
स्थानीय प्रशासन इसके बावजूद मामले का स्वत: संज्ञान लेकर पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए कदम उठा सकता है लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे बैठा है। किसी ने यह नहीं सोचा कि माथे तथा बाजू पर चोर लिखकर शाला परिसर में घुमाने से वह मानसिक तथा भावनात्मक रूप से कितनी टूट गई होगी!
पीड़ित छात्रा उम्र के ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां छोटी से छोटी घटनाएं या गतिविधियां जीवन को गहराई तक प्रभावित करती हैं. छात्रा खुद पर लगे कलंक से इतनी बुरी तरह आहत हुई कि उसने अपनी जान देने की कोशिश की और बुरी तरह से घायल हो गई।
समझौता करनेवालों और प्रशासन ने क्या सोचा है कि इस छात्रा को तनाव और अवसाद से कैसे उबारा जाए? महिलाओं के खिलाफ अपराध के आधे से भी कम मामले ही सामने आ पाते हैं क्योंकि पीड़िता के मान-अपमान और पीड़ा से ज्यादा परिवार को अपनी प्रतिष्ठा की चिंता सताती रहती है। कभी उसे डायन के नाम पर अपमानित किया जाता है तो कभी चरित्रहीन बताकर मार डाला जाता है।
हम भले ही उच्च शिक्षित हो जाएं, महिलाओं को शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठा दें लेकिन जमीनी हालात तब तक नहीं सुधरेगी, जब तक हमारे मन में महिलाओं को समानता देने का भाव पैदा नहीं होता।