दोस्ती से दुश्मनी की हद तक क्यों जा रहे डोनाल्ड ट्रम्प?, नरेंद्र मोदी के बीच चर्चित ‘भाईचारा’ बुरी तरह से बिगड़ा

By हरीश गुप्ता | Updated: September 3, 2025 05:14 IST2025-09-03T05:14:59+5:302025-09-03T05:14:59+5:30

पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ उनके दोपहर के भोजन ने पीएम को जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान व्हाइट हाउस की यात्रा से इनकार करने के लिए प्रेरित किया.

Why Donald Trump going friendship to enmity much talked about 'brotherhood' him and Narendra Modi deteriorated badly blog harish gupta | दोस्ती से दुश्मनी की हद तक क्यों जा रहे डोनाल्ड ट्रम्प?, नरेंद्र मोदी के बीच चर्चित ‘भाईचारा’ बुरी तरह से बिगड़ा

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Highlightsनई दिल्ली का आखिरी पल में पीछे हटना ट्रम्प को बहुत चुभ गया.भारत-पाक युद्धविराम में मध्यस्थता का श्रेय देने में अनिच्छा दिखाई.अनिच्छा दिखाई तो मोदी ने ट्रम्प की निर्धारित बैठक से भी हाथ खींच लिए.

डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी के बीच कभी चर्चित ‘भाईचारा’ बुरी तरह से बिगड़ गया है, जिसके चलते भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा है. भारत और वाशिंगटन के अंदरूनी सूत्रों ने हाल ही में इस बिगड़ते रिश्तों के कई कारण गिनाए हैं. कई हालिया मीडिया रिपोर्टों में इस दरार का कारण सितंबर 2024 बताया गया है, जब मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारतीय अधिकारियों ने ट्रम्प और कमला हैरिस, दोनों से संपर्क किया था. जब हैरिस ने मुलाकात के प्रति अनिच्छा दिखाई तो मोदी ने ट्रम्प की निर्धारित बैठक से भी हाथ खींच लिए. नई दिल्ली का आखिरी पल में पीछे हटना ट्रम्प को बहुत चुभ गया.

इसके बाद मोदी ने ट्रम्प को भारत-पाक युद्धविराम में मध्यस्थता का श्रेय देने में अनिच्छा दिखाई और पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ उनके दोपहर के भोजन ने पीएम को जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान व्हाइट हाउस की यात्रा से इनकार करने के लिए प्रेरित किया.

ट्रम्प ने 50 प्रतिशत टैरिफ के साथ जवाबी कार्रवाई की और ऐसा प्रतीत होता है कि वे भारत की सॉफ्ट पावर के केंद्र - उसके लोगों पर प्रहार कर रहे हैं. भारतीयों की सभी एच-1बी वीजा में लगभग 75 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जो सिलिकॉन वैली और अमेरिकी टेक फर्मों को इंजीनियर, कोडर और डाटा वैज्ञानिक प्रदान करते हैं.

ट्रम्प के ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट’ में एक ऐसा खंड शामिल है जो विदेशी श्रमिकों द्वारा विदेश भेजे गए धन पर कर लगाता है. शुरुआत में 5 प्रतिशत की दर से पेश किया गया यह लेवी विरोध के बाद 1 प्रतिशत तक कम किया गया, अभी भी भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले पैसों से अरबों की कमाई हो सकती है. भारत दुनिया का शीर्ष धन प्रेषण प्राप्तकर्ता है, जो वित्त वर्ष 2025 में 135.5 बिलियन डॉलर हो गया.

ट्रम्प के आक्रामक रुख से कैसे निपट रहे हैं मोदी?

जैसे-जैसे ट्रम्प दबाव बढ़ा रहे हैं- 50 प्रतिशत टैरिफ लगा रहे हैं, एच-1बी वीजा को कड़ा कर रहे हैं और यहां तक कि विदेशी धन प्रेषण पर शुल्क लगाने का प्रस्ताव भी दे रहे हैं- नई दिल्ली सार्वजनिक टकराव की बजाय मौन प्रतिरोध का रास्ता अपना रही है. इस ठंडे रुख के बावजूद, भारतीय अधिकारी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ‘संवाद के रास्ते खुले हैं’ और व्यापार वार्ता पटरी पर है.

फिर भी, नई दिल्ली विवादों पर स्पष्ट रूप से चुप रही है- चाहे वह ट्रम्प द्वारा भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में मध्यस्थता के बार-बार किए गए दावे हों या कथित उपेक्षाओं से उनके आहत अहंकार की खबरें हों. जानबूझकर रखी गई यह अस्पष्टता भारत को इन बयानों को सही ठहराए बिना बातचीत का प्रस्ताव रखने की अनुमति देती है.

ऐसा ही एक नैरेटिव यह रिपोर्ट है कि मोदी ने ट्रम्प के चार कॉल्स को नजरअंदाज कर दिया- जिससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि भारत चुपचाप अपनी नाराजगी का संकेत दे रहा है.  राजनयिक इसे सामरिक चुप्पी कहते हैं, जिसका उद्देश्य टकराव से बचना है और साथ ही एक सूक्ष्म संदेश भी देना है: भारत को व्यक्तित्व-आधारित मांगों के आगे झुकते हुए नहीं देखा जाएगा.

इस बीच, भारत ने वाशिंगटन तक अपनी पहुंच बढ़ा दी है- ट्रम्प के सलाहकारों, अमेरिकी कांग्रेस के नेताओं और उद्योग लॉबी से जुड़ने के लिए एक दूसरी हाई-प्रोफाइल लॉबिंग फर्म को नियुक्त किया है. लक्ष्य है टैरिफ संबंधी बयानबाजी को शांत करना और संबंधों को एक रणनीतिक साझेदारी के रूप में ढालना, न कि लेन-देन के रूप में.

कहा जा रहा है कि पर्दे के पीछे, भारत ट्रम्प के सख्त रुख को नरम करने के लिए अमेरिकी कॉर्पोरेट नेताओं और कांग्रेसी सहयोगियों की पैरवी कर रहा है. फिलहाल, नई दिल्ली का रुख स्पष्ट है- बातचीत करते रहो, शांत रहो और तूफान के गुजर जाने का इंतजार करो. यह भी जोर देकर कहा जा रहा है कि भारत दबाव में नहीं झुकेगा.

साथ ही, भारत चीन के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया को तेज कर रहा है. राष्ट्रपति पुतिन के साथ गले मिलना, कार में लगभग पौन घंटे तक बातचीत और जीवंत चर्चाओं ने रूस के साथ संबंधों को मजबूत करने का स्पष्ट संकेत दिया है.

जीएम मक्का पिछले दरवाजे से घुसपैठ कर रहा !

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना में इस खरीफ सीजन में दो आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) मक्का किस्मों के फील्ड परीक्षण शुरू होने वाले हैं, जिससे यह बहस छिड़ गई है कि क्या भारत अमेरिका के साथ तनाव के बीच चुपचाप जीएम खाद्य फसलों की व्यावसायिक खेती के लिए रास्ता खोल रहा है!

भारत ने अपने किसानों के हितों की रक्षा करने का संकल्प लिया है. भारत की सर्वोच्च नियामक संस्था, जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने पंजाब सरकार द्वारा अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने के बाद, बेयर क्रॉप साइंस के शाकनाशी-सहिष्णु और कीट-प्रतिरोधी मक्का के ‘सीमित फील्ड परीक्षणों’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

पीएयू के कुलपति सतबीर सिंह गोसल ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि विश्वविद्यालय की भूमिका केवल शोध तक ही सीमित है. लेकिन आलोचकों को जीएम खाद्य फसलों को धीरे-धीरे वैध बनाने की प्रक्रिया दिखाई दे रही है. जीएम-मुक्त भारत गठबंधन ने पंजाब से अपना अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) रद्द करने का आग्रह किया है,

और स्वास्थ्य व पर्यावरणीय खतरों के कारण ग्लाइफोसेट की बिक्री पर राज्य द्वारा 2018 में लगाए गए प्रतिबंध का हवाला दिया है. भारत वर्तमान में केवल बीटी कपास की व्यावसायिक खेती की अनुमति देता है, हालांकि कानूनी चुनौतियों के बीच जीएम सरसों को 2022 में पर्यावरणीय उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई थी.

चावल, मक्का, ज्वार, गेहूं और मूंगफली सहित कई अन्य फसलें खेतों में परीक्षण के दौर से गुजर रही हैं. आलोचकों का तर्क है कि इस तरह के ‘सीमित’ अध्ययन धीरे-धीरे जीएम तकनीक को सामान्य बना देते हैं, और अमेरिकी प्रशासन को खुश करने के लिए अमेरिकी कंपनियों को पिछले दरवाजे से प्रवेश देने के रूप में काम करते हैं.

भागवत ने उम्र संबंधी भ्रम दूर किया

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 75 साल की सेवानिवृत्ति की आयु को लेकर अटकलों पर पूरी तरह से विराम लगा दिया है. नागपुर में एक पुस्तक विमोचन के दौरान भागवत ने दिवंगत वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी मोरोपंत पिंगले को पद छोड़ने का विनम्र संकेत देने के लिए ‘75वें जन्मदिन पर भेंट की गई शॉल’ को लेकर हास्यपूर्ण टिप्पणी की थी, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी.

इस टिप्पणी को व्यापक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक संकेत के रूप में देखा गया, जो भागवत की तरह इस सितंबर में 75 वर्ष के हो रहे हैं. विज्ञान भवन में बोलते हुए, भागवत ने स्पष्ट किया, ‘‘मैंने कभी नहीं कहा कि मेरे समेत किसी को भी 75 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होना चाहिए.’’

उन्होंने आगे कहा कि अगर उन्हें 80 साल की उम्र में भी आरएसएस की किसी शाखा में काम करने के लिए कहा जाए, तो वे खुशी-खुशी ऐसा करेंगे - जो संगठन की अलिखित आयु सीमा में बदलाव का संकेत है.  यह नया मानदंड मोदी को कम से कम 2030 तक पद पर बने रहने की अनुमति देता है,

जिससे वे संभवतः भारत के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने के जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ सकते हैं. फिर भी, भागवत ने यह कहते हुए रहस्य बरकरार रखा कि, ‘‘यहां (विज्ञान भवन में) बैठे कम से कम 10 वरिष्ठ पदाधिकारी मेरे उत्तराधिकारी बन सकते हैं.’’ क्या यह 11 सितंबर के बाद उनके खुद के इस्तीफे का संकेत है या यह महज आरएसएस के नेतृत्व की गहराई की आश्वस्ति मात्र है, इसकी व्याख्या अभी खुली है.

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