विनीत नारायण का ब्लॉग: पेट्रोल के दाम घटते क्यों नहीं?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 10, 2018 08:35 PM2018-09-10T20:35:00+5:302018-09-10T20:35:00+5:30
पेट्रोल पर इस समय लगभग 85 प्रतिशत टैक्स वसूला जा रहा है और इसके लिए पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है। सरकार अगर ऐसा कर रही है तो इसका कारण मजबूरी के अलावा कुछ और नहीं हो सकता है।
विनीत नारायण
हमेशा से पेट्रोल की कीमत को मुद्दा बनाने वाली भाजपा सरकार पेट्रोल की कीमत पर ही फंस गई है। ऐसा नहीं है कि पेट्रोल की कीमत सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती है। सच तो यह है कि पेट्रोल पर इस समय लगभग 85 प्रतिशत टैक्स वसूला जा रहा है और इसके लिए पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है। सरकार अगर ऐसा कर रही है तो इसका कारण मजबूरी के अलावा कुछ और नहीं हो सकता है। ऐसा नहीं है कि पेट्रोल की कीमत कम करने के लिए उस पर दबाव नहीं है। भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए खुद इसे मुद्दा बनाया था। इसलिए कोई भी संभावना होती तो सरकार पेट्रोल की कीमत इतना नहीं बढ़ने देती।
इसका कारण यह समझ में आता है कि नोटबंदी के बाद जीएसटी ही नहीं, गैरसरकारी संगठनों पर नियंत्नण, छोटी-मोटी हजारों कंपनियों पर कार्रवाई आदि कई ऐसे कारण हैं जिससे देश में काम धंधा कम हुआ है और टैक्स के रूप में पैसे कम आ रहे हैं। इनमें कुछ कार्रवाई तो वाजिब है और सरकार इसका श्रेय भी ले सकती थी। पर पैसे कम आ रहे हैं यह स्वीकार करना मुश्किल है। इसलिए सरकार अपने अच्छे काम का श्रेय भी नहीं ले पा रही है। दूसरी ओर, बहुत सारी कार्रवाई एक साथ किए जाने से आर्थिक स्थिति खराब हुई है, इसमें कोई शक नहीं है। इसलिए सरकार को अपने खर्चे पूरे करने का सबसे आसान विकल्प यही मिला है। इसलिए पेट्रोल की कीमत कम नहीं हो रही है।
सरकार माने या न माने यह नीतिगत फैसला है। तभी पेट्रोलियम पदार्थो को जानबूझकर जीएसटी से अलग रखा गया है वर्ना जीएसटी में इसके लिए एक अलग और सबसे ऊंचा स्लैब रखना पड़ता और यह बात सार्वजनिक हो जाती कि सरकार पेट्रोल पर सबसे ज्यादा टैक्स ले रही है। पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी में लाने की मांग होती रही है पर सरकार इसे टाल जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मंदी के कारण भूसंपदा बाजार की हालत भी खराब है। यही नहीं, सरकार ने अभी तक पेट्रोल पर इतना ज्यादा टैक्स वसूलने का कोई संतोषजनक कारण नहीं बताया है। इससे भी लगता है कि सरकार नोटबंदी के भारी खर्च से उबर नहीं पाई है। सरकार को कुल मिलाकर जरूरत धरातल पर उतरने की है। पुरानी व्यवस्थाओं के कारण काफी कुछ अभी भी पटरी पर नहीं आया है, जिसका खामियाजा जनता भुगत रही है।