ब्लॉग: भाजपा के लिए क्यों चुनौती बना कर्नाटक विधानसभा चुनाव?

By अभय कुमार दुबे | Published: April 26, 2023 07:35 AM2023-04-26T07:35:11+5:302023-04-26T07:36:14+5:30

Why did Karnataka assembly elections become a challenge for the BJP | ब्लॉग: भाजपा के लिए क्यों चुनौती बना कर्नाटक विधानसभा चुनाव?

ब्लॉग: भाजपा के लिए क्यों चुनौती बना कर्नाटक विधानसभा चुनाव?

कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस फायदे की स्थिति में है-यह समझने के लिए राजनीति का विशेषज्ञ होने की जरूरत नहीं है. भाजपा के असंतुष्ट नेता भी यह समझते हैं इसलिए वे बड़े पैमाने पर कांग्रेस में आ रहे हैं. सारे देश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बहस चल रही है. भाजपा विपक्ष पर और विपक्ष भाजपा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं. वोटर इस बहस को दिलचस्पी के साथ देख-सुन रहे हैं. खास तौर से मध्यवर्ती वोटर इस बहस से प्रभावित हो सकता है, क्योंकि उसकी मतदान-निष्ठाएं पहले से तय नहीं हैं. 

कर्नाटक में हालत यह है कि कांग्रेस द्वारा सरकार पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब देना सरकार को मुश्किल हो रहा है. कांग्रेस बोम्मई सरकार को ‘पेसीएम’ और चालीस फीसदी की सरकार कह रही है. सर्वेक्षण के आंकड़ों पर जाएं तो जनता इस पर यकीन करती भी दिख रही है. यह भाजपा के लिए बुरी खबर है. यानी कर्नाटक में यह बहस मध्यवर्ती वोटर से परे समग्र मतदाता-मंडल को प्रभावित कर रही है.

कर्नाटक के चुनाव को देखकर कुछ दिन पहले ही हुए हिमाचल प्रदेश के चुनाव की याद आ जाती है. जिस तरह हिमाचल प्रदेश में भाजपा की राज्य सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटीइनकम्बेंसी थी, उसी तरह कर्नाटक में भी है. जिस तरह भाजपा के मुख्यमंत्री से वहां की जनता नाराज थी, उसी तरह से कर्नाटक में भी मौजूदा मुख्यमंत्री जनता के बीच अलोकप्रिय हैं. जिस तरह से हिमाचल में भाजपा के भीतर जबरदस्त गुटबाजी, उसी तरह कर्नाटक में भी है और लगता है कि उससे भी कुछ ज्यादा है.

कर्नाटक में कांग्रेस के भीतर भी गुटबाजी है, पर इस चुनाव में वह कुछ शांत दिखाई पड़ रही है. यह भी हिमाचल जैसी ही स्थिति है. वहां भी कांग्रेस की गुटबाजी इसलिए मंद थी कि सभी को लग रहा था कि वे चुनाव जीत सकते हैं इसलिए पहले से क्यों आपस में लड़ें.

2018 के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद देवगौड़ा का जनता दल (सेकुलर) साल भर बाद हुए लोकसभा चुनाव में बुरी गति को प्राप्त हुआ था. उसके स्वाभाविक रूप  से कांग्रेस विरोधी वोट भाजपा में चले गए थे जिसके कारण भाजपा को मिलने वाले समर्थन में विधानसभा के मुकाबले जबरदस्त उछाल आया था. इस बार भाजपा का दांव यह है कि देवगौड़ा के ये वोट विधानसभा में फिर से उनके पास लौट कर न जाएं. 

कर्नाटक की राजनीति के जानकारों का कहना है कि पुराने मैसूर इलाके में भाजपा का समर्थन आधार नहीं है. वहां ज्यादातर मुकाबला कांग्रेस और देवगौड़ा की पार्टी में होता है. इस बार भाजपा ने वोक्कलिगा वोटरों, जो देवगौड़ा को अपना नेता मानते हैं, को अपने पास बनाए रखने के लिए उन्हें आरक्षण का प्रलोभन दिया है. पसमांदा मुसलमानों का आरक्षण छीन कर उसे लिंगायतों और वोक्कलिगाओं में बांट दिया गया है. भाजपा चाहती है कि इस बार वोक्कलिगाओं की हमदर्दी उसे ही मिले. अगर ऐसा हुआ तो कर्नाटक की क्षेत्रीय राजनीति में देवगौड़ा का बहुत बड़ा पराभव होगा.

कांग्रेस की चुनावी रणनीति ‘अहिंदा’ की है. यह शब्द स्वर्गीय देवराज अर्स का ईजाद किया हुआ है. कन्नड़ भाषा के इस शब्द का मतलब है पिछड़ी जातियों, मुसलमानों और दलितों का गठजोड़. सिद्धारमैया ने पिछले चुनाव में भी ‘अहिंदा’ चलाने की कोशिश की थी, पर नाकाम रहे थे. कांग्रेस ने 46 लिंगायतों (भाजपा-68) और 41 वोक्कलिगाओं (भाजपा-42) को टिकट दिए हैं. इसके अलावा सिद्धारमैया के कुरबा समुदाय (गड़रिया) को बीस टिकट (पिछड़ों को कुल मिलाकर 57) मिले हैं. 

कांग्रेस ने दलितों को 17 और मुसलमानों को 15 टिकट दिए हैं. कांग्रेस का समर्थन आधार भाजपा के मुकाबले हमेशा से बड़ा और व्यापक रहा है. सारे प्रदेश और सभी समुदायों में फैला हुआ है. भाजपा की दिक्कत यह है कि कर्नाटक उसके लिए दक्षिण भारत का दरवाजा जरूर रहा है, लेकिन लिंगायतों में सीमित होने के कारण उसे आज तक किसी भी चुनाव में स्वतंत्र रूप से बहुमत नहीं मिल पाया है.

कर्नाटक में भाजपा की पराजय के मायने होंगे दक्षिण में उसके प्रसार की योजना का और पीछे चला जाना. और कांग्रेस? कांग्रेस ने अगर यह चुनाव अच्छी तरह से बहुमत के साथ नहीं जीता तो उसे लोकसभा चुनाव की अपनी संभावनाओं को भुला देना चाहिए. लेकिन, अगर इतनी बुरी सरकार चलाने के बावजूद भाजपा इस चुनाव में कांग्रेस से आगे निकल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरती है, तो हमें मान लेना चाहिए कि भारतीय राजनीति में चुनाव के मैदान में एक ही टीम खेल रही है. वह है भाजपा की. 

Web Title: Why did Karnataka assembly elections become a challenge for the BJP

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