ब्लॉग: क्यों थमने का नाम नहीं ले रहा चीतों की मौत का सिलसिला ?

By प्रमोद भार्गव | Published: August 8, 2023 12:55 PM2023-08-08T12:55:07+5:302023-08-08T12:55:56+5:30

विदेशी चीतों को भारत की धरती कभी रास नहीं आई. इनको बसाने के प्रयास पहले भी होते रहे हैं. एक समय चीते की रफ्तार भारतीय वनों की शान हुआ करती थी. लेकिन 1947 के आते-आते चीतों की आबादी लुप्त हो गई.

Why death of cheetahs in India not stopping | ब्लॉग: क्यों थमने का नाम नहीं ले रहा चीतों की मौत का सिलसिला ?

ब्लॉग: क्यों थमने का नाम नहीं ले रहा चीतों की मौत का सिलसिला ?

अफ्रीकी देशों से लाकर कूनो अभ्यारण्य में बसाए गए चीतों की लगातार हो रही मौतों से उनकी निगरानी, स्वास्थ्य और मौत के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है, यह सवाल बड़ा होता जा रहा है. जिस तरह से चीते अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं, उससे लगता है उच्च वनाधिकारियों का ज्ञान चीतों के प्राकृतिक व्यवहार से लगभग अछूता है इसलिए एक-एक कर छह वयस्क और तीन शावकों की मौत पांच माह के भीतर हो गई. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी चीता परियोजना के लिए यह बड़ा झटका है. विडंबना है कि इन चीतों की मौत के वास्तविक कारण भी पता नहीं चले हैं.

चीतों की मौत का कारण कॉलर आईडी से हुआ संक्रमण है या जलवायु परिवर्तन, यह कहना मुश्किल है. हालांकि केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि ‘चीतों की मौत का मुख्य कारण कोई बीमारी नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला संक्रमण है. 

चूंकि नामीबिया और श्योपुर की जलवायु अलग-अलग है और पहला वर्ष होने के कारण उन्हें यहां के वातावरण में ढलने में कठिनाई आ रही है, मानसूनी असंतुलन के कारण हम 9 चीतों का नुकसान उठा चुके हैं. चीतों की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार गंभीर है, क्योंकि यह लंबी परियोजना है और हर वर्ष चीते आने हैं.’ जबकि कुछ चीतों की मौतें कारण का स्पष्ट उल्लेख कर रही हैं. 

मादा चीता ज्वाला के शावकों की देखरेख में पूरी तरह लापरवाही बरती गई. इन शावकों का वजन जब 40 प्रतिशत रह गया और ये शिथिल हो गए, तब इनके उपचार का ख्याल वनाधिकारियों को आया. नतीजतन तीन शावक काल के गाल में समा गए. मादा चीता दक्षा को जोड़ा बनाने की दृष्टि से दो नर चीतों के साथ छोड़ दिया गया जबकि ऐसा कभी किया नहीं जाता कि एक मादा के पीछे दो नर छोड़ दिए जाएं. 
नतीजा यह कि संघर्ष में दक्षा की मौत हो गई. इन सब स्पष्ट कारणों के चलते ही नामीबिया से आए विशेषज्ञ चिकित्सक सच्चाई तक न पहुंच जाएं, इसलिए उनके साथ जिम्मेदार अधिकारी असहयोग बनाए हुए हैं. अब कूनो में 14 चीते शेष हैं, जिनमें सात नर, छह मादा और एक शावक हैं. इनमें निर्वा नाम की एक मादा लापता है. 

इसे ट्रैंकुलाइज कर बाड़े में लाने की कोशिश हो रही है. हालांकि निर्वा की रेडियो कॉलर खराब हो गई है, इसलिए कई दिन से यह लोकेशन ट्रांसमीटर के दायरे में ही नहीं आ रही है. कुछ जानकारों का मानना है कि इस चीते की मौत हो चुकी है.

दरअसल विदेशी चीतों को भारत की धरती कभी रास नहीं आई. इनको बसाने के प्रयास पहले भी होते रहे हैं. एक समय चीते की रफ्तार भारतीय वनों की शान हुआ करती थी. लेकिन 1947 के आते-आते चीतों की आबादी लुप्त हो गई. 1948 में अंतिम चीता छत्तीसगढ़ के सरगुजा में देखा गया था.

Web Title: Why death of cheetahs in India not stopping

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