लव मैरिज या अरेंज , 20 पर शादी करनी है 30 पर करनी है, करना भी है शादी या नहीं ये एक लड़की को तय करने का हक तो होता ही नहीं है। लेकिन ये बात पुत्र महोदय पर लागू नहीं होती। किसी भी विषय पर खुद को कंसोल करना ज्यादा आसान रहता है, लेकिन ऐसा लड़कियों को करने कहां दिया जाता है।
प्यार करना है और प्यार में शादी करनी है या नहीं ये प्रेमी महोदय डिसाइड करते हैं। अगर आप प्यार करते हैं उनको शादी करनी है आपसे या नहीं और कब तक का समय आपके पास है ये आपके प्रेमी महोदय बिना आपका हाले दिल जाने डिसाइड कर लेते हैं। वहीं, शादी के बाद कब बच्चा पैदा करना है, कितना करना है, किस जेंडर का करना है ये इनलॉज डिसाइड करते हैं। जॉब करनी है या नहीं, जॉब में किससे बात करनी है, किससे नहीं ये पति डिसाइड करते हैं।
हम अपने बारे में न सोचे इसके लिए कहा जाता है स्त्री का हृदय विशाल होता है जिसमें सब समा जाते हैं (सिवाय उसके खुद के), वो सबका ख्याल रखती है, सबके लिए ममत्व रखती है (सिवाय अपना ख्याल रखने के और अपने ऊपर लाड़ लड़ाने के) स्त्री होती ही ऐसी है, (अगर किसी स्त्री ने उनके इस माननीय ख्याल से बगावत कर दी तो भाई वो स्त्री नहीं है, क्योंकि उसने बर्ताव के उलट व्यवहार किया है) लेकिन अगर गलती से भी आपने अपने बारे में खुदा न करे सोच लिया तो ये जितने भी रिश्ते हैं जिनसे आप घिरी हैं वो आपको ऐसे देखेंगे और ऐसा बर्ताव करेंगे कि भाई आप पक्का कोई आतंकवादी हैं, जो उन सबको मारने आई हैं।
अगर प्रेमी महोदय अलग होते हैं तो वह जिद्द ना करके उन्हें जाने देती है क्योंकि वह खुद दर्द को दिल में छिपाकर जी सकती है लेकिन किसी और को दर्द नहीं दे सकती है। फिर भी एक लड़की को ही पैदा करने से डरा जा रहा है हकों से दूर रखा जा रहा है। भारतीय जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों पर 940 महिलाएं हैं। भारत में साक्षरता के दर में तो वृद्धि हुई है , लेकिन आज भी हमारे देश में महिलाओं में साक्षरता की दर पुरुषों के अपेक्षा कम है, पूरे देश की बात करें, तो महिलाओं में साक्षरता की दर 68.4 है।
फिर भी देश में किसी ना किसी रुप में महिलाओं का शोषण किया जा रहा है। आज 940 महिलाएं में केवल 20 फीसदी ही हैं जो पूरी तरह से पुरुषों से बराबरी ले पा रही हैं। अभी भी आधी से ज्यादा महिलाएं अपने हक से कोसों दूर हैं। खैर ये इस देश की आधी से ज्यादा महिलाओं का हाल है कि आज वह खुद के लिए लड़ नहीं पा रहीं। ये बात भले मेरे ऊपर लागू ना हो रही हो लेकिन उनका क्या जो इसके लिए आज भी जूझ रही हैं।एक औरत आज भी समाज की रुढ़ियों में जड़की है वह आज भी अपने हक को पाना तो चाहती है वह समाज का वास्ता देकर उसे उनसे अधूता रखा जा रहा है।