सबरीमला : वोट बैंक का खेल
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 10, 2018 01:25 PM2018-10-10T13:25:27+5:302018-10-10T13:25:27+5:30
सभी महिलाओं के प्रवेश का फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने 28 सितंबर को किया था। इन याचिकाओं को यदि तुरंत सुन लिया जाता तो याचिकाकर्ताओं को आशा थी कि शायद रजस्वला स्त्रियों का मंदिर-प्रवेश स्थगित हो जाता।
वेदप्रताप वैदिक
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को मेरी बधाई कि उन्होंने सबरीमला मंदिर के मामले में दायर याचिकाओं को तत्काल सुनने से मना कर दिया है। ये पुनर्विचार याचिकाएं इसलिए लगाई गई थीं कि 18 अक्तूबर से केरल के इस मंदिर में हर उम्र की महिलाओं का प्रवेश प्रारंभ होने वाला है।
सभी महिलाओं के प्रवेश का फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने 28 सितंबर को किया था। इन याचिकाओं को यदि तुरंत सुन लिया जाता तो याचिकाकर्ताओं को आशा थी कि शायद रजस्वला स्त्रियों का मंदिर-प्रवेश स्थगित हो जाता। लेकिन केरल की मार्क्सवादी सरकार के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने यह घोषणा कर दी है कि वे अदालत के फैसले को लागू करके रहेंगे। अभी तक सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है, क्योंकि वे रजस्वला हो सकती हैं।
यह रूढ़ि कितने अंधविश्वास और दुराग्रह पर आधारित है, यह हम पहले लिख ही चुके हैं लेकिन इस विषय पर दुबारा इसीलिए लिख रहे हैं कि इस मामले में हमारे प्रमुख राजनीतिक दलों का रवैया कितना ढुलमुल है। ज्यों ही यह फैसला आया था, भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने इसका स्वागत किया था लेकिन अब ये दल ही केरल के हिंदू वोट हथियाने के लिए लोगों को उकसा रहे हैं। अदालत के फैसले के विरुद्ध वे महिलाओं के प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे हैं।
केरल की मार्क्सवादी सरकार के विरुद्ध उन्हें यह हथियार हाथ लग गया है। वे कहते हैं कि मार्क्सवादी तो नास्तिक होते हैं। वे अयप्पा के नैष्ठिक ब्रह्मचर्य को कैसे समड़ोगे? मुख्यमंत्री विजयन ने इस मांग को रद्द कर दिया है कि केरल सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार की याचिका अपनी तरफ से अदालत में लगाए। अब केरल की भाजपा पांच दिन की ‘सबरीमला बचाओ’ यात्र निकाल रही है। केरल कांग्रेस अपने ढंग से इसका समर्थन कर रही है, क्योंकि इन दोनों पार्टियों का लक्ष्य एक ही है। इन दोनों पार्टियों के केंद्रीय नेता बगलें झांक रहे हैं।