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विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: सिर्फ दिखावा करके नहीं समझ पाएंगे गांधी को

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: October 5, 2019 09:51 IST

इस बात को समझना भी जरूरी है कि गांधी की ताकत उस बुनियादी ईमानदारी में थी जो उस महामानव ने अपनी कथनी और करनी में दिखाई. उस ईमानदारी को समझने और जीवन में अपनाने की आवश्यकता है.

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हर साल दो अक्तूबर को हम गांधी जयंती मनाते हैं. यह डेढ़ सौवां साल है गांधी के जन्म का यानी गांधी यदि जीवित होते तो 150 साल के हो गए होते. वैसे तो गांधी को याद करने के लिए किसी दिन विशेष की आवश्यकता नहीं है, पर सौ या डेढ़ सौ साल जैसा अवसर एक बहाना दे देता है गांधी जैसे महापुरुष के मनुष्यता को अवदान को याद करने का.

जहां तक गांधी का सवाल है, भारत के लिए यह अवसर कृतज्ञता-ज्ञापित करने का भी है. गांधी ने इस देश के लिए जो कुछ किया, मनुष्यता को जो कुछ दिया, वह एक इतिहास को आकार देने का काम था- मनुष्यता गांधी की ऋणी रहेगी सत्य और अहिंसा के उनके मंत्न के लिए. गांधी ने मनुष्य के बेहतर मनुष्य बनने की राह दिखाई थी और यह भी सिखाया था कि उस राह पर चलें कैसे.

सच तो यह है कि गांधी ने हमें यह भी सिखाया था कि मनुष्य होने का मतलब क्या होता है. पराई पीर की पीड़ा की समझ को धर्म से जोड़कर उन्होंने जैसे धार्मिकता को ही एक नई परिभाषा दे दी थी. उन्होंने हमें यह भी सिखाया कि सही या गलत की समझ कैसे हो. उन्होंने बताया, कुछ भी करने से पहले यह जानने की कोशिश करें कि हमारे इस काम से कतार में सबसे आखिर में खड़े व्यक्ति को लाभ होगा या हानि? यही वह मंत्न है जो दुनिया भर की सारी व्यवस्थाओं के औचित्य की कसौटी है.

आइंस्टीन ने गांधी को जीता-जागता आश्चर्य कहा था, नोआखली में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की उनकी कोशिशों को देखकर भारत के आखिरी वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने उन्हें ‘एक व्यक्ति की सेना’ बताया था. जीवन के हर पक्ष को गांधी ने किसी न किसी रूप में छुआ, उसे प्रभावित किया. वे मात्न इसलिए महान नहीं थे कि उन्होंने उपलब्धियों के पहाड़ खड़े कर दिए, वे इसलिए भी महान थे कि उन्होंने विफलताओं को स्वीकारने और उनसे सीखने का एक नया दर्शन मनुष्यता को दिया. इस सच्चाई ने सबको प्रभावित किया कि उनकी विफलताएं नई सफलताओं की संभावना बनती रही. वे थके नहीं, हारे नहीं. निरंतर संघर्षरत रहे. सत्य के लिए संघर्ष को किसी विजय से कम नहीं मानते थे गांधीजी.

इस बात को समझना भी जरूरी है कि गांधी की ताकत उस बुनियादी ईमानदारी में थी जो उस महामानव ने अपनी कथनी और करनी में दिखाई. उस ईमानदारी को समझने और जीवन में अपनाने की आवश्यकता है.

हमारी त्नासदी यह है कि हम इस आवश्यकता को ही नहीं समझना चाहते. ईमानदारी के बजाय, उसका ढोंग हमारी करनी में झलकता है. एक ओर हम बापू की जय-जयकार कर रहे हैं और दूसरी ओर उसके साथ भी खड़े दिखते हैं जो गोडसे की पिस्तौल की नीलामी कर यह दिखाना चाहता है कि कितने लोग गोडसे के समर्थक हैं! एक ओर हम ‘गोडसे अमर थे, अमर हैं, अमर रहेंगे’ का नारा लगाने वाले को ‘मन से कभी माफ नहीं कर पाएंगे’ की बात कहते हैं और दूसरी ओर इसी नारा लगाने वाले को संसद में अपना प्रतिनिधि चुनते हैं.

उत्तर प्रदेश में लाखों विद्यार्थियों से गांधी और स्वतंत्नता-आंदोलन से संबंधित पुस्तकें पढ़वा कर ‘विश्व रिकॉर्ड’  बनाया जा रहा है और दूसरी ओर देश के महान व्यक्तियों की सूची से ‘गलती से’ गांधी का नाम छूट जाता है! ये सब उदाहरण हैं हमारे चरित्न के दोहरेपन के. ये सब इस बात का भी उदाहरण हैं कि हम गांधी नाम के विचार को न तो समझते हैं और न ही समझना चाहते हैं. गांधी को समझना है तो हमें मनुष्य की महानता में विश्वास करना होगा; धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग की विषमता के खिलाफ लड़ाई छेड़नी होगी- और यह भी याद रखना होगा कि यह लड़ाई सिर्फ ईमानदारी से जीती जा सकती है, दिखावे से नहीं.

टॅग्स :महात्मा गाँधी
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