विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: विरोधियों को दबाएं नहीं, उनका दृष्टिकोण समझें

By विश्वनाथ सचदेव | Published: December 19, 2019 09:27 AM2019-12-19T09:27:31+5:302019-12-19T09:27:31+5:30

देशभर में जिस तरह से नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा है, उसे सिर्फ राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित अथवा कुछ उपद्रवी तत्वों की कार्रवाई बताना वास्तविकता से आंख चुराना ही होगा.

Vishwanath Sachdev blog: Do not suppress opponents, understand their point of view | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: विरोधियों को दबाएं नहीं, उनका दृष्टिकोण समझें

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: विरोधियों को दबाएं नहीं, उनका दृष्टिकोण समझें

नागरिकता संशोधन कानून संसद में पारित हो गया है. जिस भारी बहुमत के साथ भाजपा चुनाव में विजयी हुई थी, उसे देखते हुए कानून का पारित न होना ही आश्चर्य की बात होती. अब देशभर में इस कानून को लेकर प्रतिक्रिया हो रही है.  

देशभर में जिस तरह से इस कानून का विरोध हो रहा है, उसे सिर्फ राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित अथवा कुछ उपद्रवी तत्वों की कार्रवाई बताना वास्तविकता से आंख चुराना ही होगा. असम से लेकर मुंबई तक और दिल्ली से लेकर केरल तक विद्यार्थियों का विरोध-प्रदर्शन कुछ कह रहा है.

इसे अनसुना करने का मतलब जनतांत्रिक मूल्यों-परंपराओं को अस्वीकारना होगा. यह सही है कि संसद ने बहुमत से कानून पारित किया है, पर एक लोकप्रियता का बहुमत भी होता है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसी लोकप्रियता की कसौटी पर इस कानून को परखने की बात कही है.

जनतंत्र में विरोध का विशेष महत्व होता है. विरोध छोटा या कमजोर हो, तब भी उसकी अवहेलना नहीं होनी चाहिए, और न ही उसे नकारा जाना चाहिए. जिस तरह का वातावरण आज देश में बन रहा है, उसे मात्र राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित बताकर सत्तारूढ़ पक्ष अपने बहुमत की दुहाई दे सकता है, पर इस सवाल का जवाब वह अबतक युक्तियुक्त  ढंग से नहीं दे पाया कि इस कानून में एक धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के साथ भेद-भावपूर्ण व्यवहार क्यों कर दिया गया है.

अपेक्षा थी कि सरकार, विशेषकर ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात कहने वाले प्रधानमंत्री इस संदर्भ में पूरे देश को अपनी बात समझाने का ठोस प्रयास करेंगे. पर जब प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि कानून का विरोध करने वालों के कपड़ों से ही पता चल जाता है कि उनका उद्देश्य क्या है, तो स्पष्ट दिखता है कि वे देशभर में हो रहे विरोध को राजनीति के चश्मे से ही देख रहे हैं.

वस्तुत: यह विरोध या ऐसा कोई भी विरोध सरकार की रीति-नीति का विरोध होता है, इसे देश के साथ गद्दारी कहना गलत है. विरोधियों को ‘पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले’ कहना भी उतना ही गलत है. जनतंत्र में विरोध का सम्मान किया जाता है, विरोध के कारणों को समझने की कोशिश की जाती है, उनके निवारण के उपाय खोजे जाते हैं. दुर्भाग्य से आज ऐसा होता नहीं दिख रहा. इस सारे संदर्भ में राष्ट्रवाद की दुहाई देना भी एक गलत तर्क द्वारा अपने पक्ष को सही सिद्ध करने की कोशिश ही कहा जाएगा.

 यहां मुझे देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल की एक बात याद आ रही है. संविधान सभा में नागरिकता के संदर्भ में बोलते हुए उन्होंने कहा था, ‘हम संकुचित राष्ट्रवाद के नजरिये को स्वीकार नहीं कर सकते.’ संकुचित राष्ट्रवाद से उनका मतलब वह राष्ट्रवाद था जिसका आधार धर्म या जाति हो.

कोई हिंदू या मुसलमान या ईसाई आदि होने पर गर्व कर सकता है, पर एक संविधान में विश्वास करने वाले नागरिक के नाते भारतीय होने पर गर्व करना ही हमारी सही पहचान है. हमें अच्छा इंसान भी बनना है और न्यायपूर्ण समाज भी बनाना है. ऐसा समाज कानून के समक्ष समानता के आधार पर ही बन सकता है.

उस समाज में धर्म या जाति या वर्ण-वर्ग के आधार पर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं होता. हमने अपने लिए जिस संविधान को स्वीकारा है, वह भी इसी प्रकार के न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए ही है. इसलिए, धर्म के आधार पर नागरिकता का निर्धारण न्याय की अनदेखी करना ही होगा.

इसीलिए संसद में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध बार-बार इस आधार पर हो रहा था किसी एक धर्म को नकार कर शेष धर्मों के लोगों को नागरिकता देने की बात हमारे संविधान का अपमान है, और उन मूल्यों का भी, जिनके आधार पर हमने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी.

कानून बहुमत से बना है, इसलिए उसका सम्मान तो होना चाहिए, पर इसका यह अर्थ नहीं है कि कानून की कमियों या गलतियों की ओर ध्यान दिलाने का अधिकार ही समाप्त हो जाता है. आज यदि देशभर में इस कानून को लेकर आंशका और बेचैनी है तो सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह इन आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करे.

यह सोचे कि इतना असंतोष क्यों? ताकत के बल पर इस असंतोष को दबाया तो जा सकता है, पर समाप्त नहीं किया जा सकता. सरकार को यह सोचना होगा कि कानून बनाने में कोई चूक तो नहीं हो गई. कानून का विरोध करने वालों के दृष्टिकोण और मंतव्य को समझना जनता के जनतांत्रिक अधिकारोंऔर सरकार के कर्तव्यों का तकाजा है.

जिस तरह की स्थितियां आज देश में बन रही हैं, जिस तरह देश के युवा वर्ग का असंतोष सामने आ रहा है, उसे पुलिस की ताकत से दबाना न तो संभव है और न ही उचित. प्रचंड बहुमत से जीती है भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार, पर यह बहुमत यदि उसे गर्व से भरता है तो यह गलत होगा- सही यह होगा कि सरकार ‘सबका विश्वास’ जीतने की कोशिश करे. आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और अरब सागर से लेकर असम के जंगलों तक एक असंतोष की आग जल रही है.

इसे विपक्ष का षड्यंत्र कहकर नकारने का मतलब जनता की भावनाओं को समझने की आवश्यकता को नकारना है. किसी भी सरकार का अहं जनता की भावनाओं को कुचलने वाला सिद्ध नहीं होना चाहिए- दांव पर जनतांत्रिक मूल्य और भारतीय समाज की सहिष्णु पहचान लगी है.

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: Do not suppress opponents, understand their point of view

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