विजय दर्डा का ब्लॉग: हे गणपति, कांग्रेस को विचार की शक्ति दीजिए

By विजय दर्डा | Updated: September 2, 2019 09:19 IST2019-09-02T09:19:11+5:302019-09-02T09:19:11+5:30

मैं गणपतिजी से विनम्र आग्रह कर रहा हूं कि देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को इतनी सद्बुद्धि दें कि वह अपनी मौजूदा दुर्दशा के दौर से बाहर निकलने का रास्ता तलाश सके. इतनी शक्ति दें कि वह फिर से मैदान में खड़ी होने के बारे में सोच सके और खुद के भीतर इतनी तंदुरुस्ती लाए कि इस देश का आम आदमी उस पर फिर से भरोसा कर सके.

Vijay Darda's blog: Ganapathi, give Congress the power of thought | विजय दर्डा का ब्लॉग: हे गणपति, कांग्रेस को विचार की शक्ति दीजिए

विजय दर्डा का ब्लॉग: हे गणपति, कांग्रेस को विचार की शक्ति दीजिए

गणपति उत्सव हर साल एक नई ऊर्जा का संचार करता है. यह केवल भक्ति का त्यौहार ही नहीं है बल्कि यह सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा प्रतीक भी है. यही कारण है कि गणपति घर-घर विराजते हैं. ‘गणपति बप्पा’ की स्वरलहरियां गूंजती रहती हैं. भक्त अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार पूजा भी करते हैं और अपनी जरूरतों के अनुसार गणोशजी का आशीष भी चाहते हैं.

मेरी चाहत तो बस इतनी है कि सारा देश सुखी रहे, सात्विक विचारों से समाज भरा-पूरा रहे, हर हाथ में काम हो, कोई भूखा न मरे, कोई उपचार के अभाव में दम न तोड़े. समाज में कोई वैमनस्य न हो, बस भाईचारा ही भाईचारा हो. सब मिलकर गणोशोत्सव मनाएं और प्रेम से बोलें- ‘गणपति बप्पा मोरया..!

काश! स्नेह की ऐसी बारिश आए जिसमें अहं डूब जाए, मतभेद के किनारे ढह जाएं, घमंड चूर-चूर हो जाए. गुस्से के पहाड़ पिघल जाएं. नफरत हमेशा के लिए दफन हो जाए और हम सब मैं से हम हो जाएं. चाहत तो यह भी है कि इस देश का लोकतंत्र फले-फूले, लेकिन जब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की हालत देखता हूं तो जेहन में आशंकाएं उत्पन्न होने लगती हैं. बिना विपक्ष के लोकतंत्र कैसे फलेगा-फूलेगा? इसलिए मैं गणपतिजी से विनम्र आग्रह कर रहा हूं कि देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को इतनी सद्बुद्धि दें कि वह अपनी मौजूदा दुर्दशा के दौर से बाहर निकलने का रास्ता तलाश सके.

इतनी शक्ति दें कि वह फिर से मैदान में खड़ी होने के बारे में सोच सके और खुद के भीतर इतनी तंदुरुस्ती लाए कि इस देश का आम आदमी उस पर फिर से भरोसा कर सके. कांग्रेस केवल एक पार्टी नहीं बल्कि विचार है, देश की आत्मा है. जिस तरह आत्मा नहीं मरती, उसी तरह विचार भी नहीं मरते. कभी इस देश के आम आदमी का भरोसा केवल कांग्रेस पर था.

कांग्रेस की जड़ें गांव-गांव में थीं. कांग्रेसी टोपी लगाना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब टोपी का कोई अता-पता नहीं. मुहावरे की भाषा में कहें तो कांग्रेस के नेता अपनी पार्टी में ही एक दूसरे की टोपी उछालने में इतने मशगूल हो गए कि जमाने का कोई हिसाब किताब ही नहीं रहा. शक्ति कब खत्म हो गई और पार्टी कब बीमारी की हालत में पहुंच गई इसका किसी ने हिसाब भी नहीं रखा. 

अब आप महाराष्ट्र की हालत ही देखिए न! चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विजयी भाव से अश्वमेध का घोड़ा लेकर निकल पड़े हैं. घोषणा कर दी है कि वे सत्ता में फिर लौट रहे हैं. जनादेश  यात्र में भीड़ जुटाई नहीं जा रही है बल्कि जुट रही है. मैं भाजपा संगठन की तो बात ही नहीं कर रहा हूं. मैं तो केवल देवेंद्र फडणवीस की बात कर रहा हूं जो अकेले नेतृत्व की बागडोर लिए पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं.

बड़े सलीके और मैत्रीभाव से उन्होंने शिवसेना को भी साथ रखा है. वे शक्ति को साधना जानते हैं. लोगों से विचार-विमर्श करना जानते हैं. वे जनता के दिलों में उतरना जानते हैं इसलिए यदि वे कह रहे हैं कि सत्ता में वे फिर लौट रहे हैं तो इसमें कोई बड़बोलापन नहीं है. वे भरोसे के साथ कह रहे हैं. शिवसेना ने भी खुद को सशक्त किया है. आदित्य ठाकरे तेजी से उभरे हैं. लोग उनके प्रति आकर्षित हो रहे हैं. उद्धव ठाकरे को तो मैदान में आने की जरूरत ही नहीं पड़ी है. शक्ति के मामले में देखें तो मुङो भाजपा और शिवसेना के बीच मुकाबला दिख रहा है.

इसके ठीक विपरीत जब मैं कांग्रेस को देखता हूं तो समझ  में नहीं आता कि पार्टी को क्यों काठ मार गया है? कहां हैं कांग्रेस के नेता? क्या उनके मन में यह बात नहीं उठ रही है कि भाजपा के अश्वमेध के घोड़े की लगाम तक कैसे पहुंचा जाए? कहीं कोई तमन्ना ही नहीं दिख रही है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कांग्रेस इतनी कमजोर कभी नहीं रही जितनी आज दिखाई दे रही है.

पार्टी के बड़े नेताओं में भी कोई उत्साह ही नहीं है. जरा सोचिए कि यदि बड़े नेताओं में उत्साह नहीं होगा तो फिर कार्यकर्ताओं में उत्साह कहां से आएगा? मुङो यह लिखते हुए भयंकर पीड़ा हो रही है लेकिन सच तो यही है कि कांग्रेस के भीतर कहीं समझ का ही अभाव दिखाई देने लगा है. इसीलिए मैं गणपतिजी से आग्रह कर रहा हूं कि कांग्रेस पार्टी को वे सद्बुद्धि दें, विचारों की शक्ति दें, देश को नए सिरे से समझ पाने की शक्ति दें ताकि कांग्रेस न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश में फिर से उठ खड़ी हो. कांग्रेस पर भरोसा जगे.

मैं कांग्रेस की कमजोरी को केवल पार्टी के नजरिये से ही नहीं देख रहा हूं बल्कि देश की जरूरत के नजरिये से भी देख रहा हूं. पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे कि मजबूत विपक्ष लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है. इसीलिए वे राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोगों का तहेदिल से सम्मान किया करते थे. आलोचना के स्वरों को वे वैचारिक तंदुरुस्ती का माध्यम मानते थे.

आज स्थिति उलट है. इसीलिए लोकतंत्र को मजबूत करने में कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. कांग्रेस के अलावा किसी भी और पार्टी में यह दम नहीं है कि वह सार्थक विकल्प की भूमिका निभा सके. तो गणपति से कांग्रेस के लिए आप भी दुआ मांगिए. धूमधाम से गणपति उत्सव मनाइए और सामाजिक भाईचारे को मजबूत कीजिए. आपको और आपके पूरे परिवार को गणोशोत्सव की ढेर सारी बधाइयां. और अंत में..

जैन धर्म का पयरूषण पर्व  समापन की ओर है. इस अत्यंत पावन पर्व में साधना के माध्यम से 84 लाख जीव योनियों से क्षमा याचना करते हैं. मैं भी इस अवसर पर आप सभी से क्षमा याचना करता हूं. विगत वर्षो में जाने-अनजाने में मुझसे यदि कोई गलती हुई हो और आपका दिल दुखा हो, आपको ठेस पहुंची हो तो मैं मन, वचन और काया से क्षमाप्रार्थी हूं. क्षमा से बड़ा कोई शस्त्र नहीं है.

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