विजय दर्डा का ब्लॉग: कोर्ट को इतनी तल्ख टिप्पणी क्यों करनी पड़ रही है?

By विजय दर्डा | Published: October 11, 2020 02:14 PM2020-10-11T14:14:54+5:302020-10-11T14:14:54+5:30

पिछले एक सप्ताह में सर्वोच्च न्यायालय ने कई अत्यंत तल्ख टिप्पणियां की हैं जिसने पूरी व्यवस्था और सरकार को भी आईना दिखाया है. इस बात पर विचार करना बहुत जरूरी है कि आखिर सर्वोच्च न्यायालय को इस तरह की टिप्पणी करने की जरूरत क्यों पड़ रही है?

Vijay Darda Blog over Supreme court comment nover shaheen bagh and tabligi jamat: Why does SC have to make such a comment? | विजय दर्डा का ब्लॉग: कोर्ट को इतनी तल्ख टिप्पणी क्यों करनी पड़ रही है?

शाहीन बाग और तब्लीगी जमात से लेकर हाथरस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था को आईना दिखाया है

शाहीन बाग में जब संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ धरना और प्रदर्शन लंबा खिंचने लगा था तो सबके दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि एक मुख्य सड़क पर लोग कब्जा किए बैठे हैं तो दिल्ली पुलिस या सरकार क्या कर रही है? बस सवाल उठते रहे लेकिन किसी ने इसका न तो जवाब दिया और न ही सड़क को कब्जे से मुक्त कराने या कोई हल ढूंढने की कोशिश की! वो तो कोविड-19 वायरस का खौफ   छाया जिसके कारण धरना खत्म हुआ.

शाहीन बाग का मामला जब दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचा था तब कोर्ट ने संबंधित विभागों और अधिकारियों को निर्देश भी दिए थे कि कानून व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए स्थिति से निपटा जाए लेकिन अधिकारियों ने कोई कोशिश नहीं की. इसके बाद मामला शीर्ष न्यायालय में पहुंचा.

लोकतंत्र में विरोध का अधिकार

 न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने  बड़े स्पष्ट लहजे में कहा कि धरना-प्रदर्शन एक निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए. सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर कब्जा करके बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा में डालने या उनके अधिकारों का हनन करने की कानून के तहत इजाजत नहीं है. दिल्ली पुलिस जैसे प्राधिकारियों को शाहीन बाग इलाके को खाली कराने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए थी. न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अदालतों के पीछे पनाह नहीं ले सकते. इस टिप्पणी ने दिल्ली पुलिस की कलई खोलकर रख दी है.

इस मामले में मेरी भी स्पष्ट राय है कि लोकतंत्र में विरोध का अधिकार तो हर किसी के पास है और होना भी चाहिए लेकिन विरोध का तरीका कदापि ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे किसी को तकलीफ हो. शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन से सहमत हुआ जा सकता है लेकिन सड़क पर कब्जा करने को कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता है. आज राजनीतिक दलों की रैलियां निकलती हैं तो पूरा बाजार अस्त-व्यस्त हो जाता है. लोग कहीं भी धरना देकर बैठ जाते हैं. धरना और प्रदर्शन की भी एक नियमावली होनी चाहिए. कहीं भी मंदिर, मस्जिद और दरगाह बना देते हैं.

तब्लीगी जमात मामले में मीडिया की भूमिका को लेकर SC की तल्ख

स्थानीय शासन और प्रशासन को इन्हें बनने से पहले ही रोक देना चाहिए लेकिन सरकारें यह दायित्व पूरा नहीं करती हैं. शीर्ष न्यायालय की एक और तल्ख टिप्पणी तब्लीगी जमात मामले में मीडिया की भूमिका को लेकर आई है. जमीयत-उलमा-ए-हिंद और अन्य संगठन इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे. न्यायालय ने कहा था कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय के सचिव की ओर से इस मामले में हलफनामा दायर किया जाए कि एकपक्षीय प्रसारण को रोकने के लिए सरकार ने क्या किया?

हलफनामा दायर किया मंत्रलय के अतिरिक्त सचिव ने, जिस पर न्यायालय ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आप इस तरह का सलूक नहीं कर सकते जिस तरह का सलूक कर रहे हैं. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन की पीठ ने हलफनामे को  ‘जवाब देने से बचने वाला’ और ‘निर्लज्ज’ करार दिया.  कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है. हलफनामे में तब्लीगी जमात के मुद्दे पर ‘अनावश्यक’ और ‘बेतुकी’ बातें कही गई हैं. मूर्खतापूर्ण तर्क दिए गए हैं.  

अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र के लिए जरूरी तत्व

मुझे लगता है कि न्यायालय ने बिल्कुल सही बात कही है. जब देश में महामारी फैल रही थी तब मीडिया का एक वर्ग ऐसा माहौल बना रहा था जैसे तब्लीगी जमात के कारण ही यह सब हो रहा है. मैं जानता हूं कि मीडिया की आजादी किसी भी सरकार की प्राथमिकता में होनी चाहिए लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं कि मीडिया का एक वर्ग समाज को वैमनस्य की आग में झोंक दे और हम सब मीडिया की आजादी की बात करते रहें. अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र के लिए जरूरी तत्व है लेकिन इसमें जिम्मेदारी का भाव होना चाहिए.शीर्ष अदालत की एक और  टिप्पणी हाथरस कांड को लेकर है. हाथरस गैंगरेप मामले में अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े ने मामले को भयानक, असाधारण और डरावनी घटना की संज्ञा देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि छानबीन बेहतर तरीके से हो.

यहां बड़ा सवाल यह है कि हमारी व्यवस्था इतनी लचर क्यों होती जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट को इतनी तल्ख टिप्पणी करने की जरूरत पड़ जाती है. आश्चर्यजनक तो यह है कि ऐसी तल्ख टिप्पणियों को भी हमारी सरकार और हमारे अधिकारी बड़ी सहजता से पचा जाते हैं. हकीकत यह भी है कि जो निर्णय सरकार को करना चाहिए वह सरकार नहीं करती है और निर्णय लेने का काम न्यायालय पर थोप देती है. इससे कोर्ट का समय खराब होता है और दूसरे मामलों पर सुनवाई में देरी होती है. शासन और प्रशासन पर जब तक न्यायालय का डंडा न पड़े तब तक उनके कानों पर जूं नहीं रेंगती. इतनी बेअदबी हमारी व्यवस्था और हमारे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. सरकार को इस पर गौर करना चाहिए.
 

Web Title: Vijay Darda Blog over Supreme court comment nover shaheen bagh and tabligi jamat: Why does SC have to make such a comment?

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