विजय दर्डा का ब्लॉग: अंधेरा कितना भी घना हो, रौशनी रुकती नहीं

By विजय दर्डा | Published: November 8, 2020 02:44 PM2020-11-08T14:44:04+5:302020-11-08T14:46:20+5:30

इस साल जैसी दिवाली पहले कभी नहीं आई. मैं प्रार्थना करता हूं कि ऐसी दिवाली फिर कभी आए भी न! हालात विकट हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि कोई भी संकट मनुष्य का हौसला कभी कम नहीं कर पाया. मनुष्य न कभी रुका है और न कभी रुकेगा! जीत का जज्बा मनुष्य की तासीर है. इसीलिए कहते हैं कि अंधेरा चाहे कितना भी घना हो, रौशनी कभी रुकती नहीं है.

Vijay Darda blog over diwali: No matter how dark darkness is, light does not stop | विजय दर्डा का ब्लॉग: अंधेरा कितना भी घना हो, रौशनी रुकती नहीं

कोई भी संकट मनुष्य का हौसला कभी कम नहीं कर पाया. मनुष्य न कभी रुका है और न कभी रुकेगा!

अमावस की घनी काली रात में भी एक दीपक कहीं जल जाता है तो अपनी हद तक वह अंधेरे को टिकने नहीं देता. ..और हजारों हजार दीपक जल जाते हैं तो अंधेरा कहीं दूर कोने में सिमट जाता है. हजारों दीपक जल जाते हैं तो आसमान में टंगे सितारे भी छुप जाते हैं. यही दिवाली की तासीर है. यह उल्लास भी है, उमंग भी है और एक दर्शन भी है कि यदि सभी मिलकर ज्योति को प्रज्‍जवलित कर दें तो अंधेरा कहीं टिकेगा ही नहीं. इसी जज्बे के साथ हम हर साल दिवाली मनाते हैं. मगर इस बार हालात विकट हैं.  

हम में से किसी ने भी अपने जीवनकाल में इस तरह की दिवाली नहीं देखी. चीन और पाकिस्तान से युद्ध हुआ, अकाल पड़ा लेकिन हालात ऐसे कभी नहीं थे. आज सबकी आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है और कई घरों के चिराग बुझ गए  हैं. संकट अभी भी टला नहीं है लेकिन हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इंसानी जज्बा और हौसला इस महामारी को परास्त जरूर करेगा. उम्मीद ही जीवन है और यदि हम ठान लें तो यही उम्मीद साक्षात स्वर्ग समान है. मनुष्य का जज्बा इतना जबर्दस्त है कि उसे कोई रोक नहीं सकता और न रोक पाया है. इस विकट परिस्थिति में भी अमेरिका और बिहार में चुनाव हो गए. यही तो हौसला है!

मंदिर बंद करने से पूजा रुक गई?

क्या मंदिर बंद करने से पूजा रुक गई? लोगों ने मन को मंदिर बना लिया और वास्तव में यही सही पूजा है. इस बार परंपरागत रूप से पूजा कराने पंडितजी नहीं आएंगे. लोग खुद पंडित रहेंगे और खुद ही पूजा-अर्चना और आराधना करेंगे. मुङो लगता है कि किसी की कराई गई पूजा से ज्यादा श्रेष्ठ खुद के द्वारा की गई पूजा है.  

पौराणिक कथाओं पर नजर डालें तो बड़े संकटों का सामना करने के बाद ही खुशहाली के त्यौहार दिवाली की बुनियाद पड़ी. कुछ पौराणिक कहानियां आप में से बहुत से लोगों ने सुनी होंगी लेकिन युवा साथियों में से बहुतों को पता नहीं होगा कि दिवाली मनाई क्यों जाती है. यह कथा तो बहुत प्रचलित है कि भगवान श्रीराम जब रावण को मार कर अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने  दीपक जलाकर उनका स्वागत किया. 

जगमग त्यौहार को दिवाली

इस जगमग त्यौहार को दिवाली का नाम दिया गया. इसके अलावा भी और कहानियां प्रचलित हैं. जब भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर दैत्यराज हिरण्यकश्यप का वध किया तो लोगों ने खुशी के इजहार के लिए घी के दीपक जलाए थे. यह भी मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध किया. इसी खुशी में अगले दिन दीपक जलाकर खुशियां मनाई गईं. एक मान्यता यह भी है कि राक्षसों का वध करने के बाद भी मां काली का क्रोध कम नहीं हुआ तो भगवान शिव उनके चरणों में लेट गए. उनके स्पर्श से मां काली का क्रोध शांत हो गया. उसके बाद से ही मां के शांत स्वरूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई. 

मान्यता यह भी है कि पांडवों के बारह साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास से लौटने का प्रतीक है दिवाली.हम किसी भी कथा को सही मानें, इन सभी पौराणिक कथाओं का सार यही है कि किसी समस्या का समाधान हुआ तो लोगों ने खुशियों के दीपक जलाए और दिवाली की शुरुआत हुई. वक्त के साथ दीपक की जगह रंग-बिरंगे बल्बों ने ले ली है लेकिन हकीकत यह है कि हम कितने भी आधुनिक हो जाएं, बल्ब जला लें लेकिन पंचतत्व के गुणों से भरपूर मिट्टी के दीपक की जगह बल्ब ले ही नहीं सकते. इसलिए हम शगुन का दीपक जलाते हैं.

दिवाली में पटाखों से बचें

बहरहाल, एक बार फिर हमारे सामने एक सूक्ष्म मगर बहुत भीषण प्रवृत्ति वाला राक्षस खड़ा है. इसे हम कोरोना परिवार के कोविड-19 वायरस के नाम से जान रहे हैं. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इस राक्षस पर भी हम विजय पा ही लेंगे. यदि हमने अपने भीतर ज्ञान और अनुशासन के दीपक को जलाए रखा तो बचा-खुचा वायरस भी अपनी मौत मर जाएगा. जरूरत केवल इतनी है कि हम अपने भीतर के हौसले और हिम्मत को बनाए रखें.  अपने जज्बे में उल्लास भरते रहें.

हां, दिवाली के संदर्भ में एक बहुत जरूरी बात आप सभी से करना चाहता हूं कि पटाखों से बचें. इन्हीं पटाखों के कारण हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है या वे अपंग हो जाते हैं. न जाने कितने पशु-पक्षियों की मौत हो जाती है. ढेर सारा प्रदूषण भी फैलता है. यह अज्ञान है. और हमें ज्ञान की ओर जाना है तो इसे छोड़ना पड़ेगा. एक आकलन है कि हमारे देश में हर साल दिवाली पर करीब 2600 करोड़ रुपए के पटाखे जलाए जाते हैं. ध्यान रखिए कि बारूद जलाना हमारी संस्कृति का हिस्सा कतई नहीं है. हम तो प्रकृति को पूजने वाली संस्कृति के लोग हैं तो हम बारूद जलाकर प्रकृति को नुकसान कैसे पहुंचा सकते हैं? पटाखों का आविष्कार तो सातवीं शताब्दी में चीन ने किया था. 

शगुन की एक फुलझड़ी छोड़ लें!  

उसके बाद सन 1200 से 1700 के बीच यह दुनिया में लोकप्रिय हुआ. वक्त के किसी दौर में यह बुराई हमसे चिपक गई और तबसे चिपकी ही हुई है. जो समझदार हैं वे इससे दूर हो रहे हैं. कुछ लोग परंपरा को लेकर इतने संवेदनशील हो जाते हैं कि उन्हें लगता है कि पटाखा फोड़ने से मना करना परंपरा पर हमला करना है लेकिन ऐसा नहीं है. आप चाहें तो शगुन की एक फुलझड़ी छोड़ लें!  वैसे आपको बता दें कि एक फुलझड़ी भी 74 सिगरेट जितना नुकसान पहुंचाती है. एक अनार 34 सिगरेट के बराबर नुकसान करता है पटाखे जलाने का मतलब है दूसरों के साथ खुद को भी नुकसान पहुंचाना.  तो इस दिवाली को धुएं, धमाके और शोर का पर्व मत बनाइएगा.

तो इस दिवाली पर परिवार और मित्रों के साथ खूब मस्ती कीजिए, खूब रौशनी कीजिए, आनंद से अभिभूत हो जाइए. हां, सुरक्षित दूरी का जरूर ध्यान रखिएगा. मैं मां लक्ष्मी से प्रार्थना कर रहा हूं कि किसानों, मजदूरों और हमारी दिवाली को सुखद बनाने के लिए सीमा से लेकर सड़क तक तैनात सजग जवानों और पुलिसकर्मियों की दिवाली भी बहुत अच्छी हो.
आप सभी को दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं.
 

Web Title: Vijay Darda blog over diwali: No matter how dark darkness is, light does not stop

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