वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: यूरोपीय संघ से मुंह मोड़ता ब्रिटेन

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 28, 2020 12:39 IST2020-12-28T12:38:17+5:302020-12-28T12:39:15+5:30

यूरोपीय संघ के मछुआरे विशाल ब्रिटिश समुद्र में निर्बाध मछली पकड़ते थे लेकिन अब वे उसके तीन-चौथाई के पानी में ही पकड़ सकेंगे, वह भी सिर्फ साढ़े पांच साल तक. उसके बाद हर वर्ष के लिए उन्हें कोई समझौता करना पड़ेगा.

Vedpratap Vedic blog: Britain turning its back on the European Union | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: यूरोपीय संघ से मुंह मोड़ता ब्रिटेन

यूरोपीय देशों का सस्ती मजदूरी पर बना माल ब्रिटिश उद्योगों को ठप करता चला जा रहा था

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से ज्यादा खुश इस समय कौन होगा? उन्होंने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर लाने में सफलता जो अर्जित कर ली है. इसी मुद्दे पर ब्रिटेन के दो प्रधानमंत्रियों, डेविड केमरून और थेरेसा मे के इस्तीफे हो चुके हैं. 2016 में जब यूरोपीय संघ से अलग होने के मुद्दे पर ब्रिटेन में जनमत संग्रह हुआ था तो सिर्फ 52 प्रतिशत लोगों ने उसके पक्ष में वोट दिया था.

खुद जॉनसन पसोपेश में थे कि यूरोपीय संघ से इस मुद्दे पर कोई समझौता हो पाएगा या नहीं? पिछले 10 माह से चली आ रही वार्ता से दोनों पक्ष संतुष्ट दिखाई पड़ रहे हैं और ब्रिटिश संसद अपने छुट्टी के दिनों में भी इस समझौते पर मुहर लगाने के लिए अब लंदन में जुटेगी. 31 जनवरी को ब्रिटेन अब 47 साल बाद इस यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा.

28 देशों का यह संगठन दुनिया का सबसे मालदार और शक्तिशाली साझा बाजार माना जाता रहा है. आयरलैंड के अलावा सभी देशों ने इस समझौते पर संतोष जाहिर किया है लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री का कहना है कि इस समझौते के कारण अब उन्होंने ब्रिटेन को उसकी संप्रभुता वापस लौटा दी है.

अब यूरोपीय देशों के साथ व्यापार में कोई तटकर या बंधन आदि नहीं रहेगा. लेकिन ब्रिटेन के व्यापारियों को अब छोटी-मोटी कई औपचारिकताओं से जूझना पड़ेगा.

अब उन्हें मुक्त-व्यापार की सुविधा नहीं मिलेगी. अब तक वे बड़े यूरोपीय बाजार के अभिन्न अंग थे. ब्रिटेन को यह लाभ भी मिलेगा कि अब वहां यूरोपीय लोग ब्रिटिश नौकरियों और रोजगार पर पहले की तरह हाथ साफ नहीं कर सकेंगे.

यूरोपीय देशों का सस्ती मजदूरी पर बना माल ब्रिटिश उद्योगों को ठप करता चला जा रहा था. अब ब्रिटेन के उद्योगपति और व्यापारी भी राहत की सांस ले रहे हैं.

यूरोपीय संघ के मछुआरे विशाल ब्रिटिश समुद्र में निर्बाध मछली पकड़ते थे लेकिन अब वे उसके तीन-चौथाई के पानी में ही पकड़ सकेंगे, वह भी सिर्फ साढ़े पांच साल तक. उसके बाद हर वर्ष के लिए उन्हें कोई समझौता करना पड़ेगा.

अन्य देशों में बने माल को अब ब्रिटेन यूरोप में आसानी से नहीं खपा सकेगा. इस स्थिति से भारत चाहे तो काफी लाभ उठा सकता है. लेकिन ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकल जाना दुनिया में साझा बाजारों की राजनीति पर उल्टा असर भी डालेगा.

Web Title: Vedpratap Vedic blog: Britain turning its back on the European Union

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