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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: किसान और सरकार, दोनों दिखाएं नरमी

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: January 29, 2021 13:25 IST

किसान आंदोलन 26 जनवरी को उग्र हो गया था, जब कुछ प्रदर्शनकारी लाल किले के अंदर जबरन घुस गए...

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26 जनवरी की घटनाओं ने सिद्ध किया कि सरकार और किसान दोनों अपनी-अपनी कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए लेकिन अब असली सवाल यह है कि आगे क्या किया जाए? किसान लोग एक फरवरी को संसद पर प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे, यह मैंने लाल किले का काला दृश्य देखते ही लिख दिया था लेकिन अब उनके धरने का क्या होगा? किसान नेताओं ने वह प्रदर्शन तो रद्द कर दिया है लेकिन अब वे 30 जनवरी को एक दिन का अनशन रखेंगे.

यह तो मैंने किसान नेताओं को पहले ही सुझाया था लेकिन यह एक दिवसीय अनशन इसलिए भी अच्छा है कि लाल किले की घटना पर यह पश्चाताप की तरह होगा. यह किसानों के अहिंसक और अपूर्व आंदोलन की छवि को सुधारने में भी मदद करेगा.

किसान नेताओं में अब मतभेद उभरने लगे हैं. दो संगठनों ने तो अपने आपको इस आंदोलन से अलग भी कर लिया है. उनके अलावा कई अन्य किसान नेता भी लाल किले की घटना और तोड़-फोड़ से काफी विचलित हैं. कुछ किसान नेताओं द्वारा उक्त घटनाओं के लिए सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. कई किसानों ने धरनों से लौटना भी शुरू कर दिया है.

इसमें शक नहीं कि इन सब घटनाओं ने सरकार की इज्जत में इजाफा कर दिया है, खास तौर से इसलिए कि इतना सब होते हुए भी सरकार ने असाधारण संयम का परिचय दिया. लेकिन इस संयम का दूसरा पहलू ज्यादा गंभीर है. उससे यह उजागर हुआ है कि सरकारी नेताओं को जन-आंदोलनों की पेचीदगियों का अनुभव नहीं है. उन्हें 1922 के चौरीचौरा, 1966 के गोरक्षा और 1992 के बाबरी मस्जिद कांड का ठीक से पता होता तो वे इस प्रदर्शन की अनुमति ही नहीं देते और यदि दी है तो उसके नियंत्नण का पुख्ता इंतजाम भी करते.

खैर, अब सवाल यह है कि किसान और सरकार क्या-क्या करें? दोनों अपना-अपना हठ छोड़ें. वैसे सरकार ने तो नरमी दिखाई है. उसने किसानों को पराली जलाने और बिजली-बिल के कानूनों से छूट दे दी और उसके साथ-साथ डेढ़ साल तक तीनों कृषि कानूनों को ताक पर रखने की घोषणा भी कर दी.

अब किसान चाहें तो उनमें इतने संशोधन सुझा दें कि उनकी सब चिंताएं दूर हो जाएं. भारत की कोई सरकार, जो आज कल 30-32 करोड़ वोटों से बनती है, वह अपने 50-60 करोड़ किसानों को नाराज करने का खतरा कभी मोल नहीं लेगी. सरकार यह घोषणा भी तुरंत क्यों नहीं करती कि कृषि राज्यों का विषय है. अत: वे ही तय करें कि वे अपने यहां इन कानूनों को लागू करेंगे या नहीं करेंगे. देखें, फिर यह मामला हल होता है या नहीं?

टॅग्स :किसान आंदोलनभारतभारत सरकार
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