वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सत्ता सत्य है, राजनीति मिथ्या

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 14, 2019 01:02 IST2019-07-14T01:02:09+5:302019-07-14T01:02:09+5:30

कर्नाटक और गोवा के कांग्रेसी विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ने की घोषणा क्यों की? क्या वे वर्तमान सरकारों से कोई बेहतर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं? क्या उनकी पार्टियों ने कोई भयंकर भ्रष्ट आचरण किया है? ऐसा कुछ नहीं है.

Ved Pratap Vaidik's Blog: Power is Truth, Politics False | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सत्ता सत्य है, राजनीति मिथ्या

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः सत्ता सत्य है, राजनीति मिथ्या

इस सप्ताह कर्नाटक और गोवा में जो कुछ हो रहा है, उसने सारे देश को वेदांती बना दिया है. वेदांत की प्रसिद्ध उक्ति है- ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या- यानी ब्रम्ह ही सत्य है, यह जगत तो मिथ्या है. दूसरे शब्दों में सत्ता ही सत्य है, राजनीति मिथ्या है.  राजनीति, विचारधारा, सिद्धांत, परंपरा, निष्ठा सब कुछ मिथ्या है. कर्नाटक और गोवा के कांग्रेसी विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ने की घोषणा क्यों की? क्या वे वर्तमान सरकारों से कोई बेहतर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं? क्या उनकी पार्टियों ने कोई भयंकर भ्रष्ट आचरण किया है? ऐसा कुछ नहीं है. एक ही बात है कि इन विधायकों पर मंत्नी बनने का भूत सवार हो गया है. हम मंत्नी बनें या न बनें, तुमको तो हम सत्ता में नहीं ही रहने देंगे.
  
यह तो कथा हुई कर्नाटक की और गोवा के 10 कांग्रेस विधायक भाजपा में इसलिए शामिल हो गए कि उनमें से तीन को तो मंत्रीपद मिल ही रहा है, बाकी के विधायक सत्तारूढ़ दल के सदस्य होने के नाते लाभ का पद ले लेंगे. दल-बदल कानून उनके विरु द्ध लागू नहीं होगा, क्योंकि उनकी संख्या दो-तिहाई से ज्यादा है, 14 में से 10. यह तो हुई कांग्रेसी विधायकों की लीला लेकिन जरा देखिए भाजपा का भी रवैया. कर्नाटक में उसे अपनी सरकार बनाना है, क्योंकि संसद की 28 में से 25 सीटें जीतकर उसने अपना झंडा गाड़ दिया है. उसे इस बात की परवाह नहीं है कि देश भर में उसकी छवि क्या बनेगी? 

इस्तीफे देनेवाले विधायक आखिर इतनी बड़ी कुर्बानी क्यों कर रहे हैं? उन पर तो दल-बदल कानून लागू होगा, क्योंकि उनकी संख्या एक-चौथाई भी नहीं है.  दुबारा चुनाव लड़ने पर उनकी जीत का भी कोई भरोसा नहीं है. इस सारे मामले में सबसे रोचक रवैया कर्नाटक की कांग्रेस और जनता दल (एस) का है. वे इन विधायकों के इस्तीफे ही स्वीकार नहीं होने दे रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष जैसी पलटियां खा रहे हैं, उनसे उनका यह पद ही मजाक का विषय बन गया है. 

कर्नाटक और गोवा ने भारतीय राजनीति की छवि धूमिल करके रख दी है. अब संसद को एक नया दल-बदल कानून बनाना चाहिए कि किसी भी पार्टी के विधायक और सांसद, उनकी संख्या चाहे जितनी भी हो, दल-बदल करेंगे तो उन्हें इस्तीफा देना होगा. दलों को भी अपना आंतरिक कानून बनाना चाहिए कि जो भी सांसद या विधायक दल बदलकर नई पार्टी में जाना चाहे, उसे प्रवेश के लिए कम से कम एक साल प्रतीक्षा करनी होगी. 

Web Title: Ved Pratap Vaidik's Blog: Power is Truth, Politics False

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