वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनीति में नैतिक पतन

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 25, 2019 16:36 IST2019-07-25T16:36:17+5:302019-07-25T16:36:17+5:30

कांग्रेस और जद (एस) के जिन विधायकों ने दल-बदल किया है, वे कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने उनके निर्वाचन-क्षेत्रों की उपेक्षा की है इसीलिए वे पार्टी छोड़ रहे हैं. 

ved pratap vaidik blog: Moral decline in politics | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनीति में नैतिक पतन

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राजनीति में नैतिक पतन

हम समझ रहे हैं कि कर्नाटक के नाटक का समापन हो गया. विधानसभा में विश्वास का प्रस्ताव क्या गिरा और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने इस्तीफा क्या दिया, देश के लोगों ने चैन की सांस ले ली लेकिन पिछले 18 दिन से चल रहे इस नाटक का यह पटाक्षेप या अंत नहीं है, बल्किउसकी यह शुरु आत है. यह किसे पता नहीं था कि कांग्रेस+जद (एस) गठबंधन की यह सरकार गिरनेवाली ही है.

इसे बचाना पहले दिन से ही लगभग असंभव दिख रहा था. अब जिन  विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं, उनका भाग्य तो अधर में लटका ही हुआ है, यह भी पता नहीं कि सिर्फ6 के बहुमत से बननेवाली भाजपा सरकार कितने दिन चलेगी?

इसमें शक नहीं कि 14 महीने पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण कांग्रेस और जद (एस) के अस्वाभाविक गठबंधन का राज कायम हो गया था.  कांग्रेस और जद (एस) के जिन विधायकों ने दल-बदल किया है, वे कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने उनके निर्वाचन-क्षेत्रों की उपेक्षा की है इसीलिए वे पार्टी छोड़ रहे हैं. 

उनका करारा जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने विधानसभा को बताया है कि किस विधायक को विकास के नाम पर कितने सौ करोड़ रु . दिए गए हैं. उधर कांग्रेस आरोप लगा रही है कि इन विधायकों को भाजपा ने 40 करोड़ से 100 करोड़ तक प्रति व्यक्ति दिए हैं. दूसरे शब्दों में कर्नाटक में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा हुई है.

कर्नाटक में पहले उन पार्टियों ने हाथ से हाथ मिलाकर सरकार बनाई, जो चुनाव में एक-दूसरे पर गालियों की वर्षा कर रहे थे और अब भाजपा की जो नई सरकार बन रही है, वह उन लोगों के सहारे बन रही है जो भाजपा, येदियुरप्पा और प्रधानमंत्री मोदी को पानी पी-पीकर कोसते रहे हैं. 

ऐसी स्थिति में जबकि सभी पार्टियों ने सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है, आप किसको सही कहें और किसको गलत? गोवा में जो हुआ, वह इससे भी ज्यादा भीषण है. पैसों और पदों के खातिर कौन नेता और कौन दल कब शीर्षासन की मुद्रा धारण करेगा, कुछ नहीं कह सकते. सत्ता की खातिर कांग्रेस कब भाजपा बन जाएगी और भाजपा कब कांग्रेस बन जाएगी, कोई नहीं जानता. इसीलिए भर्तृहरि ने हजार साल पहले राजनीति को वारांगना (वेश्या) कहा था.

Web Title: ved pratap vaidik blog: Moral decline in politics

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