वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: यूक्रेन मामले को लेकर भारत की तटस्थता
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 28, 2022 13:00 IST2022-02-28T13:00:52+5:302022-02-28T13:00:52+5:30
रूस ने शीतयुद्ध-काल में भारत का लगभग हर मुद्दे पर समर्थन किया है. गोवा और सिक्किम के भारत में विलय का सवाल हो, कश्मीर या बांग्लादेश का मुद्दा हो, परमाणु बम का मामला हो- रूस ने हमेशा खुलकर भारत का समर्थन किया है.

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: यूक्रेन मामले को लेकर भारत की तटस्थता
यूक्रेन को पानी पर चढ़ाकर अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र अब उसके साथ झूठी सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं. सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने रूस की निंदा का प्रस्ताव रखा तो उसे क्या यह पता नहीं था कि उसका प्रस्ताव औंधे मुंह गिर पड़ेगा?
अभी तो सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 11 ने ही उसका समर्थन किया था, यदि पूरी सुरक्षा परिषद यानी सभी 14 सदस्य भी उसका समर्थन कर देते तो भी वह प्रस्ताव गिर जाता, क्योंकि रूस तो उसका निषेध (वीटो) करता ही.
वर्तमान अमेरिकी प्रस्ताव पर तीन राष्ट्रों- भारत, चीन और यूएई ने परिवर्जन (एब्सटैन) किया यानी वे तटस्थ रहे. इसका अर्थ क्या हुआ? यही कि ये तीनों राष्ट्र रूसी हमले का न समर्थन करते हैं और न ही विरोध करते हैं. चीन ने अमेरिकी प्रस्ताव का विरोध नहीं किया, यह थोड़ा आश्चर्यजनक है, क्योंकि इस समय चीन तो अमेरिका का सबसे कड़क विरोधी राष्ट्र है.
रूस तो उम्मीद कर रहा होगा कि कम से कम चीन तो अमेरिकी निंदा-प्रस्ताव का विरोध जरूर करेगा. जहां तक भारत का सवाल है, उसका रवैया उसके राष्ट्रहित के अनुकूल है. वह रूस-विरोधी प्रस्ताव का समर्थन कैसे करता? अमेरिका और नाटो राष्ट्रों के साथ बढ़ते हुए संबंधों के बावजूद आज भी भारत को सबसे ज्यादा हथियार देनेवाला राष्ट्र रूस ही है.
रूस वह राष्ट्र है, जिसने शीतयुद्ध-काल में भारत का लगभग हर मुद्दे पर समर्थन किया है. गोवा और सिक्किम के भारत में विलय का सवाल हो, कश्मीर या बांग्लादेश का मुद्दा हो, परमाणु बम का मामला हो- रूस ने हमेशा खुलकर भारत का समर्थन किया है जबकि यूक्रेन ने संयुक्त राष्ट्र में जब भी भारत से संबंधित कोई महत्वपूर्ण मामला आया, उसने भारत का विरोध किया है. चाहे परमाणु-परीक्षण का मामला हो, कश्मीर का हो या सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का मामला हो, यूक्रेन ने भारत-विरोधी रवैया ही अपनाया है.
भारत ने उससे जब भी यूरेनियम खरीदने की पहल की, वह उसे किसी न किसी बहाने टाल गया. ऐसी हालत में भारत यूक्रेन को रूस के मुकाबले ज्यादा महत्व कैसे दे सकता था? उसने खुलेआम रूस का साथ नहीं दिया, यह अपने आप में काफी रहा.