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वरुण गांधी का ब्लॉगः विश्वविद्यालयों को संकटों से उबारने की दरकार

By वरुण गांधी | Published: May 13, 2022 3:40 PM

केंद्रीय स्तर पर छात्रों को मिलने वाली वित्तीय मदद को वित्त वर्ष 2021-22 में 2,482 करोड़ रुपए से घटाकर वित्त वर्ष 2022-23 में 2,078 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसी तरह इस दौरान अनुसंधान और नवाचार के लिए वित्तीय आवंटन में आठ फीसदी की कमी आई है।

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क्या हमारे विश्वविद्यालय जानबूझकर जकड़बंदी की स्थिति में हैं? 2012 से उच्च शिक्षा पर खर्च 1.3 से 1.5 फीसदी पर स्थिर रहा है। दिलचस्प है कि इस दौरान शिक्षा मंत्रालय उच्च शिक्षा संस्थानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दस फीसदी का कोटा लागू करने के लिए अपनी सेवा क्षमता को 25 फीसदी बढ़ाने पर जोर देता रहा है, जबकि वित्त मंत्रालय शिक्षण के लिए नए पदों के सृजन पर रोक का राग अलाप रहा है। केंद्रीय स्तर पर छात्रों को मिलने वाली वित्तीय मदद को वित्त वर्ष 2021-22 में 2,482 करोड़ रुपए से घटाकर वित्त वर्ष 2022-23 में 2,078 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसी तरह इस दौरान अनुसंधान और नवाचार के लिए वित्तीय आवंटन में आठ फीसदी की कमी आई है।

दरअसल, तमाम बड़े शिक्षण संस्थान कई तरह के संकटों से घिरे हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर वित्तीय संकट, संकाय के लिए अनुसंधान के अवसरों में कमी, खराब बुनियादी ढांचे और छात्रों के लिए सीखने के सिकुड़ते अवसर से स्थिति खासी दयनीय हो गई है। किसी भी विरोध के खिलाफ बर्बर पुलिस कार्रवाई और कैंपस में दमनात्मक गतिविधियों ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या हमारी सरकार और उसकी नौकरशाही अपने ही विश्वविद्यालयों को फलने-फूलने से रोक रही है? विश्वविद्यालय के बुनियादी ढांचे में निवेश लगातार घटता जा रहा है। देश के ज्यादातर विश्वविद्यालय, आईआईटी और आईआईएम का बुनियादी ढांचा खस्ताहाल है। सभी जगह कक्षाओं में क्षमता से ज्यादा छात्र हैं, आबोहवा और स्वच्छता की स्थिति बदतर है। छात्रावासों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। उच्च शिक्षा अनुदान एजेंसी (एचईएफए) ने वित्त वर्ष 2020-21 में अपने बजट को 2000 करोड़ रुपए से घटाकर वित्त वर्ष 21-22 में एक करोड़ रु। कर दिया। विश्वविद्यालयों को ऋण लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मसलन, एचईएफए से दिल्ली विश्वविद्यालय 1075 करोड़ रु। का कर्ज मांग रहा है।

जो स्थिति है उसमें विश्वविद्यालयों के लिए दिन-प्रतिदिन के खर्चों को भी पूरा करना मुश्किल है। यूजीसी को वित्त वर्ष 2021-22 के 4693 करोड़ रु. के मुकाबले 2022-23 में 4,900 करोड़ रु. आवंटित किए गए, लेकिन नकदी प्रवाह में कमी से डीम्ड/ केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वेतन भुगतान में देरी हुई है। जो सूरत है उसमें देश के ज्यादातर विश्वविद्यालय घाटे में चल रहे हैं। मद्रास विश्वविद्यालय ने 100 करोड़ रु. से अधिक का संचित घाटा देखा, जिससे उसे राज्य सरकार से 88 करोड़ रु. का अनुदान प्राप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा। राज्य द्वारा आवंटन लगभग आधे से कम हो गया है।

वित्तीय संकट के कारण विश्वविद्यालयों के विवेकाधीन खर्च में कटौती हुई है। दिल्ली के कई कॉलेज बुनियादी डाटाबेस और पत्रिकाओं की सदस्यता लेने में असमर्थ हैं। बुनियादी ढांचे के लिए अनुदान/ऋण और निर्बाध आर्थिक मदद का तंत्र स्थापित करने के साथ-साथ वित्तीय आवंटन बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों को स्टार्ट-अप रॉयल्टी और विज्ञापन जैसे राजस्व विकल्पों का उपयोग करने के लिए भी मुक्त करने की दरकार है।

अनुसंधान अनुदान भी काफी कम हो गया है। यूजीसी की लघु और प्रमुख अनुसंधान परियोजना योजनाओं के तहत अनुदान वित्त वर्ष 2016-17 में 42.7 करोड़ रु. से घटकर वित्त वर्ष 2020-21 में 38 लाख रु. रह गया है। भारत में 1043 विश्वविद्यालय हैं, लेकिन महज 2.7 फीसदी पीएचडी कार्यक्रमों की पेशकश करते हैं। ऐसे विश्वविद्यालयों को न्यून वित्तीय पोषण और खराब बुनियादी ढांचे का सामना करना पड़ रहा है। विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। उसके पास बजट का भी संकट है। अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालयों के वित्त पोषण में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है। एनआरएफ जैसे संस्थान मौजूदा योजनाओं (विज्ञान मंत्रालय सहित) के पूरक हैं। अंडरग्रेजुएट्स के लिए पाठ्यक्रम-आधारितशोध अनुभवों को सक्षम करने के लिए राशि भी आवंटित की जानी चाहिए।

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