इस जहां में मोहब्बत के सिवा और कुछ न हो. अंदाजन तीसरी शताब्दी में जन्मे रोम के एक पादरी वैलेंटाइन की याद में 14 फरवरी को दुनिया के बहुत सारे देशों के युवा वैलेंटाइन डे यानी प्यार का इजहार दिवस मनाते हैं. जिंदगी में प्यार एक ऐसा केमिकल लोचा है जिसके बगैर जिंदगी के खुशनुमेपन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. प्यार के लिए वैसे तो आप मोहब्बत और इश्क शब्द का भी उपयोग कर सकते हैं लेकिन हर शब्द की अपनी आभा होती है, अपना विन्यास होता है. आप अपनी भावनाओं के अनुकूल शब्द का चयन कर सकते हैं. मोहब्बत एक ऐसा शब्द है जिसकी अभिव्यक्ति में बहुत सारे रिश्ते पुलकित हो उठते हैं इसलिए हम मोहब्बत की बात करेंगे.
वैलेंटाइन से हजारों साल पहले से भारतीय संस्कृति मोहब्बत के रंग में रंगी रही है. भारतीय संस्कृति ने अपने उद्भव काल में यह सत्य समझ लिया था कि प्रेम से बढ़कर और कोई ऐसी भावना नहीं है जो मनुष्य को उच्चता के शिखर तक ले जा सके. जब दुनिया बहुत सारे खंडों में बंटी थी, एक जगह का दूसरे जगह से कोई संपर्क नहीं था तब भारतीय प्राचीन ग्रंथ ‘महा उपनिषद’ में कहा गया वसुधैव कुटुम्बकम यानी पूरी दुनिया एक परिवार है.
जरा सोचिए कि मोहब्बत की यह कितनी बड़ी मिसाल है कि जो भी इस धरा पर है वह एक परिवार है. जब आप एक परिवार के रूप में विश्व को देखते हैं तो इसका मतलब है कि हर किसी के प्रति प्रेम और मोहब्बत का भाव रखते हैं. प्रेम या मोहब्बत को केवल युवाओं के इश्क से जोड़कर देखना मोहब्बत का उपहास ही कहा जाएगा. क्या कभी आपने इस बात की विवेचना की है कि यदि दुनिया वास्तव में एक परिवार के रूप में विकसित हुई होती तो आज इंसान की जिंदगी कितनी खुशनुमा होती! फिर न ये परमाणु बम बनता न बैलेस्टिक मिसाइलों की होड़ मची होती. कोई देश किसी पर हमला नहीं करता लेकिन ये खयाली पुलाव से ज्यादा और कुछ नहीं है.
हां, जो हमारी पहुंच में है, उतना तो हम कर ही सकते हैं. कम-से-कम अपने परिवार, अपने मोहल्ले और अपने समाज में तो हम मोहब्बत का माहौल बना ही सकते हैं. यह तो कर ही सकते हैं कि नफरत को कोई हवा न मिले. हमें यह सोचना होगा कि वैलेंटाइन डे पर एकतरफा प्रेम में गुलाब भेंट करने वालों में से कोई सिरफिरा जान का दुश्मन महज इसलिए बन जाता है क्योंकि लड़की गुलाब स्वीकार नहीं करती.
प्रेम परवान चढ़ भी जाए तो फिर ऐसा क्या हो जाता है कि प्रेमिका के टुकड़े फ्रीज में पहुंचा दिए जाते हैं. कुछ तो गड़बड़ है जो नफरत को पालता पोसता है और मोहब्बत की जान ले लेता है. धर्म और जाति के नाम पर क्यों ऑनर किलिंग होती है? क्यों लव जिहाद जैसा वाक्य समाज में नफरत के बीज घोल देता है. आज सबसे बड़ी जरूरत है कि हम नफरत को कोई हवा न दें. कहीं नफरत की हवा उठे भी तो उसे मोहब्बत तले दफन कर दें. हमारे आसपास से लेकर दूरदराज तक ये जो झगड़ा-झंझट और मार-काट मची हुई है इसका उपचार केवल और केवल प्रेम-मोहब्बत है.नफरतों से भरी इस दुनिया मेंमोहब्बत की दरिया बहनी चाहिएकुछ आप कहें...कुछ हम भी कहेंबात बस मोहब्बत की होनी चाहिए...!