Uttarkashi Cloudburst Flash Floods: देवभूमि कहलाने वाला उत्तराखंड देश के उन उत्तर भारतीय राज्यों में से है, जहां मानसून के बादल सबसे ज्यादा बरसते हैं. पर इन्हीं बादलों से 5 अगस्त 2025 को इस राज्य के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में ऐसी तबाही हुई जिसकी कोई पूर्व चेतावनी उन्हें नहीं मिली थी. इस राज्य की प्रमुख चारधाम यात्रा मार्ग में पड़ने वाली हर्षिल घाटी के नजदीक स्थित इस गांव में कई होटल थे, जहां चारधाम यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु अक्सर रुकते रहे हैं. आशंका है कि सैकड़ों लापता लोगों में से ज्यादातर बादल फटने से हुई इस भीषण आपदा की चपेट में आकर जान गंवा बैठे होंगे. घर-मकान और होटल आदि संपत्तियों का नुकसान अलग से हुआ है. इस पर्वतीय राज्य में यह पहली ऐसी घटना नहीं है,
लेकिन अतीत की घटनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि हमारे देश ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का कोई ठोस मैकेनिज्म नहीं तैयार किया है. बाढ़, भूकंप, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं को प्रायः टाला नहीं जा सकता, लेकिन उनका असर कम किया जा सकता है.
केदारनाथ में जून, 2013 को हुए भूस्खलन और भीषण बाढ़ में हुई कथित तौर पर 5 हजार मौतों के बाद माना गया था कि भविष्य में ऐसे सभी उपाय किए जाएंगे, जिनसे अव्वल तो ऐसी घटनाओं की पूर्व सूचना मिल जाए, साथ ही आपदा से होने वाले असर को न्यूनतम किया जा सके.
लेकिन केदारनाथ हादसे के 10 साल बाद उत्तरकाशी सुरंग हादसे ने साबित किया कि इस पर्वतीय राज्य को लगातार भीतर से कमजोर किया जा रहा है. इसके दुष्परिणाम कभी 41 मजदूरों को उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग में फंसने को मजबूर करते हैं, तो कभी जोशीमठ नाम का पूरा शहर ही अचानक धंसने लगता है.
दावा किया गया था कि जनवरी 2023 में जब जोशीमठ धंसना शुरू हुआ था तो इसके पीछे की असली वजह राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम की तपोवन- विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना और हेलंग बायपास का निर्माण था.बारिश से प्रभावित रहने वाले राज्यों के तमाम ऊंचे-नीचे ढलान वाले पहाड़ी इलाकों को हमेशा ही भूस्खलन और बादल फटने की संभावित घटनाओं वाले क्षेत्रों में गिना जाना चाहिए.
यानी वहां बारिश से बाढ़ और भूस्खलन के हालात कभी भी पैदा हो सकते हैं. ऐसे ज्यादातर इलाकों को संवेदनशील माना जाता रहा है. लेकिन यह सुनिश्चित करने की कोई गंभीर पहल नहीं हुई कि ऐसे इलाकों में कोई भी विकास कार्य संवेदनशील ढंग से किया जाए.
पर्यावरण से जुड़ी किसी भी त्रासदी का अपेक्षाकृत यह एक नया पहलू है कि जिन क्षेत्रों में हाल के दशकों में पर्यटन संबंधी गतिविधियां बढ़ी हैं, वहां प्रकृति के तेज क्षरण और नियम-कायदों की अनदेखी का सिलसिला शुरू हुआ है. जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के कारण जिस प्रकार शहरों में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है,
लोगबाग सुकून पाने के लिए पर्वतीय इलाकों की तरफ भागने लगे हैं. खास तौर से छुट्टियां बिताने के लिए लोग पहाड़ी और ठंडे इलाकों को पसंद करते हैं. इन लोगों को ठहरने-खाने पीने की सुविधा देने वाले होमस्टे और रिसॉर्ट की संख्या में हाल के दशकों में कई गुना इजाफा हुआ है.