उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्षेत्रीय राजनीति से अलग गढ़ रहे हैं अपनी राष्ट्रीय छवि?

By हरीश गुप्ता | Updated: July 16, 2025 05:28 IST2025-07-16T05:28:31+5:302025-07-16T05:28:31+5:30

पांच भारतीय भाषाओं- हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में रिलीज होने वाली यह फिल्म योगी को अनुशासन, त्याग और मजबूत शासन के प्रतीक के रूप में पेश करना चाहती है.

Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath building national image apart from regional politics blog harish gupta | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्षेत्रीय राजनीति से अलग गढ़ रहे हैं अपनी राष्ट्रीय छवि?

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Highlightsमुख्यमंत्री बनने तक की उनकी आध्यात्मिक यात्रा और राजनीतिक उत्थान पर जोर देती है. फिल्म योगी को अखिल भारतीय अपील वाले नेता के रूप में स्थापित करती है.यह सिनेमाई उद्यम कोई अलग-थलग रूप से होने वाली चीज नहीं है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्षेत्रीय राजनीति से अलग अपने सार्वजनिक व्यक्तित्व को लगातार आकार दे रहे हैं, जिसका लक्ष्य राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका है. इस छवि निर्माण के कार्य के केंद्र में आगामी बायोपिक ‘अजय : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ए योगी’ है, जो उनके जीवन पर आधारित है और शांतनु गुप्ता की पुस्तक ‘द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर’ से प्रेरित है. इस साल पांच भारतीय भाषाओं- हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में रिलीज होने वाली यह फिल्म योगी को अनुशासन, त्याग और मजबूत शासन के प्रतीक के रूप में पेश करना चाहती है.

रवींद्र गौतम द्वारा निर्देशित और अनंत जोशी द्वारा अभिनीत यह फिल्म उत्तराखंड के एक गांव के लड़के से भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री बनने तक की उनकी आध्यात्मिक यात्रा और राजनीतिक उत्थान पर जोर देती है. उच्च निर्माण मूल्य और सावधानी पूर्वक चुने गए पात्रों के साथ, फिल्म योगी को अखिल भारतीय अपील वाले नेता के रूप में स्थापित करती है.

यह सिनेमाई उद्यम कोई अलग-थलग रूप से होने वाली चीज नहीं है.  यह सूक्ष्म राजनीतिक संदेश और योगी को एक ऐसे नेता के रूप में चित्रित करने के साथ मेल खाता है जो हिंदुत्व की विचारधारा को प्रशासनिक कठोरता के साथ मिलाता है. शासन शैली और बयानबाजी दोनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी लगातार तुलना यह संकेत देती है कि उन्हें भाजपा की सत्ता संरचना के भीतर एक स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया जा रहा है.

द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर या इमरजेंसी जैसी पिछली राजनीतिक बायोपिक के विपरीत, जो व्यावसायिक रूप से बहुत सफल नहीं रहीं, ‘अजय...’ भविष्य के चुनावों से पहले जनता की भावनाओं को प्रभावित करने के लिए अधिक रणनीतिक रूप से समयबद्ध और सावधानीपूर्वक निर्मित प्रतीत होती है.

यह उत्तर प्रदेश से परे योगी के प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक सोचा-समझा कदम है. राष्ट्रीय मीडिया में बढ़ती दृश्यता, सोची-समझी उपस्थिति और अब एक बायोपिक के साथ, योगी आदित्यनाथ स्पष्ट रूप से भारतीय राजनीति में एक व्यापक भूमिका के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं.

जहां प्रधानमंत्री हैं, वहां राह है

प्रधानमंत्री मोदी ने एक लंबे समय से लंबित संकट, जिसे नौकरशाही का कायापलट माना जा रहा है, को सुलझाने के लिए एक नई योजना बनाई है.  मोदी के नेतृत्व में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) दशकों से सरकार को परेशान करने वाली एक पेचीदा समस्या को सुलझाने में लगा है.

एक नई नीति के तहत सैकड़ों अतिरिक्त तकनीकी कर्मचारियों -इंजीनियरों और विशेषज्ञों- को अब गैर-तकनीकी भूमिकाओं में फिर तैनात किया जा सकता है, जिससे निष्क्रिय प्रतिभाएं उत्पादकता का केंद्र बन जाएंगी. केंद्रीय अधिशेष प्रकोष्ठ को सूचित की गई गैर-तकनीकी रिक्तियों पर अधिशेष तकनीकी कर्मियों की पुनर्नियुक्ति पर विचार किया जा सकता है.

मोदी के निर्णायक हस्तक्षेप ने खेल को बदल दिया है. हालांकि, यह अराजपत्रित तकनीकी कर्मचारियों पर लागू होगा. यह नीति अधिशेष तकनीकी कर्मचारियों को उनकी योग्यता और वरिष्ठता का सम्मान करते हुए गैर-तकनीकी रिक्तियों को भरने की अनुमति देती है. यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कर्मचारी बेकार न रहे, जो मोदी के ‘अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ के दृष्टिकोण के अनुरूप है.

इस कदम से सैकड़ों तकनीकी कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति में तेजी आएगी. वर्षों से, केंद्र सरकार अतिरिक्त कर्मचारियों, खासकर तकनीकी पृष्ठभूमि वाले कर्मचारियों, को फिर से तैनात करने के लिए संघर्ष कर रही है. गैर-तकनीकी अतिरिक्त कर्मचारियों को अपेक्षाकृत तेजी से फिर से तैनात किया जाता है, जबकि तकनीकी रिक्तियों की सीमित उपलब्धता के कारण उनके तकनीकी समकक्षों को महीनों या वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है.  इससे प्रशासनिक चुनौतियां उत्पन्न हुईं और उन्हें पुनर्नियुक्ति के लिए लंबी प्रतीक्षा अवधि का सामना करना पड़ा.

उम्मीद है कि इस कदम से न केवल कार्यबल सुव्यवस्थित होगा, बल्कि निष्क्रिय वेतन व्यय में भी उल्लेखनीय कमी आएगी और प्रशासनिक दक्षता व इष्टतम मानव संसाधन प्रबंधन हो सकेगा. अब कम नियोजित कर्मचारियों को विभिन्न विभागों में सक्रिय सेवा में फिर से शामिल होने का अवसर मिलेगा.

संसद के पास फल-फूल रही स्पा कूटनीति

संसद के रोजमर्रा के कामकाज से बस कुछ ही कदम की दूरी पर, एक अलग ही तरह की गरमाहट महसूस की जा रही है. कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के शानदार जिम और स्पा में, सभी दलों के सांसद स्टीम रूम, हॉट स्टोन मसाज और बॉडी-स्कल्प्टिंग थेरेपीज में पसीना बहा रहे हैं.

जिम में कसरत करती भाजपा की कंगना रनौत से लेकर सैलून में आराम फरमाती तृणमूल की महुआ मोइत्रा और स्पा डिटॉक्स के लिए जाते एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी तक, नियमित रूप से आने वालों की सूची किसी सर्वदलीय गठबंधन जैसी लगती है. क्लब के एक अंदरूनी सूत्र ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘संसद के अंदर शोर ही शोर है लेकिन यहां सब शांति-शांति है.’

स्पा का मेनू लाजवाब है: ऑर्गेनिक बादाम तेल से मालिश, बांस से मालिश, टमी-ट्रिम सेशन और बॉडी पॉलिशिंग थेरेपी - जिनकी कीमत 2,000 से 5,000 रु. के बीच है.  बुद्धिमान और पांचसितारा प्रशिक्षित कर्मचारियों को सख्त आदेश दिए गए हैं कि बाहर किसी का नाम नहीं बताना है, कोई लीक नहीं करना है.

 ‘संसद सत्र के दौरान आने वालों की संख्या तीन गुना बढ़ जाती है.  सांसद अपने जीवनसाथी के साथ आते हैं, खासकर सप्ताहांत में.’ एक स्पा अटेंडेंट कहता है, ‘वे सदन के अंदर भले ही झगड़ते हों, लेकिन यहां वे एक ही भाप में भीगते हैं.’ जिम आम जनता के लिए वर्जित है, सिर्फ सांसदों और उनके परिजनों के लिए है.

लेकिन सैलून-कम-स्पा? खुला है- बशर्ते आपके पास किसी सांसद की सिफारिश हो. क्लब की गवर्निंग काउंसिल में शामिल एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता मानते हैं: ‘जिम सांसदों और उनके परिवारों को एक साथ लाता है.  यह फिटनेस और दोस्ती, दोनों के लिए अच्छा है.’ गवर्निंग काउंसिल में सभी पार्टियों के सदस्य होते हैं. पता चला है कि इस सत्र का असली डिटॉक्स राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत होगा.  

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