ब्लॉग: उद्धव की शिवसेना करेगी ‘इंडिया’ की मेजबानी
By हरीश गुप्ता | Published: August 3, 2023 12:32 PM2023-08-03T12:32:09+5:302023-08-03T12:32:09+5:30
कांग्रेस नेतृत्व इंडिया के घटकों को अपना पूरा समर्थन दे रहा है और चाहता है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) जल्द से जल्द तैयार किया जाए. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीट-बंटवारे के फॉर्मूले पर अभी विचार-विमर्श शुरू नहीं हुआ है.
आधिकारिक तौर पर, महाविकास आघाड़ी (एमवीए) जल्द ही मुंबई में 26-विपक्षी दलों के गठबंधन की मेजबानी करने जा रही है. हालांकि खबरें हैं कि मौसम की अनिश्चितता को देखते हुए इसे सितंबर तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया है. लेकिन व्यावहारिक तौर पर शिवसेना (यूबीटी) जमीनी कार्य करेगी और सम्मेलन की मेजबानी करेगी. अगर पटना के पहले सम्मेलन की मेजबानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की, तो कांग्रेस ने बेंगलुरु में दूसरे शक्ति प्रदर्शन की मेजबानी की. अब आगे बढ़ने की बारी शिवसेना (यूबीटी) की है.
कांग्रेस नेतृत्व इंडिया के घटकों को अपना पूरा समर्थन दे रहा है और चाहता है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) जल्द से जल्द तैयार किया जाए. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीट-बंटवारे के फॉर्मूले पर अभी विचार-विमर्श शुरू नहीं हुआ है. 26 पार्टियों के लिए सीट बंटवारा सबसे मुश्किल काम होगा. दूसरे, भाजपा बिहार, महाराष्ट्र, यूपी, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विपक्षी दलों के नेताओं को लुभाने के लिए जोर-शोर से काम कर रही है.
भाजपा की ‘खुले दरवाजे की नीति’ हाल ही में तेज हो गई है, जिससे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और जद (यू) में बेचैनी पैदा हो गई है. इसी संदर्भ में कांग्रेस चाहती है कि लोकसभा सीट-बंटवारे की बातचीत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों तक टल जाए. इसीलिए, कांग्रेस चाहती है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम को प्राथमिकता के आधार पर तय किया जाए और फिर जमीनी हकीकत और उम्मीदवार की जीत की क्षमता या पार्टी की अपनी ताकत के आधार पर राज्यवार सीट-बंटवारे के फॉर्मूले पर काम किया जाए.
शिवसेना (यूबीटी) के संजय राऊत के हाथ में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से संबंधित एक कठिन काम है, जो अप्रत्याशित कदम उठाने के लिए जाने जाते हैं.
लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में भाग लेने के पवार के हालिया निर्णय, जहां पीएम मोदी मुख्य अतिथि थे, ने विपक्षी खेमे में भ्रम पैदा कर दिया, जिसे टाला जा सकता था. लेकिन पवार निश्चिन्त बने हुए हैं. क्या वह एमवीए के साथ बने रहेंगे? कब तक? कोई नहीं जानता.
चतुर नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) नेता नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में एक और अप्रत्याशित चरित्र हैं. बेंगलुरु सम्मेलन के बाद वह अचानक शांत हो गए हैं. हाल ही में जब पत्रकारों ने उनसे मणिपुर हिंसा और लोकसभा में विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बारे में उनकी राय पूछी तो उनकी टिप्पणियों ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चकित कर दिया.
उनके पास भाजपा को पटखनी देने का बहुत बड़ा मौका था. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और कोई तीखी टिप्पणी नहीं की. उनकी गूढ़ टिप्पणियां यह कहने तक ही सीमित थीं कि मोदी को संसद में बयान देना चाहिए था.
नीतीश के करीबी एक वरिष्ठ नेता ने खुलासा किया कि नीतीश ने भगवा पार्टी का एहसान चुकाने के लिए ऐसा किया. लगभग एक महीने पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार में एक सार्वजनिक रैली में भाग ले रहे थे, जहां उन्होंने लालू प्रसाद, उनके बच्चों और कांग्रेस पर शाब्दिक हमला किया था, लेकिन नीतीश को छोड़ दिया था.
दूसरी बात ये कि पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सार्वजनिक तौर पर या सरकारी कार्यक्रमों में एक साथ नहीं देखा गया है.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि नीतीश नाखुश हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि अध्यक्ष नहीं तो कम से कम गठबंधन का संयोजक तो उन्हें बनाया ही जाएगा. उन्होंने इंडिया के निर्माण के लिए कड़ी मेहनत की थी. गठबंधन के लिए 11 सदस्यीय समन्वय समिति गठित करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं.
अगर ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर संयोजक की भूमिका कमजोर होगी. नीतीश इस बात से भी चिंतित हैं कि भाजपा जद (यू), कांग्रेस और राजद विधायकों को लुभाने के लिए हर तरह की कोशिश कर रही है.
मुसीबत में भूपेश बघेल!
महाराष्ट्र में अजित पवार को जिताकर एनडीए सरकार स्थापित करने और 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी 23 लोकसभा सीटें बरकरार रखने की उम्मीद के बाद, भाजपा अब छत्तीसगढ़ पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा की बड़ी चिंता यह है कि उसकी अपनी राज्य इकाई खस्ताहाल है और भूपेश बघेल मजबूत दिख रहे हैं.
भगवा पार्टी कुछ महीने पहले सामने आए शराब घोटाले व अन्य घोटालों पर भरोसा कर रही है. घोटालों के कारण आईएएस, व्यापारियों, राजनेताओं और बघेल के करीबी बिचौलियों सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई. ईडी ने इसे एक बड़ा घोटाला बताया है जिसमें कॉकस से जुड़े एक कार्टेल द्वारा छत्तीसगढ़ में परिवहन किए गए प्रत्येक टन कोयले के लिए 25 रु. की अवैध लेवी वसूली जा रही थी.
ऐसी खबरें हैं कि एजेंसी एक आरोपी को सरकारी गवाह बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है और जल्द ही इसमें सफल हो सकती है. लेकिन बड़ी लड़ाई बघेल सरकार और ईडी के बीच सुप्रीम कोर्ट में हो रही है, जहां मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे जैसे तमाम शीर्ष वकील जेल में बंद आरोपियों की ओर से पेश हो रहे हैं और जमानत की मांग कर रहे हैं.
प्रियंका-शर्मिला की गुफ्तगू
अगर राहुल गांधी इंडिया नाम के 26 दलों के गठबंधन को मजबूत करने में व्यस्त हैं, तो उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी राजनीतिक रूप से उनकी मदद करने में व्यस्त हैं. प्रियंका ने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी प्रमुख वाईएस शर्मिला रेड्डी से बात की, जो 2023 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं और बीआरएस नेता व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव का मुकाबला करने के लिए उन्होंने पूरे राज्य में पदयात्रा की थी.
कांग्रेस तेलंगाना में अपने पैर जमाने के लिए बेताब है और शर्मिला के साथ गठबंधन से बीआरएस और भाजपा दोनों का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है. आखिरकार, उनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी को भी कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर बिठाया था. उनकी मृत्यु के बाद, बेटा अलग हो गया और उसने अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना ली.
प्रियंका को शर्मिला से बात करने का जिम्मा दिया गया. राहुल गांधी ने अपने घुटने के दर्द, जो भारत-जोड़ो-यात्रा के दौरान उभरा था, के आयुर्वेदिक उपचार के लिए 10 दिनों का ब्रेक लिया था.
बताया जाता है कि उन्होंने डॉक्टरों को बताया था कि एक समय उनके घुटने का दर्द इतना असहनीय हो गया था कि यह दुविधा पैदा हो गई थी कि उनकी 4000 किलोमीटर की भारत-जोड़ो-यात्रा जारी रखी जाए या नहीं, जो 75 जिलों और 14 राज्यों में 136 दिनों में पूरी हुई थी.