वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारतीय सेना से गुलामी के प्रतीकों को हटाना उचित कदम
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 15, 2022 14:48 IST2022-12-15T14:46:43+5:302022-12-15T14:48:05+5:30
जातियों के नाम पर सेना की टुकड़ियों के भी नाम तुरंत बदले जाने चाहिए. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से घबराए अंग्रेज शासकों ने भारतीय लोगों को जातियों में बांटने की तरकीबें शुरू की थीं, उनमें से यह भी एक बड़ी तरकीब थी.

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारतीय सेना से गुलामी के प्रतीकों को हटाना उचित कदम
भारतीय फौज से गुलामी के प्रतीकों को हटाने के अभियान का तहे-दिल से स्वागत किया जाना चाहिए. 200 साल का अंग्रेजी राज तो 1947 में खत्म हो गया लेकिन उसका सांस्कृतिक, भाषिक और शैक्षणिक राज आज भी भारत में काफी हद तक बरकरार है. फिलहाल हमारी फौज में पराधीनता के एक प्रतीक को उस समय हटाया गया, जब विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को समुद्र में छोड़ा गया. उस जहाज पर लगे हुए सेंट जार्ज के प्रतीक को हटाकर उसकी जगह छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतीक लगाया गया.
यह मामला सिर्फ प्रतीकों तक ही सीमित नहीं है. जातियों के नाम पर सेना की टुकड़ियों के भी नाम तुरंत बदले जाने चाहिए. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से घबराए अंग्रेज शासकों ने भारतीय लोगों को जातियों में बांटने की तरकीबें शुरू की थीं, उनमें से यह भी एक बड़ी तरकीब थी. उन्होंने शहरों और गांवों के नाम भी अंग्रेज अफसरों के नाम पर रख दिए थे. जगह-जगह उनके पुतले खड़े कर दिए थे. मुझे याद है कि अब से लगभग 50 साल पहले अहमदाबाद में लगा किसी अंग्रेज का पुतला मैंने तोड़ा था, वह भी राजनारायण (इंदिरा गांधी को हरानेवाले) के कंधे पर चढ़कर!
कांग्रेस सरकारों ने सड़कों के कुछ नाम तो बदले लेकिन हमारी फौज में अभी भी अंग्रेजों का ढर्रा चल रहा है. कांग्रेस सरकार के रक्षा मंत्रालय की हिंदी समिति के सदस्य के नाते मैंने अंग्रेजी में छपी फौज की सैकड़ों नियमावलियों को हिंदी में बदलवाया ताकि साधारण फौजी भी उन्हें समझ सकें. इस समय फौज में डेढ़ सौ ऐसे नियम, नाम, इनाम, परंपराएं, रीति-रिवाज और तौर-तरीके हैं, जिनका भारतीयकरण होना जरूरी है.
‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह में ‘एबाइड विथ मी’ गाने की जगह लता मंगेशकर के ‘ऐ, मेरे वतन के लोगों’ को शुरू करना तो अच्छा है लेकिन जहां तक फौज के भारतीयकरण का प्रश्न है, उसे अंग्रेजों के रीति-रिवाज से मुक्त करवाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है अपनी फौज को आत्मनिर्भर बनाना. आज भी भारत को अपने अत्यंत महत्वपूर्ण शस्त्रास्त्रों को विदेशों से आयात करना पड़ता है. उन पर अरबों रुपए खर्च करने होते हैं.
यदि आजादी के शताब्दी वर्ष तक हम पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर हो जाएं और अमेरिका तथा यूरोपीय राष्ट्रों की तरह शस्त्रास्त्रों के निर्यातक बन जाएं तो भारत को महाशक्ति बनने से कौन रोक सकता है?