ललित गर्ग का ब्लॉग: भारत में लैंगिक असमानता की खाई का बढ़ना चिंताजनक
By ललित गर्ग | Updated: June 25, 2024 10:11 IST2024-06-25T10:10:40+5:302024-06-25T10:11:46+5:30

प्रतीकात्मक तस्वीर
विश्व आर्थिक मंच द्वारा हाल ही में प्रस्तुत किए गए लैंगिक अंतर के आंकड़ों ने एक ज्वलंत प्रश्न खड़ा किया है कि शिक्षा, आय, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में आधी दुनिया को उसका हक क्यों नहीं मिल पा रहा है? निस्संदेह, हमारे सत्ताधीशों को सोचना चाहिए कि लैंगिक अंतर सूचकांक में भारत 146 देशों में 129वें स्थान पर क्यों है?
लगातार महिलाओं की दोयम दर्जा की स्थिति का बना रहना नीति-नियंताओं के लिए आत्ममंथन का मौका है. निश्चय ही यह स्थिति भारत की तरक्की के दावों से मेल नहीं खाती.
यह उम्मीद जगाने वाला तथ्य है कि पिछले वर्ष जनप्रतिनिधि संस्थाओं में महिलाओं की एक तिहाई हिस्सेदारी को लेकर विधेयक पारित हो चुका है. इसके बावजूद हाल में सामने आए आंकड़े परेशान करने वाले हैं और तरक्की के दावों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं. यह विचारणीय प्रश्न है कि सरकार द्वारा महिलाओं के कल्याण के लिए अनेक नीतियां बनाने और कायदे कानूनों में बदलाव के बावजूद लैंगिक असमानता की खाई गहरी क्यों होती जा रही है. हालिया लोकसभा चुनाव में सीमित संख्या में महिलाओं के संसद में पहुंचने ने भी कई सवालों को जन्म दिया है.
लैंगिक अंतर सूचकांक में पिछले साल भारत 127वें स्थान पर था. सूचकांक में भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश को 99वें, चीन को 106वें, नेपाल को 117वें, श्रीलंका को 122वें, भूटान को 124वें और पाकिस्तान को 145वें स्थान पर रखा गया है. आइसलैंड (93.5 फीसदी) फिर से पहले स्थान पर है और डेढ़ दशक से सूचकांक में सबसे आगे है. शीर्ष 10 में शेष नौ अर्थव्यवस्थाओं में से आठ ने अपने अंतर का 80 फीसदी से अधिक हिस्सा पाट लिया है.
निश्चित तौर पर किसी भी समाज में पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में लंबा समय लगता है, लेकिन इस दिशा में सत्ताधीशों की तरफ से ईमानदार पहल होनी चाहिए. इसमें दो राय नहीं कि पूरी दुनिया में सरकारों द्वारा लैंगिक समानता के लिए नीतियां बनाने के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं निकले हैं, जिसकी एक वजह समाज में पुरुष प्रधानता की सोच भी है.
इसके चलते यह आभास होता है कि आधी दुनिया के कल्याण के लिए बनी योजनाएं महज घोषणाओं तथा फाइलों तक सिमट कर रह जाती हैं. महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जरूरी है कि अधिक महिलाओं को रोजगार दिलाने के लिए सरकार जरूरी कदम उठाए. अभी हालत यह है कि सरकार के खुद के कर्मचारियों में केवल 11 प्रतिशत महिलाएं हैं.
भारत में महिला रोजगार को लेकर चिंताजनक स्थितियां हैं. सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) नाम के थिंक टैंक ने बताया है कि भारत में केवल 7 प्रतिशत शहरी महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पास रोजगार है या वे उसकी तलाश कर रही हैं.