गिरीश्वर मिश्र ब्लॉगः गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कोई दूसरा विकल्प नहीं

By गिरीश्वर मिश्र | Published: September 5, 2022 03:38 PM2022-09-05T15:38:44+5:302022-09-05T15:38:48+5:30

भारत में शिक्षा पाने का अधिकार सरकार ने सबको दे दिया है पर कौन, कितनी और कैसी शिक्षा पाता है, यह उसके भाग्य और औकात पर निर्भर करता है क्योंकि सबको समान शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

Teacher's Day There is no other alternative to quality education | गिरीश्वर मिश्र ब्लॉगः गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कोई दूसरा विकल्प नहीं

गिरीश्वर मिश्र ब्लॉगः गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कोई दूसरा विकल्प नहीं

शिक्षक दिवस हमें यशस्वी शिक्षाविद् और भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का स्मरण दिलाते हुए शिक्षा में उत्कृष्टता के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित करता है। आज भारत सशक्त और आत्मनिर्भर देश होने के अपने संकल्प पर आगे बढ़ रहा है। इस लक्ष्य में सारे देश की सुख और समृद्धि की कामना निहित है जिसे मूर्त आकार देने में शिक्षा की केंद्रीय भूमिका से शायद ही कोई असहमत हो। दरअसल ज्ञान पर टिकी इक्कीसवीं सदी की तेज-रफ्तार सामाजिक और आर्थिक दुनिया में किसी भी समाज की सामर्थ्य उसकी शिक्षा-व्यवस्था की गुणवत्ता पर ही निर्भर करती है। ताजा रपट के अनुसार वैश्विक मानव विकास के सूचकांक में नार्वे सबसे ऊपर है और वह पूरे विश्व में शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश है। 

भारत 189 देशों की सूची में 131 रैंक पर है। इसके ब्यौरे में जाने पर उन देशों की शिक्षा में शिक्षक की तैयारी की खास भूमिका स्पष्ट रूप से दिखती है। सभी विकसित देश शिक्षक-प्रशिक्षण को गंभीरता से लेते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि शैशवावस्था से ही अर्थात् जब से बच्चा प्ले स्कूल जाना शुरू करता है, सीखने का संरचित अनुभव मिले। इसके अंतर्गत बच्चे को सृजनात्मकता के साथ सीखने का भरोसेमंद और प्रीतिकर अनुभव देने की भरपूर कोशिश होती है। इसके अंतर्गत माता-पिता की समझ और ख्वाहिश को थोपने की जगह बच्चा बहुत हद तक एक स्वायत्त ढंग से सीखने वाला स्वतंत्र व्यक्ति होता है। इनकी परिपाटी में श्रम की सहज गरिमा हर व्यवसाय में झलकती है और सफाई कर्मी भी शान से किसी और व्यक्ति से (बिना पद के भेद से प्रभावित हुए) संवाद कर पाता है।

भारत में शिक्षा पाने का अधिकार सरकार ने सबको दे दिया है पर कौन, कितनी और कैसी शिक्षा पाता है, यह उसके भाग्य और औकात पर निर्भर करता है क्योंकि सबको समान शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। यहां निजी स्कूल हैं (यद्यपि उनको पब्लिक स्कूल कहा जाता है!) जिनकी एक बड़ी रेंज है जिसमें छोटे साधारण स्कूल से ले कर बड़ी शान-शौकत वाले आलीशान स्कूल हैं जिनमें हजारों की फीस प्रतिमास है। दूसरी ओर सरकारी स्कूलों का मेला लगा है जहां अध्यापकों की उपस्थिति, विद्यालय की सुविधाएं और पाठ्यचर्या अपेक्षित मानक स्तर से बहुत नीचे हैं। यदि औसत निकाला जाए तो निराशाजनक स्थिति ही हाथ लगती है। इसका आधिकारिक प्रमाण सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक उपलब्धि के सर्वेक्षण (नेशनल अचीवमेंट सर्वे) की वर्ष 2021 की रपट है। इसमें भाषा, गणित, पर्यावरण, विज्ञान, समाज विज्ञान और अंग्रेजी में तीसरे, छठे, पांचवें, आठवें और दसवें दर्जे के छात्रों की शिक्षण उपलब्धि का हर तरह के विद्यालयों में मूल्यांकन किया गया।

 कुल 3,40,000 बच्चों पर 720 जिलों में हुए सर्वेक्षण से पता चला कि गणित में तीसरे दर्जे में 57 प्रतिशत उपलब्धि थी जो दर्जा पांच में 44 हो गई और आठवें में 36 व दसवें में 32 प्रतिशत पर पहुंच गई। भाषा में तीसरे दर्जे में 62 प्रतिशत से पांचवें दर्जे में 52 प्रतिशत हो गई। विज्ञान में आठवें में 39 प्रतिशत थी जो दसवें में 35 प्रतिशत हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की उपलब्धि शहर के बच्चों से नीचे थी। लड़कियों की शैक्षिक उपलब्धि लड़कों की तुलना में अच्छी थी। कुल मिलाकर ये परिणाम बताते हैं कि कक्षा तीन से कक्षा दस के बीच शैक्षिक उपलब्धि में गिरावट बढ़ती जा रही है।

स्मरणीय है कि महात्मा गांधी ने शिक्षा के अंतर्गत हाथ, हृदय और मस्तिष्क तीनों के उपयोग पर जोर दिया था और शिक्षा को समाजोपयोगी बनाए रखने की बात की थी़ आज समावेशन की बात हो रही है जो प्रायः नामांकन तक सीमित है। सघन और समग्र चिंतन के साथ इसे वंचित, आदिवासी, स्त्री, दिव्यांग उपेक्षित, पूर्व बाल्यावस्था, विशिष्ट शिक्षा के लिए तत्पर आदि सभी की दृष्टियों से देखना जरूरी होगा। संतोष की बात है कि नई शिक्षा नीति में इन पक्षों पर ध्यान दिया जा रहा है। देश के स्वर्णिम भविष्य की संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए इस दिशा में निर्णायक प्रयास करने होंगे।

Web Title: Teacher's Day There is no other alternative to quality education

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