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जांच एजेंसियों को विवाद से परे परिणामोन्मुखी बनाएं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 2, 2024 05:28 IST

Supreme Court: बीस लाख रुपए की रिश्वत को लेते समय रंगे हाथों पकड़े जाने के मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामले की जांच लगभग पूरी होने तथा आरोप-पत्र दाखिल करने से पहले मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया.

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ठळक मुद्देमामले में केंद्र सरकार से कार्रवाई की अनुमति भी मिली थी.केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने के लिए सर्वोच्च अदालत पहुंचा. साबित नहीं हुआ कि राज्य पुलिस की गिरफ्तारी अवैध थी.

Supreme Court: उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु पुलिस की तरफ से कथित भ्रष्टाचार के लिए एक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अधिकारी की गिरफ्तारी से संबंधित मामले की जांच के विवाद पर अनेक सवाल खड़े किए, जो अक्सर जांच एजेंसियों के बीच सामने आते हैं. दरअसल यदि राज्य पुलिस किसी केंद्रीय कर्मचारी को गिरफ्तार करती है तो उस स्थिति में केंद्र और राज्य की जांच एजेंसियों के बीच समन्वय तो दूर, आपसी खींचतान सामने आती है. यहां तक कि राज्य और केंद्र सरकारें आमने-सामने आ जाती हैं. पश्चिम बंगाल हो या फिर तमिलनाडु या दिल्ली का मामला, केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के बाद राज्य खौल उठते हैं. तमिलनाडु के मामले में राज्य पुलिस ने ईडी के एक अधिकारी को रिश्वत लेते हुए पकड़ा था. उस मामले में केंद्र सरकार से कार्रवाई की अनुमति भी मिली थी.

किंतु वह आरोपी अधिकारी जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने के लिए सर्वोच्च अदालत पहुंचा. ऐसे में यह भी साबित नहीं हुआ कि राज्य पुलिस की गिरफ्तारी अवैध थी. मगर बीस लाख रुपए की रिश्वत को लेते समय रंगे हाथों पकड़े जाने के मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामले की जांच लगभग पूरी होने तथा आरोप-पत्र दाखिल करने से पहले मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया, जिसकी सुनवाई में अदालत ने केंद्र और राज्य की जांच एजेंसियों के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया.

पिछले काफी दिनों से राजनीति के कथित प्रभाव में जांच के मामलों पर देखने का नजरिया बदला है. हालांकि इस प्रकार के आरोप सभी सरकारों के दौर में लगते रहे हैं. यहां तक कि ईडी की कार्यशैली पर भी सवाल उठ चुके हैं. अदालतों ने जांच एजेंसियों की सीमा को लेकर भी कई बार स्पष्ट टिप्पणियां की हैं.

इस स्थिति में बार-बार अदालत के हस्तक्षेप से बेहतर यह है कि केंद्र और राज्य जांच एजेंसियों के बारे में सीमा और संतुलन को लेकर कोई नियमावली बना लें. जिस प्रकार के अपराध और घटनाएं सामने आ रही हैं, उनसे दोनों एजेंसियों के बीच समन्वय समय की आवश्यकता है. इसलिए किसी भी जांच एजेंसी के दायित्वों और कार्यशैली को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच भरोसा मजबूत होना भी जरूरी है.

यह मामला प्रतिष्ठा के विषय से कहीं अधिक सही जांच और उसके परिणामों से जुड़ा हुआ है. यदि केंद्र और राज्य पक्षपात के आरोपों में ही उलझे रहेंगे तो न्याय मिलना मुश्किल ही होगा. जांच एजेंसियों का गठन परिस्थितियों को देखते हुए पिछली सरकारों ने किया है. उस दौरान कोई सवाल नहीं उठे थे, जबकि उनकी सीमाएं सभी को ज्ञात थीं.

इसलिए सरकारों के बदलने या हितों पर आघात पहुंचने की स्थिति में नजरिया बदलना अनुचित है. जिस जांच एजेंसी को जो अधिकार दिए गए हैं, उसे उसकी सीमा में काम करने का निर्बाध अवसर दिया जाना चाहिए. यदि उसमें किसी तरह की कमी-कमजोरी रही तो वह अदालत के सामने आएगी ही, जिसे फैसले की घड़ी में सबको मानना ही होगा. इसलिए अनावश्यक विवादों से बेहतर विवादों के परे रहकर काम करने की जरूरत है. तभी जांच परिणामोन्मुखी हो सकेगी.

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