पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉगः आफत बनते आवारा मवेशी 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 3, 2019 07:37 PM2019-01-03T19:37:48+5:302019-01-03T19:37:48+5:30

उरई, झांसी आदि जिलों में कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास अपने जल संसाधन हैं लेकिन वे अन्ना पशुओं के कारण बुवाई नहीं कर पाए. जब फसल कुछ हरी होती है तो अचानक ही हजारों अन्ना गायों का रेवड़ आता है व फसल चट कर जाता है. यदि गाय को मारो तो धर्म-रक्षक खड़े हो जाते हैं और खदेड़ों तो बगल के खेत वाला बंदूक निकाल लेता है. 

Stray cattle is the problem of uttar pradesh people | पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉगः आफत बनते आवारा मवेशी 

पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉगः आफत बनते आवारा मवेशी 

पंकज चतुव्रेदी: वरिष्ठ पत्रकार   

इलाहाबाद, प्रतापगढ़ से लेकर जौनपुर तक के गांवों में देर रात लोगों के टार्च चमकते दिखते हैं. इनकी असल चिंता वे लावारिस गोवंश होते हैं जो झुंड में खेतों में आते हैं व कुछ घंटे में किसान की महीनों की मेहनत उजाड़ देते हैं. जब से बूढ़े पशुओं को बेचने को लेकर उग्र राजनीति हो रही है, ऐसी गायों का आतंक राजस्थान, हरियाणा, मप्र, उप्र में इन दिनों चरम पर है. 

कुछ गौशालाएं तो हैं लेकिन उनकी संख्या आवारा पशुओं की तुलना में नगण्य हैं, और जो हैं भी तो भयानक अव्यवस्था की शिकार, जिसे गायों की कब्रगाह कहा जा सकता है. ‘अन्ना प्रथा’ यानी दूध ना देने वाले मवेशी को आवारा छोड़ देने के चलते यहां खेत व इंसान दोनों पर संकट है. 

उरई, झांसी आदि जिलों में कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास अपने जल संसाधन हैं लेकिन वे अन्ना पशुओं के कारण बुवाई नहीं कर पाए. जब फसल कुछ हरी होती है तो अचानक ही हजारों अन्ना गायों का रेवड़ आता है व फसल चट कर जाता है. यदि गाय को मारो तो धर्म-रक्षक खड़े हो जाते हैं और खदेड़ों तो बगल के खेत वाला बंदूक निकाल लेता है. 

आज जरूरत है कि आवारा पशुओं के इस्तेमाल, उनके कमजोर होने पर गौशाला में रखने और मर जाने पर उनकी खाल, सींग आदि के पारंपरिक तरीके से इस्तेमाल की स्पष्ट नीति बने. आज जिंदा जानवर से ज्यादा खौफ मृत गौवंश का है, भले ही वह अपनी मौत मरा हो. तभी तो बड़ी संख्या में गौ पालक गाय पालने से मुंह मोड़ रहे हैं.

देश व समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पशु-धन को सहेजने के प्रति दूरंदेशी नीति व कार्य योजना आज समय की मांग है. यह जान लें कि एक करोड़ से ज्यादा संख्या का पशु धन तैयार करने में कई साल व कई अरब की रकम लगेगी, लेकिन उनके चारा-पानी की व्यवस्था के लिए कुछ करोड़ ही काफी होंगे. हो सकता है कि इस पर भी कुछ कागजी घोड़े दौड़ें लेकिन जब तक ऐसी योजनाओं की क्रियान्वयन एजेंसी में संवेदनशील लोग नहीं होंगे, मवेशी का चारा इंसान के उदरस्थ ही होगा.

Web Title: Stray cattle is the problem of uttar pradesh people

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