शोभना जैन का ब्लॉग: आरसीईपी से हटना चुनौतियों भरा सही कदम
By शोभना जैन | Published: November 11, 2019 05:39 AM2019-11-11T05:39:52+5:302019-11-11T05:39:52+5:30
भारत के इस फैसले के पीछे चीन का गैरव्यापारिक रवैया भी एक वजह रहा. उधर अन्य आसियान देशों के साथ, जिनसे भारत ने मुक्त व्यापार समझौते किए हैं, व्यापारिक अनुभव अच्छे नहीं रहे. अधिकतर आरसीईपी देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा है.
आरसीईपी यानी क्षेत्नीय व्यापक आर्थिक साझीदारी के प्रस्तावित समझौते से भारत के हटने के फैसले का हम लेखाजोखा लें तो पाएंगे कि यह चुनौतियों भरा फैसला जरूर है, लेकिन इस से हटना आर्थिक दृष्टि से हमारे लिए सही कदम है.
दरअसल हाल ही में संपन्न आसियान शिखर बैठक के दौरान चीन की ओर से आरसीईपी समझौते को पूरा करने को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा था.
चीन के लिए यह एक अवसर था जिस के जरिए वह अपने ‘सस्ते उत्पादों’ के लिए नए बाजार तलाशने के लिए बेचैन था खास तौर पर उसके अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध के प्रभाव के बीच व्यापार में संतुलन बैठाने में यह मददगार साबित होता. साथ ही वह पश्चिमी देशों को क्षेत्न की आर्थिक ताकत का भी ‘असर’ दिखा पाता. उधर भारत अपने उत्पादों के लिए बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था.
भारत मुख्य तौर पर अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिए कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाए हुए था. देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका है कि भारत यदि इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी.
भारत के लिए यह स्थिति निश्चय ही नुकसानदेह थी. चीन के साथ उस का व्यापार घाटा 53 अरब डॉलर की भारी भरकम रकम तक पहुंच चुका है और भारत की तमाम चिंताओं के बावजूद चीन ने इस घाटे को कम करने के लिए संतोषजनक कदम नहीं उठाए हैं.
भारत के इस फैसले के पीछे चीन का गैरव्यापारिक रवैया भी एक वजह रहा. उधर अन्य आसियान देशों के साथ, जिनसे भारत ने मुक्त व्यापार समझौते किए हैं, व्यापारिक अनुभव अच्छे नहीं रहे. अधिकतर आरसीईपी देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा है.
इन देशों के साथ भारत के कुल निर्यात में 15 प्रतिशत ही हिस्सेदारी है जबकि कुल आयात में इन देशों की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत की है. ऐसे में समझौते के मुताबिक आयात टैक्स घटता है तो भारत का व्यापार घाटा बढ़ेगा. कई देशों ने अभी भी भारत के लिए बाजार सही अनुपात में नहीं खोला है.
बहरहाल भारत इस समझौते से अपने राष्ट्रीय हितों को सवरेपरि रखते हुए फिलहाल हट गया है. एक विशेषज्ञ का कहना है कि आरसीईपी समझौता अपने वास्तविक लक्ष्य तक शायद ही पहुंच पाएगा, इस समझौते के परिणाम निष्पक्ष या संतुलित नहीं होने की आशंका ज्यादा है. इन तमाम आशंकाओं के बीच ये देश नई स्थिति में क्या ईमानदारी से भारत के सरोकारों के समाधान की देशा में प्रयास करेंगे, नजर अब इस बात पर भी रहेगी.