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शशिधर खान का ब्लॉगः हिंदू अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल

By शशिधर खान | Updated: May 23, 2022 10:25 IST

वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का फोकस खासकर हिंदू अल्पसंख्यकों को यह दर्जा देने के मामले में ठोस निर्णय टालने/डंप रखने के लिए बार-बार रवैया बदलने पर था।

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कम हिंदू आबादी वाले राज्यों में इस समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मामले में केंद्र की भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के टालमटोल रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश की सुप्रीम कोर्ट पीठ को आखिरकार कहना पड़ा है कि हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की पहचान करने से जुड़े मामले में केंद्र का अलग-अलग रुख अपनाना न्यायोचित नहीं है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का फोकस खासकर हिंदू अल्पसंख्यकों को यह दर्जा देने के मामले में ठोस निर्णय टालने/डंप रखने के लिए बार-बार रवैया बदलने पर था। सुप्रीम कोर्ट जजों ने नाराजगी उसी से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान व्यक्त की, जिसमें उन राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है, जहां अन्य समुदायों की तुलना में हिंदुओं की आबादी कम हो गई है। यह याचिका वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की हुई है, जिस पर केंद्र सरकार पांच साल से सुप्रीम कोर्ट में अपना रुख स्पष्ट नहीं कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने केंद्र सरकार को पिछले दिनों उस समय फटकार लगाई, जब सरकार अपने पहले के हलफनामे से मुकर गई और टालने का नया हथकंडा अपनाया. केंद्र की ओर से शीर्ष कोर्ट में पेश साॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 10 मई को कहा कि किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा देने की शक्ति सिर्फ केंद्र के पास है और राज्यों से विचार-विमर्श के लिए तीन महीने का समय मांगा। जबकि इसके पहले 25 मार्च को दायर हलफनामे में केंद्र ने पल्ला झाड़ने के लिए कहा कि राज्यों के पास भी यह शक्ति है।

ताजे हलफनामे में पहले की दलील से मुकरने पर सुप्रीम कोर्ट जजों ने अप्रसन्नता व्यक्त की. सुप्रीम कोर्ट पीठ ने सरकार का और समय मांगने का आग्रह स्वीकार करके सुनवाई की अगली तारीख तो 30 अगस्त तय कर दी, लेकिन साथ में यह भी निर्देश दिया कि उस सुनवाई के तीन दिन पहले सारे विचार-विमर्श के नतीजे की स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट, 1992 के अंतर्गत अल्पसंख्यक का दर्जा देने की अधिसूचना जारी करने की केंद्र की शक्ति को चुनौती दी है। उसी पर गत हफ्ते सुनवाई थी।

वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी पूर्व याचिका में कहा है कि 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू व कश्मीर और पूर्वोत्तर समेत कई राज्यों तथा केंद्र शासित क्षेत्रों में हिंदुओं की आबादी कम हो गई है तथा वे अल्पसंख्यक हो गए हैं। इस आधार पर इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की अर्जी उसी समय से झूल रही है, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठजोड़ का पहला शासनकाल था।

बकौल अश्विनी उपाध्याय, 2011 की जनगणना के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में पेश राज्यवार हिंदुओं की आबादी कम होने का प्रतिशत इस प्रकार है, जो अल्पसंख्यक अधिकारों से वंचित हैं - लक्षद्वीप (2.5%), मिजोरम (2.75%), नगालैंड (8-75%), जम्मू व कश्मीर (28.44%), मेघालय (11-53%), पंजाब(38.40%), मणिपुर (31.39%) और अरुणाचल प्रदेश (29%)।

टॅग्स :सुप्रीम कोर्टMinority Welfare and Development Departmentनागालैंडजम्मू कश्मीरमेघालय
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