शरद जोशी की कहानीः पहली तारीख और पूनम का चांद

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: October 20, 2018 06:25 IST2018-10-20T06:25:52+5:302018-10-20T06:25:52+5:30

कवि फिर घूमने निकला और अपने मित्र क्लर्क के घर गया और उससे बोला, वह चटक चांदनी देख रहे हो, क्या तुम्हारी इच्छा इसमें सैर करने की नहीं होती?’’

Sharad Joshi story pahli tarikh aur poonam ka chand | शरद जोशी की कहानीः पहली तारीख और पूनम का चांद

सांकेतिक तस्वीर

-शरद जोशी
एक कवि थे। सोलह आने कवि। सिवाय कवि के कुछ भी नहीं। ऐसे कवि, जिनकी आंखें सितारे देख नाचें, जो चांद देखकर किसी अदेखी प्रेयसी की कल्पना करने लग जाएं, नदी की लहरें देख जिनका मन डूबने लगे, सावनी घटाएं देख जो अज्ञेय कारणों से रुआंसे हो जाएं। इनका मित्र था एक क्लर्क। सिवाय क्लर्क के कुछ भी नहीं, जो दफ्तर की टेबल, राहबाट, घर और बिस्तर तक भी क्लर्क बनकर ही रहता था।

एक पूनम वाली रात की बात है। स्नो लगाई सुंदरी की तरह लाजवाब चांद आसमान में टिका हुआ था। कवि का मन कथकली करने लगा। वह क्लर्क के घर गया। दरवाजा खटखटाकर उसे बाहर निकाला, ‘अरे बंधु, घर में घुसकर क्या बैठे हो, जरा बाहर आओ! देखो, क्या ही प्यारा चांद है! ऐसी स्नेहिल पूनम में घर में घुसकर रहना पाप है।’

क्लर्क ने चश्मा ठीक करते हुए चांद की ओर देखा। बोला, ‘ठीक है, पर भाई, इस आनंद में तुम्हारे साथ मैं बंटवारा नहीं कर सकूंगा। तुम जाओ, जहां जी आवे, घूमो। फिर दांत निकालकर बोला, ‘राम ने चाहा तो तुम्हें कोई कोमल साथी मिलेगा। मैं तो मजबूर हूं।’

कवि अर्धनाराज और अर्धप्रसन्न अवस्था में होंठ पर कविता नचाते, छड़ी हिलाते आगे बढ़ गए। दिन बीत गए, रातें बीत गईं। काफी दिनों बाद फिर पूनम आई। चांद नहा-धोकर साफ कपड़े पहन नीले आसमान में खड़ा होकर फिर से चांदी के इशारे करने लगा। कवि का अंधियारी रात से चोट खाया हृदय फिर से चेतन हुआ और मणिपुरी ठुमके लेने लगा।

कवि फिर घूमने निकला और अपने मित्र क्लर्क के घर गया और उससे बोला, वह चटक चांदनी देख रहे हो, क्या तुम्हारी इच्छा इसमें सैर करने की नहीं होती?’’

कवि के इस भावुक आग्रह का उत्तर क्लर्क ने फिर उदास अस्वीकृति से दिया। वह बोला, ‘भाई, तुम जाओ। मुङो कुछ फाइलें पूरी करनी हैं। अगर घूमता रहा तो यह चांदनी साहब की मेज पर बड़ी भारी पड़ेगी। तुम जाओ, घूमो।’

कवि फिर आश्चर्य में डूब गया और अपने चमकीले रास्ते पर रवाना हो गया वैसे ही गुनगुनाता, कविता चूसता-चबाता।

कुछ दिन और बीते। एक दिन कवि अपने घर में बैठा था। बाहर के नीम के पास चांद अपनी अपेक्षाकृत अधिक विकसित अवस्था में खड़ा था। उसकी एक किरण कवि के तकिए तक आ भी रही थी। कवि इससे बेखबर हो कुछ लिख डालने में उलझा हुआ था। छंदों की सृष्टि कर रहा था। एकाएक क्लर्क आया। बोला, ‘क्या बंधु, घर में घुसे हुए हो! बाहर पूरा चांद किरणों का बोनस बांट रहा है। तुम अंदर हो, यह क्या घर घुसपना! बाहर चलो घूमें।’ कवि ने चांद को देखा, क्लर्क को देखा और कहा, ‘आज पूरा चांद नहीं है, फिर भी मैं तुम्हारा प्रस्ताव मानता हूं। पर ओ मेरे प्यारे क्लर्कराज, आज तुम्हें यह चांद का नशा कैसे चढ़ा? आज की रात कैसे पूनम हो गई? क्या तुम क्लर्क नहीं रह, कवि हो गए?’

क्लर्क ने कहा, ‘आज पहली तारीख है। पहली तारीख की रात पूनम की रात होती है। उस दिन हर क्लर्क कवि हो जाता है। टाइपिस्टें खिल जाती हैं। आज का चांद पहली तारीख का चांद है, अत: सबसे प्यारा चांद है।’    

(रचनाकाल : 1950 का दशक)

Web Title: Sharad Joshi story pahli tarikh aur poonam ka chand

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