SC verdict on electoral bonds: पॉलिटिकल फंडिंग साफ-सुथरी हो, इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था को क्यों लाया गया था, जानिए
By अश्विनी महाजन | Published: February 20, 2024 11:22 AM2024-02-20T11:22:18+5:302024-02-20T11:23:14+5:30
SC verdict on electoral bonds: काले धन की वजह से यह चलता रहा कि पैसा देने वाले राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों से बेजा फायदा उठाते रहे.
SC verdict on electoral bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड पर जो सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया है, वह एक कानूनी प्रक्रिया के तहत है और उस पर कोई विशेष टिप्पणी करने का कोई अर्थ नहीं है. पर इस संबंध में जो पहली चीज विचार करने लायक है, वह यह है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था को क्यों लाया गया था. राजनीतिक दलों को चंदा संग्रह करने का अधिकार है और जमा की गई धनराशि पर उन्हें कोई आयकर भी नहीं देना होता है. उन्हें जो पैसा चंदे या दान के रूप में मिलता है, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे उसकी जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया कराएंगे. पहले जो धन बैंक चेक या ड्राफ्ट के माध्यम से हासिल होता था, उसकी जानकारी तो मिल जाती थी, लेकिन नगदी चंदे के बारे में पारदर्शिता का पूरा अभाव था. यह तो स्थापित तथ्य है कि हमारे देश की राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में काले धन की मौजूदगी जमाने से रही है और इस समस्या के समाधान पर लंबे समय से चर्चा भी होती रही है. काले धन की वजह से यह चलता रहा कि पैसा देने वाले राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों से बेजा फायदा उठाते रहे.
यह स्थिति हमारी राजनीतिक प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती थी. इस पृष्ठभूमि में इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था लाकर यह प्रयास हुआ कि काले धन की समस्या को रोका जाए, उसे हतोत्साहित किया जाए. वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था लागू की गई, जिसमें यह कहा गया कि किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा जा सकता है और किसी पार्टी को दिया जा सकता है.
एक निर्धारित समयावधि के अंदर पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड को भुना लेती थीं. इस पद्धति में यह सूचना सार्वजनिक करने का प्रावधान नहीं था कि किस पार्टी को किस व्यक्ति या संस्था ने कितना चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दिया है. चूंकि यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय का है, तो देश और सरकार को उसका सम्मान करना है, लेकिन यह अवश्य कहा जाना चाहिए कि चुनाव में काले धन का प्रकोप जिस स्तर पर था, उससे निपटने की दिशा में इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था एक प्रगतिशील कदम थी.
इसी सरकार के कार्यकाल में यह कानून बना था, इसलिए इसी सरकार को यह देखना होगा कि सर्वोच्च न्यायालय की आपत्तियों और निर्देशों का अनुपालन करते हुए एक संशोधित व्यवस्था लायी जाए. ऐसा तो अब नहीं हो सकता है कि हम पहले के काले धन वाले समय में लौट जाएं, जहां न तो पैसे के स्रोत का पता चलता था और न ही पैसा देने वाले के बारे में.
आज भी हर चुनाव में हम देखते हैं कि चुनाव आयोग बड़ी मात्रा में नगदी की धर-पकड़ करता है. पहले भी कई बार आयोग की ओर से कहा जा चुका है कि चुनावों में बाहर से पैसा आने के अंदेशों को खारिज नहीं किया जा सकता है. किसी भी व्यवस्था या नियम का उद्देश्य यही है कि हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और धन बल का हस्तक्षेप ना हो और स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव हों.