संतोष देसाई का ब्लॉगः लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 7, 2019 07:39 PM2019-01-07T19:39:20+5:302019-01-07T20:28:26+5:30

मुद्दा यह नहीं है कि शासन में कौन लोग हैं, बल्कि यह है कि वे करते क्या हैं. एक बार जब संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता में दखल देने की शुरुआत हो जाती है तो भविष्य में किसी भी सरकार द्वारा पूर्वस्थिति बहाल करने की संभावना बहुत कम हो जाती है.

Santosh Desai's blog: Democratic values fall | संतोष देसाई का ब्लॉगः लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट

संतोष देसाई का ब्लॉगः लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट

देश में लोकतांत्रिक मूल्यों की हालत बेहतर नहीं दिखाई दे रही है. संवैधानिक संस्थानों में हस्तक्षेप तो बरसों से दिखाई दे रहा था, लेकिन हालिया समय में यह एक नए स्तर को छूता प्रतीत हो रहा है. इस बार अंतर यह है कि पूरी तरह से नियंत्रण को शासन करने में सक्षम होने के लिए एक पूर्व आवश्यकता के रूप में देखा जा रहा है.

वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार सहित पिछली सरकारों के विपरीत, जिसमें विपरीत विचारों को भी समाहित किया जाता था और आलोचनाओं तथा सवालों के समाधान की कोशिश की जाती थी, वर्तमान नेतृत्व ऐसा मानता दिखाई देता है कि केवल पूर्ण प्रभुत्व और निर्विवाद आज्ञाकारिता के वातावरण में ही काम किया जा सकता है. यहां तक कि जिन संस्थानों को अब तक राजनीतिक प्रभाव से दूर रखा गया था, अब उनमें भी हस्तक्षेप किया जा रहा है और उन्हें सरकार के अनुकूल बनाने का प्रयास किया जा रहा है. नियंत्रण की यह इच्छा आवश्यक रूप से विशिष्ट लक्ष्यों की उपलब्धि से जुड़ी नहीं है, बल्कि अन्य दृष्टिकोण के नकार का भाव है.

सुप्रीम कोर्ट, रिजर्व बैंक और सीबीआई के भीतर पिछले साल होने वाली उथल-पुथल उस माहौल की झलक है, जिसमें हमारे लोकतंत्र को काम करना पड़ रहा है. सीबीआई कभी भी राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त नहीं थी, लेकिन 2018 में हमने जो देखा, वह ‘पिंजरे के तोते’ के लिए भी निम्नता का नया स्तर था. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का  प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करना इस बात का द्योतक था कि जिस तरह से चीजें चल रही थीं, वह वास्तव में अभूतपूर्व थीं. रिजर्व बैंक ने ऐसे दबाव का सामना किया, जैसा अतीत में शायद ही कभी किया हो.  

मुद्दा यह नहीं है कि शासन में कौन लोग हैं, बल्कि यह है कि वे करते क्या हैं. एक बार जब संवैधानिक संस्थानों की निष्पक्षता में दखल देने की शुरुआत हो जाती है तो भविष्य में किसी भी सरकार द्वारा पूर्वस्थिति बहाल करने की संभावना बहुत कम हो जाती है. इसलिए संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता में दखल ज्यादा चिंताजनक है.

Web Title: Santosh Desai's blog: Democratic values fall

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे