अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: स्वच्छता हर नागरिक की है जिम्मेदारी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 4, 2024 06:55 IST2024-10-04T06:54:57+5:302024-10-04T06:55:35+5:30

मोदी ने एक बार कहा था : ‘‘इंदौर के लोग सिर्फ ‘सेव-पोहा-प्रेमी’ ही नहीं हैं, बल्कि वे अपने शहर की सेवा करने के लिए भी जाने जाते हैं;

Sanitation is the responsibility of every citizen | अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: स्वच्छता हर नागरिक की है जिम्मेदारी

अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: स्वच्छता हर नागरिक की है जिम्मेदारी

भारतीय प्रधानमंत्री को अगर लाल किले की प्राचीर से एक विशाल स्वच्छता अभियान की घोषणा करनी पड़ी थी, तो यह भारतीयों की नागरिक भावना में चिंताजनक गिरावट तथा स्थानीय निकायों की अकुशलता और उनकी बीमारू कार्य संस्कृति की ओर इशारा करता है।

वर्ष 2014 में घोषित नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘स्वच्छ भारत’ परियोजना ने एक दशक पूरा कर लिया है, जिसके दौरान शहरी स्थानीय निकायों तथा आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने भारतीय शहरों और गांवों को स्वच्छ बनाने के लिए कई करोड़ रुपए खर्च किए। देश के लिए इस बेहद जरूरी कार्यक्रम के एक दशक पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।

भारत को स्वच्छ रखना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें स्थानीय संस्कृति के मुद्दों और वित्त की कमी के अलावा नौकरशाही की अड़चनों और राजनीतिक मुद्दों जैसी कई चुनौतियां थीं और हैं। कभी भारत को एक स्वच्छ देश के रूप में जाना जाता था, इस तथ्य के बावजूद कि एक सदी से भी पहले, महात्मा गांधी को एक कड़ा संदेश देने के लिए कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन के स्थान को साफ करने के लिए खुद झाड़ू उठानी पड़ी थी।

भारतीय घर - शहरी या ग्रामीण - आम तौर पर गृहस्वामियों और सड़कों की देखभाल करने वाली नगर पालिकाओं द्वारा साफ रखे जाते थे। शहर की मुख्य सड़कों पर साठ और सत्तर के दशक के अंत तक अनेक नगर पालिकाओं द्वारा पानी डाला जाता था और नागरिकों द्वारा तालाब व नदियों को कूड़ेदान में नहीं बदला जाता था। जिम्मेदार नागरिक पहले शायद जागरूक और सजग होते थे। चार-पांच दशक पहले बनी कोई भी बॉलीवुड फिल्म दिखा सकती है कि सड़कें और गलियां आम तौर पर आज की तुलना में अधिक साफ दिखती थीं।

वैसे, शहरों को साफ रखना निर्वाचित महापौर या आयुक्त की जिम्मेदारी है, जो आम तौर पर आईएएस अधिकारी होता है। गांवों के लिए निर्वाचित सरपंच और पंचायतें जिम्मेदार थीं। जाहिर है कि ये संस्थाएं बुरी तरह विफल रहीं, जिसके कारण मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में न केवल राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने के बारे में सोचना पड़ा, बल्कि उन्होंने इसे बहुत अच्छी तरह से लागू भी किया।

यह एक सच्चाई है कि पिछले कुछ सालों में भारत के हालात खराब होते गए और हर जगह प्लास्टिक का कचरा बिखरा दिखने लगा। सड़कों पर लोग थूकते और पेशाब करते हैं, शौचालयों की कमी के कारण खुले में शौच करते हैं, सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी करते हैं, घरों का कचरा सड़कों पर फेंकते हैं, शहरों में जगह-जगह नगरपालिका के ठोस कचरे के ढेर सड़ते रहते हैं, बदबूदार संकरी गलियों में सूअर और कुत्तों का साम्राज्य दिखता है

और शहर के बीचों-बीच गंदगी फैली रहती है। यह सब उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक हर जगह आम बात हो गई थी. यहां तक कि पढ़े-लिखे लोग और शानदार कारों का इस्तेमाल करने वाले लोग भी सड़कों पर थूकने से पहले एकबारगी सोचते भी नहीं हैं।

मुझे याद है जब इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के लिए आधिकारिक रात्रिभोज का आयोजन किया था, जो अपनी तीसरी महत्वपूर्ण यात्रा पर थीं। यह एक पारंपरिक रात्रिभोज से कहीं बढ़कर था, क्योंकि भारत 1997 में स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ मना रहा था। रात्रिभोज के दौरान पीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने महारानी के एक सहयोगी से पूछा कि क्या उन्हें राष्ट्रीय राजधानी में घूमना अच्छा लगा। जवाब सुनकर पीएमओ के अधिकारी हैरान रह गए।

बताया जाता है कि ब्रिटिश अधिकारी ने जवाब दिया : ‘‘महारानी को दिल्ली में हर जगह लोगों को खुले में पेशाब करते देखकर अत्यंत घृणा हुई.’’

तब से अब तक भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस विकराल  समस्या को हल करने का प्रयास किया है और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को एक प्रणाली-संचालित अभियान बनाया है, जिसमें न केवल शहरों के ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ के तहत एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने की योजना बनाई, बल्कि उन्हें भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा समर्थन भी दिया गया है। करीब 5000 गांवों में 12 करोड़ शौचालय बनाए गए, जिससे उन्हें खुले में शौच से मुक्त गांव (ओडीएफ) का दर्जा भी मिला।

मै मानता हूं कि जब तक नागरिक अपने इलाकों को साफ करने का बीड़ा नहीं उठाते, सरकारें कुछ खास नहीं कर सकतीं. सात बार ‘सबसे स्वच्छ शहर’ का पुरस्कार जीतने वाले इंदौर ने इसे साबित कर दिया है।  मोदी ने एक बार कहा था : ‘‘इंदौर के लोग सिर्फ ‘सेव-पोहा-प्रेमी’ ही नहीं हैं, बल्कि वे अपने शहर की सेवा करने के लिए भी जाने जाते हैं; आज जब आप इंदौर का नाम सुनते हैं तो यह शहर की स्वच्छता और नागरिक कर्तव्य की भावना को भी याद कराता है।’’

दुर्भाग्य से, सभी शहरों और कस्बों में ऐसा नहीं है और वे आज भी गंदगी से भरे हैं। पुरस्कार की बात तो छोड़िए, स्वच्छ परिवेश और समग्र स्वच्छता के कई स्वास्थ्यगत और अन्य लाभ हैं। इससे उद्योगों और पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, रोजगार मिलता है। ‘स्वच्छ इंदौर’ पुस्तक के लेखक और वरिष्ठ अधिकारी पी. नरहरि कहते हैं, ‘पहले इंदौरी दूसरे शहरों की तरह गीले और सूखे कचरे में अंतर नहीं जानते थे, लेकिन अब वे कचरा प्रबंधन में माहिर हैं।

इंदौर ने भारत को दिशा दिखाई है अन्य शहरों को वैसा ही काम करना होगा। भारतीयों को कम से कम इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी का पूरा समर्थन करना चाहिए।

Web Title: Sanitation is the responsibility of every citizen

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे