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संदीप पांडेय का ब्लॉगः गंगा बन सकती है  2019 में मुद्दा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 16, 2018 03:38 IST

हमारे देश और उसकी सरकार के लिए इसको नजरअंदाज करना मुश्किल होता जाएगा. 2019 के चुनाव में गंगा का मुद्दा नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है.

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संदीप पांडेय

86 वर्षीय स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद, जो पहले गुरुदास अग्रवाल के नाम से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के प्रोफेसर व केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के पहले सदस्य-सचिव रह चुके थे, ने 22 जून 2018 से गंगा के संरक्षण हेतु कानून बनाने की मांग को लेकर हरिद्वार में अनशन किया. 112 दिनों तक अनशन करने के बाद 11 अक्तूबर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में उनका निधन हो गया. 

जैन मुनि 40 वर्षीय संत गोपाल दास जो पहले हरियाणा में गोचारन की भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त कराने हेतु अनशन कर चुके हैं, भी स्वामी सानंद की प्रेरणा से गंगा को बचाने हेतु 24 जून, 2018 से बद्री धाम मंदिर, बद्रीनाथ में अनशन पर बैठ गए. फिलहाल उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में भर्ती किया गया है. 26 वर्षीय ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद मातृ सदन, हरिद्वार, जिसे स्वामी सानंद ने अपनी अनशन स्थली के रूप में चुना था, में स्वामी सानंद की गंगा तपस्या को जारी रखने के उद्देश्य से 24 अक्तूबर, 2018 से अनशन पर बैठे हुए हैं. 

जब स्वामी सानंद जीवित थे तो मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रतिनिधिमंडल, जो उनसे मिलने आया हुआ था, को स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि यदि स्वामी सानंद को कुछ हो गया तो वे व उनके शिष्य स्वामी सानंद के अपूर्ण कार्य की पूर्ति हेतु गंगा तपस्या जारी रखेंगे. स्वामी सानंद का मातृ सदन की तरफ से गंगा को बचाने हेतु अभी तक का 59वां अनशन था और आत्मबोधानंद का 60वां है. मातृ सदन से ही जुड़े हुए स्वामी पुण्यानंद जिस दिन से आत्मबोधानंद अनशन पर बैठे हुए हैं उसी दिन से अन्न छोड़ कर फलाहार पर हैं और यदि आत्मबोधानंद को कुछ हुआ तो वे फल भी त्याग कर सिर्फ पानी ग्रहण करेंगे.

2011 में 35 वर्षीय स्वामी निगमानंद की गंगा में अवैध खनन के खिलाफ अनशन करते हुए हरिद्वार के जिला अस्पताल में 115वें दिन मौत हो गई थी. मातृ सदन का यह आरोप है कि तत्कालीन उत्तराखंड की भाजपा सरकार से मिले हुए एक खनन माफिया ने उनकी हत्या करवाई. 

स्वामी गोकुलानंद, जिन्होंने स्वामी निगमानंद के साथ 4 से 16 मार्च, 1998 में मातृ सदन की स्थापना के एक वर्ष के बाद ही पहला अनशन किया था, की 2003 में बामनेश्वर मंदिर, नैनीताल में जब वे अज्ञातवास में रह रहे थे तो खनन माफिया ने हत्या करवा दी. बाबा नागनाथ वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर उन्हीं मांगों को लेकर जो स्वामी सानंद की थीं कि गंगा को अविरल व निर्मल बहने दिया जाए, अनशन करते हुए 2014 में शहीद हो गए.

 जैसे जैसे गंगा के लिए बलिदान होने वाले संतों की संख्या बढ़ती जाएगी और अन्य संत इसी राह पर चलने के लिए दृढ़ संकल्पित होते जाएंगे, हमारे देश और उसकी सरकार के लिए इसको नजरअंदाज करना मुश्किल होता जाएगा. 2019 के चुनाव में गंगा का मुद्दा नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है.

टॅग्स :स्वामी सानंदनमामी गंगे परियोजना
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