संघ का हिंदुत्व जीत गया, कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता हार गई!
By विकास कुमार | Updated: May 27, 2019 15:38 IST2019-05-27T14:34:43+5:302019-05-27T15:38:52+5:30
भारतीय राजनीति ने मोदी शासनकाल में एक नई करवट ली है जिसका इंतजार संघ अपनी स्थापना काल से ही कर रहा था. हेडगवार से लेकर गोलवलकर और वाजपेयी से लेकर मोदी, संघ की विचारधारा कई स्तर पर संघर्ष करते हुए आज मुकाम पर पहुंचती हुई दिख रही है.

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लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत के बाद पार्टी मुख्यालय में दिए गए अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा कि पिछले 5 साल में धर्मनिरपेक्षता का नक़ाब ओढ़ने वाली पार्टियां अब इसके बारे में बात भी नहीं करती हैं. अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पहले ये नेता बड़े से बड़े पाप कर सेकुलरिज्म का चादर ओढ़ लेते थे और इन्हें गंगा स्नान से भी ज़्यादा पुण्य हासिल हो जाता था.
मोदी के कहने का मतलब था कि सेकुलरिज्म के जिस फ़र्ज़ी नैरेटिव को विपक्ष ने खड़ा किया था उसका खात्मा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में हो चुका है.
संघ का प्रोजेक्ट 'हिंदुत्व'
संघ के वैचारिक सिपाही का यह बयान लोकसभा चुनाव में विपक्ष को राजनीतिक ठिकाने लगाने के ठीक बाद आना मायने रखता है. अपने पहले कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने भले ही 'हिंदुत्व प्रोजेक्ट' की तमाम योजनाओं को हाशिये पर रखा हो लेकिन बात जब भी हिंदुत्व के वैश्वीकरण की हुई हो तो इस मामले में मोदी ने संघ की आकांक्षाओं से बढ़ कर काम किया.
मुस्लिमों के बिना हिंदुत्व अधूरा
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के आह्वान पर 191 देशों का साथ मिलना हिंदुस्तान के सॉफ्ट पावर का पहला सफल प्रक्षेपण था. दुनिया के ताकतवर देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मिल कर उन्हें भगवद गीता की प्रति भेंट करना संघ की वैचारिक पाठशाला से मिला हुआ संस्कार था. नरेन्द्र मोदी ने विश्व पटल पर 'वसुधैव कुटुम्बकम' की बातें की और मोहन भागवत ने संघ के स्वयंसेवकों को कहा कि मुस्लिमों के बिना हमारा हिंदुत्व अधूरा है और हमें उन्हें साथ लेकर चलना है. संघ में ऐसे भी समन्वय की नीति पर जोर दिया जाता है.
ऐसा नहीं है कि पहले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के नेता मंदिर भ्रमण पर नहीं निकलते थे लेकिन इसे पारिवारिक दौरा बना कर चुपके से कर लिया जाता था. पिछले 5 वर्षों में एक नया ट्रेंड उभर कर सामने आया है. मंदिर का दौरा बिना मीडिया कैमरों के अप्रासंगिक हो गया है. बीते 5 वर्षों में देश में मॉब लिंचिंग की 30 से ज्यादा घटनाएँ हुईं लेकिन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक भी पीड़ित के परिवार से मुलाकात नहीं की.
मॉब लिंचिंग पर मौन विपक्ष
विपक्ष का कोई भी नेता इस दौरान गौ रक्षा के नाम पर हो रही लिंचिंग की घटनाओं पर मुखर हो कर नहीं बोला. राम मंदिर का विरोध करने वाली पार्टियां आज इसकी चर्चा के साथ ही डिप्लोमेटिक हो जाती हैं. यहां तक कि कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा यह भी सुनने को मिला कि सत्ता पर आने पर कांग्रेस राम मंदिर का निर्माण करेगी. ये बातें कहने का उन्हें पूरा हक़ था क्योंकि आखिर राम मंदिर का ताला राजीव गांधी के कार्यकाल में ही तो खुला था.
'हिन्दुओं का राजनीतिकरण करो'
वीर सावरकर ने कहा था कि राजनीति का हिंदूकरण करो. दिलचस्प है कि हिन्दू महासभा की विचारधारा को हमेशा खारिज करने के बावजूद संघ वीर सावरकर को दक्षिणपंथी विचारधारा का पोस्टर बॉय मानता रहा. संघ की वैचारिक यज्ञशाला में वर्षों तक हिंदुत्व का जाप करने वाले उसके वैचारिक सिपाही नरेन्द्र मोदी ने भारतीय राजनीति से जातिवाद की जड़ों को उखाड़ना शुरू कर दिया है और ऐसा लग रहा है कि जाने-अनजाने सावरकर मॉडल को भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बना दिया है.
राजस्थान और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकारों ने अपने घोषणापत्र में गौ रक्षा के प्रण लिए. बीते 5 वर्षों में राहुल गांधी ने भी सैंकड़ों मंदिरों के दौरे किए. प्रियंका गांधी राजनीति में प्रवेश के साथ ही गंगा मैया की गोद में जा बैठीं. पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी अपनी हिन्दू विरोधी छवि को धोती हुई प्रतीत हुई.
अखिलेश यादव ने दुनिया के सबसे ऊंचे कृष्ण मंदिर बनाने का वादा किया तो ममता बनर्जी ने मोदी-शाह को संस्कृत मन्त्रों के पढ़ने की चुनौती दे डाली. भारतीय राजनीति ने मोदी शासनकाल में एक नई करवट ली है जिसका इंतजार संघ अपनी स्थापना काल से ही कर रहा था. हेडगवार से लेकर गोलवलकर और वाजपेयी से लेकर मोदी, संघ की विचारधारा कई स्तर पर संघर्ष करते हुए आज मुकाम पर पहुंचती हुई दिख रही है.