राजेश बादल का ब्लॉग: भारत से अमेरिका की अपेक्षाएं उचित नहीं

By राजेश बादल | Published: March 29, 2022 09:33 AM2022-03-29T09:33:13+5:302022-03-29T09:33:13+5:30

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से चली आ रही है। अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत जैसा विशाल लोकतंत्र ब्रिटेन या कुछ अन्य गोरे देशों की तरह उनका पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकता.

Rajesh Badal blog: America's expectations from India are not fair amid russia ukraine war | राजेश बादल का ब्लॉग: भारत से अमेरिका की अपेक्षाएं उचित नहीं

भारत से अमेरिका की अपेक्षाएं उचित नहीं (फाइल फोटो)

अमेरिका के सुर बदल रहे हैं. भारत की विदेश नीति से उसे शिकायत है. राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि यूक्रेन और रूस के युद्ध में भारत की प्रतिक्रिया अस्थिर और ढुलमुल रही है. वे कहते हैं कि क्वाड के अन्य देश जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने अपने रुख में सख्ती दिखाई है. यह भारत की ओर से नदारद है. अमेरिका की ओर से उसके कुछ और अफसरों ने अलग-अलग मंचों पर कमोबेश ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त की है. 

अमेरिका की इस एकतरफा धारणा को कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता. उसे समझना होगा कि भारत जैसा विशाल लोकतंत्र ब्रिटेन या कुछ अन्य गोरे देशों की तरह उनका पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकता. उसकी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति है, जो जवाहरलाल नेहरू के जमाने से चली आ रही है और भारत को हमेशा इसका लाभ भी मिला है.

सदियों तक भारत को गुलाम बनाकर रखने वाले और यहां के करोड़ों लोगों पर क्रूर और अमानवीय अत्याचार करने वाले ब्रिटेन और दशकों तक भारत के शत्रु देशों के साथ खड़े रहे अमेरिका पर यह देश एक सीमा तक ही भरोसा कर सकता है. 

यह तथ्य अमेरिका और उसके सहयोगियों को हमेशा याद रखना चाहिए कि आप जैसी फसल बोते हैं, उसे ही काटते हैं. यह भारत का बड़प्पन है कि वह अतीत के कड़वेपन को भुलाकर अमेरिका के संग बेहतरीन रिश्ते बनाने का प्रयास करता रहा है. जरूरी है कि अमेरिका भारत की भावना और प्राथमिकताओं को समझे.

सवाल यह है कि रूस- यूक्रेन की जंग में क्वाड को घसीटना कहां तक उचित है? क्वाड एक ऐसा संगठन है, जिसके उद्देश्य नाटो संगठन जैसे नहीं हैं. बुनियादी तौर पर यह अचानक आपदा के दिनों में एक-दूसरे को राहत पहुंचाने के लिए बना था. चूंकि अमेरिका की चीन से प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है और भारत तथा जापान के चीन से रिश्ते कोई बहुत मधुर नहीं हैं, इसलिए चीन की अनुचित महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण करने के लिए इसमें चीन के प्रति संयुक्त नीति अपनाने का बिंदु भी जोड़ा गया. 

इसका अर्थ सदस्य देशों की विदेश और रक्षा नीतियों को प्रभावित करना नहीं है. क्वाड का सदस्य होने मात्र से ही अमेरिका को यह हक नहीं मिल जाता कि वह भारत की अपनी नीतियों में दखल देना शुरू कर दे. इसके बावजूद भारत ने अमेरिका की भावना का सम्मान करते हुए ईरान से तेल आयात न्यूनतम किया, जबकि उसके ईरान से अच्छे रिश्ते रहे थे. इसका भारत को काफी व्यापारिक और रणनीतिक खामियाजा उठाना पड़ा.

अमेरिका यूक्रेन के मामले में भारत से मानवीय अधिकार और आधार पर भी समर्थन चाहता है. उसका तर्क है कि रूस यूक्रेन के निर्दोष नागरिकों को मार रहा है. यकीनन यूक्रेन के निवासियों के साथ हमारी सहानुभूति होनी चाहिए. मगर क्या एक ही मामले में दो मापदंड हो सकते हैं. नहीं हो सकते. क्या अमेरिका अपने देश में अश्वेतों के साथ भेदभाव को देखता है? क्या उसे पता नहीं कि अमेरिकी पुलिस हर महीने औसतन दो अश्वेतों को रंगभेद करते हुए अमानवीय ढंग से मार डालती है. 

यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है. इसके नहीं रुक पाने की वजह क्या है? यही नहीं, अमेरिका भारत की कश्मीर नीति का खुल्लम-खुल्ला विरोध करता है. राष्ट्रपति जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस कई बार भारत की कश्मीर नीति की खिल्ली उड़ा चुके हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले तो वे भारत को लेकर बड़े आक्रामक रहे हैं.

असम में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर ) और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी जो बाइडेन अपना गुस्सा दिखा चुके हैं. उनकी राय थी कि भारत के इस सीमांत प्रदेश के बारे में लिए गए फैसले मुल्क की धर्मनिरपेक्ष परंपरा और संविधान के अनुरूप नहीं हैं. इस पृष्ठभूमि में अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत की आलोचना बेतुकी नजर आती है.

प्रसंगवश याद दिलाना चाहूंगा कि दस-बारह बरस पहले लीबिया में अमेरिका ने जो भी किया और उससे पहले इराक में जिस तरह राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को मार डाला गया, उसे कौन जायज ठहराएगा. सद्दाम हुसैन से अमेरिका की नाराजगी थी, लेकिन उस देश के अनगिनत नागरिकों की निर्दोष मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है? ताजा उदाहरण अफगानिस्तान का है. उसने अपने सैनिकों को वापस लाने के लिए मुल्क के नागरिकों, बच्चों और महिलाओं को जंगल राज का शिकार होने के लिए छोड़ दिया. क्या इस अमानवीय कृत्य के लिए अमेरिका की आलोचना नहीं की जानी चाहिए? 

अब भारत से सहयोग चाहते हुए वह उस यूक्रेन का हवाला दे रहा है, जिसने पाकिस्तान को लगातार हथियारों की सप्लाई जारी रखी और भारत के परमाणु परीक्षण करने पर पच्चीस देशों को साथ लेकर संयुक्त राष्ट्र में निंदा अभियान चलाया. इसके बाद भी जो बाइडेन चाहते हैं कि भारत उनकी खातिर अपने मित्र रूस से दुश्मनी मोल ले.

यदि आप इतिहास देखें तो पाते हैं कि एक से बढ़कर एक कड़वे अनुभव भारत के खाते में एकत्रित हैं. कश्मीर के मसले पर तीन बार तो रूस ने ही भारत के पक्ष में सुरक्षा परिषद् में वीटो किया. उस समय अमेरिका पाकिस्तान के पाले में खड़ा था. क्या चीन के साथ बासठ के युद्ध में हमें अमेरिका की भूमिका की याद नहीं है. गलवान घाटी में जब चीन की सेना के साथ भारतीय फौज की भिड़ंत हुई, उस समय अमेरिका ने क्या किया. तीन दिन तक अमेरिका की चुप्पी हैरान करने वाली थी.

इन हालात में अमेरिका का साथ देना भारत की कोई मजबूरी नहीं है. यह बात दुनिया के स्वयंभू चौधरी को समझनी होगी.

Web Title: Rajesh Badal blog: America's expectations from India are not fair amid russia ukraine war

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